देखे राजकाज में क्या है खास

पांच बनाम पैंतीस

देखे राजकाज में क्या है खास

दोनों दलों के ठिकाने के साथ ही सचिवालय में भी हर कोई टोह लेने में व्यस्त हैं। राज का काज करने वालों का काम करने से मन भी उचटा हुआ है। कुछ भाई लोग इसे राज से भी जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

पांच बनाम पैंतीस
गुजरे जमाने में राज का खास होने का दंभ भरने वाले शेखावाटी वाले भाईसाहब खाकी वालों के हत्थे चढ़े हैं, तभी से गलियारों में कई अफवाहों ने जन्म लिया है। दोनों दलों के ठिकाने के साथ ही सचिवालय में भी हर कोई टोह लेने में व्यस्त हैं। राज का काज करने वालों का काम करने से मन भी उचटा हुआ है। कुछ भाई लोग इसे राज से भी जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। खाकी वाले भाई लोग इसे अपने हिसाब से देख रहे हैं। उनकी मानें तो यह पांच बनाम पैंतीस साल की जंग है। जब से गुप्तचरों ने संदेशा भेजा है कि खादी वाले तो सिर्फ पांच साल के लिए आते हैं, पैंतीस साल तक तो मलाई का मजा ब्यूरोक्रेट्स ही लेते हैं। आईबी वाले भी तो कम नहीं हैं, 122 अफसरों की सूची पहले से ही तैयार कर बैठे थे।  

तलाश ए दस्तावेज
सूबे में मंगल ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इस बार तो दूसरे दिन बुध को ही ऐसा असर दिखाया कि कई बड़े लोगों का दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई। उड़े भी क्यों नहीं मामला एक दस्तावेज से ताल्लुकात रखता है। दस्तावेज भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि करोड़ों की कीमत का है। उसकी तलाश में भी लालकिले वाले शहर से बड़े गोपनीय तरीके से जाप्ता आया। जाब्ते ने भी सीधे नहीं, बल्कि कावड़ यात्रा के नाम जयकारों के साथ रवानगी ली। और तो और सूबे के गुप्तचरों को भी सूंघासांघी करने का वक्त तक नहीं मिला। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि दस्तावेजों का टारगेट पूरा करने के लिए अबकी बार मोतीडूंगरी वाले गणेशजी की यात्रा का सहारा ले लिया जाए, तो कोई अचंभा नहीं होगा।  सूबे में इन दिनों दोनों बड़े दलों में रिप्लेसमेंट को लेकर चर्चा जोरों पर है। रिप्लेसमेंट की राजनीति सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने के साथ ही हाथ वालों के दफ्तर में भी ऊंचाई पर है। राज का काज करने वालों के लंच क्लब में भी रिप्लेसमेंट राजनीति की चर्चा में है। काज करने वाले चटकारे ले रहे हैं कि भगवा में मैडम और हाथ में जादूगरजी के रिप्लेसमेंट के लिए पसीने तो खूब बहाए जा रहे हैं, लेकिन दोनों तरफ वफादारों का टोटा नहीं है, सो तोड़ किसी के पास नहीं है। जुमला है कि रिप्लेसमेंट तो संभव नहीं है, लेकिन दोनों दलों में धड़ाबंदी जरूर हो गई है।

आए दिल्ली से डॉक्टर
कमल वाली पार्टी में अंतर्कलह का रोग इतना फैल गया कि सूबे के सारे वैद्य और डॉक्टर फेल हो गए। एलोपैथिक और होम्योपैथिक के साथ आयुर्वेद की दवा भी बेअसर रही। रोग बढ़ता देख दिल्ली से जेपी नाम के नामी डॉक्टर को भेजा गया। जेपी छोटे-मोटे वैद्य नहीं, बल्कि  नाड़ी देख कर दवा-दारू देते हैं। पिछले दिनों झीलों की नगरी उदयपुर में बैठ कर कुछ बीमारों की नब्ज भी टटोली, पर पार नहीं पड़ी। तो इलाज के लिए उनको जड़ी बूटियां तलाशने जनपदों की तरफ कूच करना पड़ा। डॉक्टर साहब परेशान हैं कि दिल्ली में नाम से ही रोग का इलाज हो रहा था, यहां तो पोल खुलती नजर आ रही है।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि अमलतास और बबूल को लेकर है। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में आने वाला हर कोई वर्कर इस जुमले को सुने बिना घर नहीं लौट सकता। चूंकि इसे सुनाने वाले भी तो पार्टी के लिए सालों एड़ियां घिस चुके हैं। जुमला है कि बोते तो अमलतास हैं और उगते बबूल हैं, अब बबूल से बेस्ट रिजल्ट की उम्मीद करना भी बेइमानी से कम नहीं है, चूंकि उससे तो सिर्फ शूल ही मिलेगा।

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