उत्तर दक्षिण के दो पाटों में पिस रही जनता,धणी धोरी बने महापौर चुप
दो निगम का जनता को नहीं मिला लाभ, फिर से हो एक निगम, चार साल के कार्यकाल में नहीं सुधरी शहर की सफाई व्यवस्था
निगम के इन चार साल के कार्यकाल पर दैनिक नवज्योति ने आईना दिखाया। जिसमें न तो शहर की सफाई व्यरस्था में सुधार हुआ है और न ही श्वान व मवेशियों का समाधान हुआ।
कोटा। पिछली कांग्रेस सरकार के समय में जयपुर व जोधपुर की तरह हीकोटा में भी दो नगर निगम तो बना दिए। लेकिन चार साल के कार्यकाल में भी न तो शहर की सफाई व्यवस्था में सुधार हुआ और न ही जनता को इसका लाभ मिला। बल्कि कोटा उत्तर व दक्षिण निगम के दो पाटों में जनता पिसती ही रही। ऐसे में कोटा में फिर से एक नगर निगम होने पर ही लोगों को राहत मिल सकती है। कोटा में नवम्बर 2019 में नगर निगम के तत्कालीन बोर्ड का कार्यकाल पूरा हो गया था। उसके बाद सरकार ने वार्डों का परिसीमन कराया। जिसके बाद कोटा में उत्तर व दक्षिण दो नगर निगम बना दिए। वार्डों की संख्या 150 कर दी गई। उस समय दावा किया जा रहा था कि वार्ड छोटे होंगे तो सफाई व्यवस्था में सुधार होगा और पार्षद जनता की पहुंच में रहेंगे। नवम्बर 2020 में हुए चुनाव में दोनों नगर निगमों में कांग्रेस के बोर्ड बने। दोनों बोर्ड का चार साल का कार्यकाल इसी सप्ताह पूरा हुआ है। निगम के इन चार साल के कार्यकाल पर दैनिक नवज्योति ने आईना दिखाया। जिसमें न तो शहर की सफाई व्यरस्था में सुधार हुआ है और न ही श्वान व मवेशियों का समाधान हुआ। जानकारों के अनुसार अगले साल जनवरी में पहले एक नगर निगम होने का और उसके बाद वार्डोंका परिसीमन होने का नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा। उसके बाद ही इसकी प्रक्रिया शुरू कीजाएगी।
करोड़ों के संसाधन नहीं हुआ पूरा उपयोग
दोनों नगर निगमों में शहर की सफाई व्यवस्था के लिए करोड़ों रुपए की मशीनरी व संसाधन खरीदे गए। लेकिन उनका पूरा उपयोग तक नहीं हो सका। नतीजा शहर की सफाई व्यवस्था पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी इंदौर कीतर्ज पर सफाई केदावे तोकिए लेकिन हकीकत में कोई बदलाव नहींहुआ है।
भवन व कर्मचारियों का बंटवारा, नहीं बढ़ाया स्टाफ
दो नगर निगम बनने के बाद कागजों में भवन व कर्मचारियों का बटवारा हो गया लेकिन वास्तव में निगम में स्टाफ व कर्मचारी तक नहीं बढ़ाए। पहले जिस प्रशासनिक भवन में एक नगर निगम संचालित हो रहा था उसी में लाखों रुपए खर्च कर नए चैम्बर व फर्नीचर बनाया गया। लेकिन भवन एक ही रहा। साथ ही कर्मचारी सेवानिवृत्त होते रहे लेकिन नई भर्ती नहीं हुई। नगर निगम का नया गैराज तक नहीं बन सका। कोटा उत्तर व दक्षिण मेंएक ही राजनीतिक दल के बोर्ड होने के बाद भी दोनों में अक्सर विवाद की स्थिति बनी रही। चाहे गत वर्ष दशहरा मेला रहा हो या अन्य मामले।
यह उत्तर का नहीं दक्षिण का मामला
दो नगर निगम बनने से सबसे अधिक परेशानी शहर की जनता को ही भुगतनी पड़ी। लोग निगम कार्यालय में अपने कामों के जातेहैं तो वहांजाने पर अधिकतर को यहीसुनना पड़ता है कि यह काम कोटा उत्तर का नहीं दक्षिण का है। दक्षिण में जाने पर मामला उत्तर का बताकर वहां से भी टाल दिया गया। जिससे लोग परेशान होते रहे। विशेष रूप से जन्म मृत्यु व विवाह प्रमाण पत्र हो या मकान व भूमि के पट्टे बनाने का काम हो। जिन लोगों को उत्तर दक्षिण कीजानकारीनहीं थी उन्हें अधिक परेशान होना पड़ा। सफाई कर्मचारी भी कोटा उत्तर व दक्षिण में पिसते रहे।
थानों की तरह रही व्यवस्था
जिस तरह से शहर में एक ही जगह पर दो थाने आने पर पुलिसकर्मी मामले को एक से दूसरे थाने में टलकाते रहतेहै। उसी तरह से कई मामले उत्तर व दक्षिण में उलझे रहे। गत वर्ष दशहरा मेले के आयोजन को लेकर नगर निगम के पार्षद ही एक नहींहो सके थे। दशहरा मेला दक्षिण में होने पर मेला समिति अध्यक्ष कोटा उत्तर से होने पर हमेशा दक्षिण के अधिकतर पार्षद विरोध मेंही रहे।
निगम कार्यालय में निर्माण के नाम पर लाखों खर्च
इधर सरकार बदलने के बाद से ही नव’योति कहता रहा हैकि कोटा में फिर से एक नगर निगम होसकते है। वार्डोंकी संख्या भी 150 से घटकर 100 हो सकती है। दक्षिण निगम विधायक से लेकर स्वायत्त शासन मंत्री तक कोटा में फिर से एकनगर निगम होने कीसंभावना जता चुके है। उसके बाद भी नगर निगम के अधिकारी निगम कार्यालय में कक्ष निर्माण पर लाखों रुपए अनावश्यक रूप से खर्च कर रहे है। जबकि कुछ समय बाद एक निगम होने इस खर्च की गई राशि का सही उपयोग नहीं हो पाएगा। कोटा दक्षिण के कांग्रेस पार्षद इस पर आपत्ती भी जता चुके है।
लोगों का कहना, एक हो निगम
इधर शहर वासिया ेंका कहना है कि कोटा अभी इतना बड़ा शहर नहीं है कि यहां दो नगर निगम बनाए जाएं। महाराष्ट्र जैसीजगह पर एक ही मुंसीपल कॉरपोर२शन है। कुन्हाड़ी निवासी कमल जैन ने कहा कि दो नगर निगम बनाने का जो फायदा जनता को होना चाहिए था वह नहींहुआ। न तो सफाई सुधरीऔर न ही जनता के काम हुए। शहर का विकास तो तत्कालीन मंत्री के विजन के कारण हुआ। नगर निगम ने कुछ नहीं किया। ऐसे में कोटा में एक ही नगर निगम बननाा चाहिए। नयापुरा निवासी महेश नागर का कहना है कि दो निगम बनने से वार्ड तो छोटे कर दिए।लेकिन सफाई व्यवस्था में अपेक्षा के अनुरूप सुधार नहींहुआ। स्टाफ की कमी होने से निगम में काम समय पर नहीं हो पाए। ऐसे में एक निगम होने पर सम से कम जनता को पता तो रहेगा कि उनका काम कहां होगा। कैथूनीपोल निवासी महेश जोशी ने बताया कि वे कोटा उत्तर में आते है। लेकिन उनके परिवार में बच्चे का जन्म तलवंडी स्थित अस्पताल म ेंहुआ तो वे जन्म प्रमाण पत्र बनवाने निगम गए। वहां जाने पर पता चला कि अस्पताल दक्षिण में होन ेसे जन्म प्रमाण पत्र वहीं बनेगा। इस तरह की कई परेशानिया ंजनता ने भुगती है। एक निगम होने से लोगा ेंको फायदा होगा।
प्रस्तावित जमीन का मामला अटका
पिछली सरकार में कोटा उत्तर निगम के नए भवन के लिएपुरानी सब्जीमंडी में जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराया था। उसके लिए 50करोड़ का बजट भी तय किया गया थ।लेकिन सरकार बदलने के बाद न बजट मिलाऔर न ही उस जगह का अभी तक कुछ हुआ।
इनका कहना है
कोटा में एक हीनगर निगम होना चाहिए। राय मेंसरकार आने के बाद सेही उस पर काम भी किया जा रहा है।अगला चुनाव एक हीननगर निगम के हिसाब सेहोगा। दो निगम बनने से लोगोंकोफायदा नहींहुआ। निगम मेंस्टाफ तक तो बढ़ा नहीं।
-विवेक राजवंशी, नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम कोटा दक्षिण
कोटा में फिर से एक हीनगर निगम होना चाहिए। उत्तर दक्षिण निगम के चक्कर में न तो शहर में विकास हो सका और न ही वार्डो में काम।ऐसे में एक निगम होने से ही जनता कोलाभ होगा। पूर्व में राजनीतिक लाभ के लिए दो निगम बनाए गए थे।
-लव शर्मा, नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम कोटाउत्तर
कोटा में नगर निगम एक होगी या दो ही रहेगी। इस बारे में निर्णय उच्च स्तर पर हीहोगा। यह मामला राज्य सरकार के स्तर का है।इस बारे में जो भीनिर्णय होगा उसकेअनुसार कार्य किया जाएगा। जब तक कोई निर्णय नहीं होजाता तब तक कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
-राजीव अग्रवाल, महापौर, नगर निगम कोटा उत्तर
अधिकारियों ने नहीं किया सहयोग
पिछली कांग्रेस सरकार में अच्छी सोच के साथ दो निगम बनाए गए थे। वार्ड छोटे होने से जनता की पार्षदों तक पहुंच आसान हो गई थी। तत्कालीन मंत्री शांति धारीवाल ने शहर और वार्डों में विकास कार्य करवाए। लेकिन निगम अधिकारियों का सहयोग नहीं मिलने से जनता के काम जिस तरह से होने चाहिए थे वैसे नहीं हुए। अब एक निगम होने का मामला रा’य स्तर का है।
-देवेश तिवारी, अध्यक्ष, वित्त समिति कोटा दक्षिण
दो नगर निगम बनाने केपीछे तत्कालीन मंत्री शांति धारीवाल का विजन था। जनता कोअधिक से अधिक राहत देने का प्रयास किया। सभी वार्डों मेंसमान रूप से काम करवाए। बरसों से मालिकाना हक का इंतजार करने वालोंको पट्टे दिए। लेकिन सरकार बदलने के बाद न तो सरकार के स्तर पर और न ही निगम अधिकारियोंके स्तर पर जनता के कोईकाम हुए। एक साल से कांग्रेस पार्षदों तक कीसुनवाई नहीं हो रही।एक निगम बनाने का मामला उच्च स्तर पर और रा’य सरकार का है। इस बारे में अंतिम निर्णय नहींहोने तक कुछ भी नहींकहा जा सकता।
-इसरार मोहम्मद, अध्यक्ष, निर्माण समिति, कोटा दक्षिण
Comment List