डरावनी तस्वीर पेश करते आत्महत्या के आंकड़े

2021 में कुल 42004 दिहाड़ी मजदूरों ने खुदकुशी की

डरावनी तस्वीर पेश करते आत्महत्या के आंकड़े

समाज विज्ञान के जानकारों के अनुसार देश में बढ़ती महंगाई तथा आम आदमी की लगातार घटती कमाई आत्महत्या के मामले बढ़ने का प्रमुख कारण है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2021 में भारत में कई कारणों से आत्महत्याओं के मामलों को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है, वह बेहद डरावनी तस्वीर पेश कर रही है। दरअसल देश में आत्महत्या के मामलों में हर साल बढ़ोतरी हो रही है और रिपोर्ट के मुताबिक हर रोज देशभर में 450 व्यक्ति आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या के ये आंकड़े डराने वाले इसलिए भी हैं, क्योंकि जहां वर्ष 2021 में पूरे देश में हुए करीब 4.22 लाख सड़क हादसों में कुल 1.73 लाख लोगों की मौत हुई, वहीं कम से कम 164033 लोगों ने तो आत्महत्या करके ही अपनी जीवनलीला समाप्त कर डाली। समाज विज्ञान के जानकारों के अनुसार देश में बढ़ती महंगाई तथा आम आदमी की लगातार घटती कमाई आत्महत्या के मामले बढ़ने का प्रमुख कारण है। दरअसल कमाई कम होने या रोजगार नहीं होने के कारण लोगों में तनाव बहुत बढ़ गया है, जिससे बहुत से मामलों में पारिवारिक क्लेश पैदा होता है और परिणामस्वरूप आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। वर्ष 2016 में जहां आत्महत्या के कुल 131008 मामले दर्ज हुए थे और 2017 में 129887 लोगों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2017 से 2021 तक ये मामले 26 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 1.64 लाख से भी ज्यादा हो गए। विशेषज्ञों के मुताबिक अवसाद और तनाव के कारण लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और जब व्यक्ति को परेशानियों से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर आता, ऐसे में वह आत्महत्या जैसा हृदय विदारक कदम उठा बैठता है। हालांकि जिन लोगों का मनोबल मजबूत होता है, वे प्राय: विकट परिस्थितियों से उबर भी जाते हैं लेकिन अवसाद के शिकार कुछ लोग विषम परिस्थितियों से लड़ने के बजाए हालात के समक्ष घुटने टेक स्वयं को मौत के हवाले कर देते हैं। आत्महत्या करने वालों में करीब 64 फीसदी यानी 1.05 लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम थी।

एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक बीते वर्ष देश में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 118979 पुरुष, 45026 महिलाएं और 28 ट्रांसजेंडर थे। आत्महत्या करने वाली आधी से भी ज्यादा 23178 गृहणियां थीं, जबकि 5693 छात्राओं और 4246 दैनिक वेतनभोगी महिलाओं ने आत्महत्या की।
 
गृहणियों द्वारा आत्महत्या के सर्वाधिक मामले तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्टÑ में क्रमश: 3221, 3055, 2861 दर्ज किए गए, जो गृहणियों द्वारा की गई आत्महत्या के मामलों का क्रमश: 13.9, 13.2 और 1.3 फीसदी है। आत्महत्या के मामलों में महिला पीड़ितों का अनुपात दहेज जैसे विवाह संबंधी मुद्दों, नपुंसकता और बांझपन में अधिक देखा गया। पेशेवर समूहों में स्वरोजगार करने वालों में भी आत्महत्या के मामले करीब 16.73 फीसदी बढ़े हैं। देश में 2020 में आत्महत्या के कुल 153052 मामले दर्ज हुए थे और 2021 में आत्महत्या की दर में 7.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 33.2 फीसदी लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण, जबकि 18.6 फीसदी ने बीमारी के कारण मौत को गले लगाया। आत्महत्या के अन्य मुख्य कारणों में 6.4 फीसदी मादक पदार्थों का सेवन और शराब की लत, 4.8 फीसदी विवाह संबंधी मुद्दे, 4.6 फीसदी प्रेम प्रसंग, 3.9 फीसदी दिवालियापन या कर्ज, 2.2 फीसदी बेरोजगारी, 1.6 फीसदी पेशेवर कैरियर की समस्या, 1.1 फीसदी गरीबी और 1 फीसदी परीक्षा में असफलता शामिल रहे। आत्महत्या करने वालों में 18-30 वर्ष से कम आयु वर्ग के 34.5 फीसदी और 30-45 वर्ष से कम आयु के 31.7 फीसदी लोग शामिल हैं, जबकि 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में 3233 आत्महत्याएं पारिवारिक समस्याओं के कारण, 1495 प्रेम संबंध और 1408 बीमारी के कारण हुई। एनसीआरबी के मुताबिक आत्महत्या की सर्वाधिक प्रवृत्ति महाराष्टÑ, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में देखी गई है। केवल इन पांच राज्यों में ही देशभर में आत्महत्या के कुल मामलों में से 50.4 फीसदी मामले दर्ज हुए, जबकि 49.6 फीसदी मामले 23 अन्य राज्यों और 8 केन्द्रशासित प्रदेशों में सामने आए। पिछले एक साल में उपरोक्त पांच राज्यों में क्रमश: 22207, 18925, 14965, 13500, 13056 लोगों ने आत्महत्या की, जो कुल मामलों का क्रमश: 13.5, 11.5, 9.1, 8.2 और 8 फीसदी है। प्रति एक लाख की आबादी पर आत्महत्या के मामलों की राष्टÑीय दर हालांकि 12 रही लेकिन कुछ राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में स्थिति बेहद चिंताजनक है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में यह दर 39.7, सिक्किम में 39.2, पुडुचेरी में 31.8, तेलंगाना 26.9 और केरल में 26.9 दर्ज की गई।

एनसीआरबी की रिपोर्ट में दिहाड़ी मजदूरों और कृषि श्रमिकों की आत्महत्या के मामले भी मन को विचलित करने वाले हैं। रिपोर्ट में यह चिंताजनक खुलासा हुआ है कि देशभर में आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा 25 फीसदी लोग दिहाड़ी मजदूर ही थे। 2020 में जहां कुल 33164 दिहाड़ी मजदूरों ने जीवन की परेशानियों से निजात पाने के लिए आत्महत्या का रास्ता चुना, वहीं 2021 में कुल 42004 दिहाड़ी मजदूरों ने खुदकुशी की। 

-योगेश कुमार गोयल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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