चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का बयान, अगले कई दशकों तक बीजेपी कहीं नहीं जाने वाली...
जनता पीएम मोदी को उखाड़ फेंकेगी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने वाला
नई दिल्ली। आज से करीब 6 महीने पहले। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के प्रचार का शोर अपने शबाब पर था। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह हर रैली, हर इंटरव्यू, हर रोडशो में जोर-शोर से दावा कर रहे थे कि उनकी पार्टी 200 से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है। तब चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने डंके की चोट पर कहा था कि बंगाल में बीजेपी दहाई अंकों में सिमटने जा रही है, ऐसा नहीं हुआ तो वह ट्विटर भी छोड़ देंगे और चुनाव रणनीति बनाना भी। जब नतीजे आए तो पीके की बात सच निकली। अब वही पीके यूपी समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर बहुत बड़ी बात कही है। ऐसी बात जो विपक्ष का मनोबल तोड़ सकती है और बीजेपी समर्थकों में नया जोश भर सकती है।
क्या कहा है पीके ने?
प्रशांत किशोर ने गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि बीजेपी कई दशकों तक कहीं नहीं जाने वाली है। भारतीय राजनीति में आज उसका रुतबा वही है जो आजादी के बाद के शुरूआती 40 सालों तक कांग्रेस का था। पीके ने कहा कि जो लोग यह सोचते हैं कि लोगों में नाराजगी है और जनता पीएम मोदी को उखाड़ फेंकेगी तो ऐसा बिल्कुछ भी नहीं होने वाला है। हो सकता है कि लोग मोदी को उखाड़ फेंके भी लेकिन बीजेपी कहीं नहीं जाने वाली है।
टीएमसी के लिए हवा बनाने की रणनीति या राजनीति
हाल में जब जेएनयू के चर्चित पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थामा और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने पार्टी की विचारधारा पर चलने की शपथ ली तब इसके पीछे प्रशांत किशोर को माना गया था। तब पीके के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें परवान चढ़ रही थीं। पीके की टीएमसी के साथ बढ़ती नजदीकी से यह भी अटकलें लगती हैं कि ममता उन्हें राज्यसभा भेज सकती हैं। बंगाल में जीत की हैट्रिक लगाने के बाद जिस तरह से ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर टीएमसी को बीजेपी के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही हैं, उसके पीछे भी प्रशांत किशोर का दिमाग माना जा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस को चुभने वाले पीके के बयान उसी नैरेटिव को सेट करने की कोशिश है कि मोदी का मुकाबला ममता ही कर सकती हैं। हालांकि, प्रशांत किशोर जिस तरह बहुत तौलकर, पूरी गंभीरता और दृढ़ता से अपनी बात कहते हैं, उसे देखते हुए विपक्षी दल उनकी बातों को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं ले सकते। जब प्रतिद्वंद्वी मजबूत हो तो टक्कर के लिए मेहनत भी बहुत कड़ी करनी पड़ती है। पीके की बातों का सार भी यही है।
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