'राजकाज'

जानें राज-काज में क्या है खास

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ठीकरा हार का
सूबे में तीन दिन से भगवा वाले भाई लोगों में हार का ठीकरा काफी चर्चा में है। हो भी क्यों नहीं, मामला दिल्ली के राज तक से ताल्लुक जो रखता है। दिल्ली वाले छोटा भाई और मोटा भाई को पूरा भरोसा है कि जिस काम वे हाथ डालते हैं, उसमें सफल हुए बिना नहीं रहते, चाहे जो भी फार्मूला अपनाना पड़े। उनके भी समझ में नहीं आ रहा कि मरु प्रदेश में अपर हाउस की जंग में हॉर्स ट्रेडिंग से कोसों दूर रहने के पीछे का राज क्या है। अब उनको कौन समझाए कि जब नौसिखिए पटेलों पर भरोसा करोगे, तो पॉजिटिव रिजल्ट मिलना कतई संभव नहीं है। तजुर्बेदारों के हाथों में लगाम होती तो कम से कम क्रॉस वोटिंग का दंश तो नहीं झेलना पड़ता। अब हार का ठीकरा कुंभ और तुला राशि वाले भाईसाहबों के सिर फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।


हुई बोलती बंद
अपर हाउस के चुनावों में जिसमें जितना जोर था, उसने उससे ज्यादा जोर भी लगाया। कुछ भाई लोगों ने हवा में तीर चलाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन चुनावी नतीजों से सबकी बोलती बंद हो गई और जुबानों पर हमेशा के लिए ताले तक लग गए। हाथ वाले भाई लोगों में तो जोधपुर वाले अशोक जी जादूगरों तक में उस्ताद बन गए, लेकिन भगवा वालों के झगड़े भी उजागर हुए बिना नहीं रहे। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि हाथ वाले अशोक जी ने एक तीर से कई निशान साधे हैं, भगवा वालों को तो सबक सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन अपनों को भी मैसेज दे दिया कि बैंगन भी लखनों बिना नहीं बिकते, चाहे वे किसी भी ग्रीन हाउस में पैदा किए हुए हो। अब उस्ताद के मैसेज को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।


चर्चे-ए-चाचा-भतीजा
हाथ वालों में दो साल से चाचा-भतीजा के चर्चे जोरों पर हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने उनके ठिकाने पर हर कोई आने वाला इस चर्चा में अपना मुंह खोले बिना नहीं रहता। कहने वाला का कोई मुंह नहीं पकड़ा जाता, सो खुलेआम कह रहे हैं कि चाचा तो चाचा ही होता है और बाप के भाई का तमगा अलग से रखता है। मॉं का लाड़ला देवर हो तो चाचा का कद और भी बढ़ जाता है। पीसीसी के ठिकानेदार रहे भोले चेहरे वाले को भी समझ में आ गया कि उनके प्रिय चाचा का कोई जवाब नहीं। और उनके जोधपुर वाले चाचा के पास तो चचाजान की पदवी भी है। लोहागढ़ वालों ने चाचा-भतीजे को जुदा करने के लिए गुरु के सामने पासा भी फेंका था, पर उल्टा पड़ गया। अब गुरु के साथ ही सूरजमल के वंशज को भी पता चला गया कि चाचा में अभी भी दम है। गुरुओं के गुरु ने तो दिल्ली दरबार तक में चाचा के गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


एक जुमला यह भी
आजकल दोनों दलों में एक जुमला जोरों पर है। कमल और हाथ वालों के ठिकानों पर ठहाकों के बीच इसे खूब सुनाया भी जाता है। जुमला है कि स्टेच्यु सर्किल पर अपर हाउस के रिजल्ट के बाद शुक्र की देर शाम को दो युवा नेताओं की मुलाकात हुई। एक नेता हाथ से तो दूसरा कमल से ताल्लुकात रखते हैं। घर के हाल-चाल जानने के बाद दोनों में अगले राज के लिए चुनावी चर्चा शुरू हुई। कमल वाले युवा नेता बेमन से बोलने लगता है कि सरकार रिपीट कर रही है। तभी हाथ वालों के मुंह से निकला, नहीं भाई राज तो आपका ही आता दिख रहा है। दोनों की बात सुनकर पड़ोस में खड़े तीसरे मोर्चे के युवा नेता ने पूछ लिया कि आखिर तुम लोग अपनी पार्टी को हराने की बात क्यों कर रहे हैं। दोनों ने भोले मन से कहा कि भाईसाहब यह अंदर की बात है, जब हमारे लोग हारेंगे तब ही इन बाहरी नेताओं से पीछा छूटेगा, नहीं तो जीवनभर हमारा नंबर नहीं आएगा।
एल. एल. शर्मा

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