मिट्टी से मेट तक पहुंची कबड्डी, बढ़ रहा क्रेज
कोटा में तैयार हो रहे कबड्डी के खिलाड़ी
कोटा में कबड्डी का इतिहास नाम मात्र हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से कोटा में कबड्डी के खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं। खिलाड़ियों में कबड्डी के प्रति क्रेज देखने को मिल रहा हैं।
कोटा। देश का खेल हो, मिट्टी का खेल हो, दुश्मन के खेमें में घुस कर उसे छूकर अपने घर वापस आने का खेल हो तो जेहन में सिर्फ एक नाम आता है और वो है कबड्डी का खेल। गांव व कस्बे में प्रचलित कबड्डी के खेल में समयानुसार कई परिवर्तन होते रहे हैं। महाभारत काल से इस खेल का अस्तित्व रहा हैं और आज भी यह प्रचलित है। पहले धूल से भरी मिट्टी वाले मैदान में इस खेल को खेला जाता था, अब कबड्डी का खेल मिट्टी से निकलकर मेट तक पहुंच गया है। आज कबड्डी का स्तर भले ही पूरी तरह से बदल चुका हो, लेकिन इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं हैं। अब तो कबड्डी अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है।
कोटा में बढ़ रहा कारवां
वैसे तो कोटा में कबड्डी का इतिहास नाम मात्र हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से कोटा में कबड्डी के खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं। खिलाड़ियों में कबड्डी के प्रति क्रेज देखने को मिल रहा हैं। अनेक खिलाड़ी राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में खेल चुके हैं। इसके साथ ही 2 से 3 खिलाड़ी नेशनल टीम में खेलने के लिए नेशनल लेवल पर आयोजित होने वाले कैंप में अपना प्रदर्शन कर चुके हैं।
मेट पर खेलना महंगा
जिला कबड्डी एसोसिएशन के सचिव सीपी जोशी का कहना है कि अब कबड्डी का खेल महंगा हो गया हैं। क्योंकि कबड्डी अब मिट्टी से मेट तक पहुंची गई हैं। इस खेल को लेकर पहले युवा अपना जोर मैदान में आजमाते थे। अब मेट पर कबड्डी खेली जाती हैं। मेट की कीमत 7 लाख रुपए तक होती हैं। मेट पर खेलने वाले खिलाड़ियों को भी अधिक खर्च करना पड़ता हैं। इसके कारण ज्यादा युवा इसमें भाग नहीं लेते हैं।
नेशनल व स्टेट लेवल के खिलाड़ी
कोटा के प्रांजल नागर कबड्डी नेशनल कैंप में भाग ले चुके हैं। इसके साथ ही अनिल कोचर, चिंटू कोचर, समीर मेहरा, हरिराम कोचर, महेन्द्र गुर्जर, अजय, समर नागर, अनुराग गौतम, मानव गौतम, स्टेट व ओपन स्टेट खेल चुके हैं।
जेके पवेलियन अंतरराष्ट्रीय खेल मैदान में कबड्डी का इनडोर स्टेडियम बनाया जा रहा हैं, जिसमें मेट पर कबड्डी खेली जाएगी और खिलाडियों को अभ्याय करवाया जाएगा। इससे कोटा में कबड्डी के खिलाड़ियों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इसके साथ ही युवाओं का रूझान कबड्डी की ओर बढ़ेगा।
-राजेन्द्र मीणा, कोच
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर खिलाड़ी अभी भी मिट्टी के मैदान में कबड्डी खेलते हैं। जब वह जिला लेवल या स्टेट लेवल की प्रतियोगिताओं में खेलने जाते हैं तो वहां उनको मेट पर खेलने को कहा जाता हैं। ऐसे में मिट्टी के मैदान में खेलने वाले खिलाड़ी मेट पर अच्छे से नहीं खेल पाते। मेट पर खिलाड़ी जूते पहनकर खेलता हैं,जबकी मैदान में नंगे पैर। इनडोर व मैदान के नियम भी अलग-अलग होते हैं। -देवेन्द्र नागर, नेशनल खिलाड़ी व कोच
पिछले कुछ वर्षों में छात्र-छात्राओं का रुझान कबड्डी की ओर बढ़ा हैं। हालांकि कोरोना वायरस के कारण पिछले दो वर्षों से कबड्डी के कोई मुकाबले नहीं हुए, लेकिन खिलाड़ी लगातार मेहनत कर रहे हैं। कोटा में कबड्डी का इनडोर स्टेडियम बनने से फायदा होगा। कोटा जिले में कबड्डी के तीन सौ से ज्यादा खिलाड़ी हैं।
-प्रांजल नागर, खिलाड़ी
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