'इंडिया गेट'

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एमवीए का झमेला!
महाराष्ट्र में एमवीए का झमेला जारी। गठबंधन सरकार हिचकोले ले रही। हां, कांग्रेस सतर्क। तो एनसीपी इधर-उधर देख रही। आखिर वहां पवार जैसा दिग्गज नेता। इसी बीच, एकनाथ शिंदे ने बवंडर कर दिया। अब कई कानूनी पेचिदगियां सामने। बागी गुट भी कानूनी एवं राजनीतिक दावंपेच में मशगूल। तो पवार खुद उद्धव ठाकरे को आगे कर रहे। इससे पहले वह 2019 में कारनामा कर चुके। जब राजनीतिक समझ से एमवीए सरकार बनवा दी। अब हालात फिर से वही लग रहे। अब सवाल यहीं। कहीं, उद्धव ठाकरे ही तो चाल नहीं चल रहे? अब शिवसेना या तो टूटेगी या भाजपा से जा मिलेगी! साल 2024 में लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव। शिवसेना के सांसदों एवं विधायकों का डर लाजमी। क्योंकि वह जीतकर तो भाजपा के साथ आए थे। लेकिन अब किस मुंह से गठबंधन के साथ मैदान में जाएंगे। फिर अभी तो भाजपा के साथ आधी सीटों का बंटवारा हुआ। लेकिन अब एमवीए में तो तीन हिस्सेदार। फिर वैचारिक समानता तो कहीं नहीं।


दो और लाइन में...
महाराष्ट्र के बाद दो और सरकारें लाइन में! राजनीतिक गलियारे में यही चर्चा। बस राष्ट्रपति चुनाव निपटने की देरी। यदि महाराष्ट्र की बगावत अंजाम तक पहुंची। तो झारखंड और बिहार का नंबर लगेगा! वैसे भी झारखंड में गठबंधन धर्म की अग्निपरीक्षा। यहां जेएमएम राष्ट्रपति चुनाव में पसोपेश में। विपक्ष के साथ जाए या एनडीए की आदिवासी प्रत्याशी के साथ खड़ी हो। सो, यदि जेएमएम राजग की द्रौपदी मुर्मू के साथ गई। तो गठबंधन में दरार के आसार। दूसरे, बिहार में सब कुछ ठीक नहीं। भाजपा एवं जदयू लगभग आमने सामने। बयानबाजी से तो यही लग रहा। बिहार में समीकरण ऐसे उलझे हुए कि बस पूछो मत। आरसीपी की विदाई हो रही। तो लल्लन सिंह को खुद पीएम अपने पास सटा रहे। आरसीपी सिंह पूर्व तो लल्लन सिंह वर्तमान जदयू अध्यक्ष। उधर, राजद नितिश पर पहले जैसा भरोसा नहीं कर पा रहा। इधर, कांग्रेस के 19 एमएलए में से एक दर्जन लगभग तैयार बैठे हुए। कोई तो पूछे। बस चिंगारी देना बाकी!


कश्मीर में जी-20...
पाक को मिर्च लग गई। जम्मू-कश्मीर में जी-20 जैसा सम्मेलन का प्रस्ताव। इसके मायने। यह भारत की बढ़ती ताकत और रसूख का प्रमाण। पाक के दुष्प्रचार का इससे अच्छा क्या जवाब होगा? असल में, भारत का इरादा उन ताकतों को बताना कि वह अब उसे हल्के में नहीं लें। कश्मीर के बहाने पाक के दुष्प्रचार के पीछे जो ताकतें लगी हुईं। उनको भी सीधा संकेत। बहुत हो गया। अब नहीं चलेगा। कश्मीर स्थिर एवं शांत। यूएनओ या अन्य मंचों पर क्या होता रहा। लेकिन धरातल पर क्या स्थिति। यह बताने का इरादा। वैसे भी भारत अब यूएनओ या अमरीका ही नहीं यूरोप को भी समझा चुका। यदि उसे ज्ञान दिया जाएगा! तो भारत की भी सुननी पड़ेगी। रूस पर ज्ञान देने वाले अंदर से कितने खोखले। भारत उसकी पोल खोल चुका। बात चाहे तेल आयात की हो या रूस के साथ व्यापार की। बड़े देश चुप्पी साध गए। और यह याद दिलाने के लिए एस. जयशंकर। जो हर कूटनीतिक पैंतरे से लैस।


लड़ाई विरासत की!
तमिलनाडु की एआईएडीएमके चर्चा में। जहां अम्मा यानी जयललिता की विरासत पर कब्जे की लड़ाई सतह पर। ओ पनीरसेल्वम एवं पलानीस्वामी के बीच सरेआम जूतम पैजार की नौबत। तमिलनाडु में एक जमाने जबरदस्त पकड़ रखने वाली अम्मा की पार्टी एआईएडीएमके उनके जाने के बाद डांवाडोल। जिसे रोकने वाला कोई दिग्गज नहीं। अम्मा ने समय रहते भावी नेतृत्व उभारा नहीं। न ही इसका कभी संकेत किया। कोशिश तो शशिकला नटराजन ने भी की थी। लेकिन उन्हें जेल हो गई। बाहर आईं तो बहुत कुछ बदल चुका था। उनके भतीजे ने प्रयास किया। लेकिन वह चुनावी गुबार के साथ खत्म हो गया। लेकिन अब दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच मानो फैसलाकुन रार। बात राजनीतिक विरासत के साथ ही पार्टी की संपत्तियां भी होगी। डीएमके के स्टालीन तो समय रहते वारिस घोषित हो गए। लेकिन एआईएडीएमके इस मामले में पीछे रह गई। विभाजन तो डीएमके में भी हुआ। लेकिन करूणानिधि ने समय रहते संभाला। लेकिन अम्मा यह काम नहीं कर पाईं। सो, बिखराव की नौबत।
चार्ज हो गई!
कोई माने या नहीं माने। लेकिन राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के बहाने कांग्रेस देशभर में जार्च हो गई। राहुल गांधी के पीछे पूरी पार्टी खड़ी नजर आई। सड़क पर संघर्ष देखने को मिला। शायद सरकार या भाजपा भी यही चाहती होगी। वरना उसको इन सबका पता न हो। ऐसा हो नहीं सकता। असल में, अब तैयारी 2024 की। राष्ट्रपति चुनाव इसका पड़ाव। ऐसे में राहुल गांधी के पीछे पार्टी वर्कर यदि खडा हो गया। तो समझो क्षेत्रीय दलों को भी खतरा। यदि कांग्रेस जमीन पर मजबूत हुई। तो सबसे से ज्यादा नुकसान क्षेत्रीय दलों को ही होगा। क्योंकि कांग्रेस एवं क्षेत्रीय दलों का वोट बैंक लगभग एक जैसा ही। भाजपा का अपना वोट बैंक। अब भाजपा के मुकाबले विरोधी वोट बैंक बंटा। तो लाभ में भाजपा ही रहेगी। फिर वैसे भी कांग्रेस पैन इंडियन पार्टी। कोई भी नहीं चाहेगा कि भाजपा जैसी मजबूत पार्टी के आगे कांग्रेस जैसी ग्रेंड ओल्ड पार्टी कमजोर पड़े। आखिर समृद्ध लोकतंत्र का भी यही तकाजा।

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केरल में पंगा!
कांग्रेस और वामदलों का भी अजब साथ। पश्चिम बंगाल में साथ लड़ेंगे। लेकिन केरल में आमने सामने होंगे। फिलहाल अभी दिल्ली में राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी को समर्थन दे रहे। इस बीच, केरल में राहुल गांधी के सांसद कार्यालय पर हमला हो गया। आरोप माकपा के छात्र संगठन एसएफआई पर लगा। अब लोग कह रहे। यह क्या? यह कैसी राजनीति? एक राज्य में साथ। तो दूसरे राज्य में सत्ता के संघर्ष के लिए आमने सामने। दोनों दल दिल्ली में बीते करीब दो दशकों से साथ-साथ। राजनीति की यह कैसी सुविधा, असुविधा? लोकसभा सांसद राहुल गांधी के कार्यालय पर हमला होना कोई सामान्य घटना नहीं। असल में, कांग्रेस एवं वाम का केरल में बहुत कुछ स्टेक पर। जहां दोनों ही सत्ता की दावेदार। कांग्रेस के लिए केरल संभावित राज्य। तो वामदल भी अब यहीं बचे हुए। बंगाल और त्रिपुरा उनके हाथ से जा चुके। इसलिए सत्ता के लिए संघर्ष होना स्वाभाविक। लेकिन इसके लिए हिंसक लडाई कहां तक जायज?
-दिल्ली डेस्क

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