सीओपीडी से होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर, राजस्थान की भी स्थिति बेहद खराब
प्रदूषण और धूम्रपान है क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज़ यानी सीओपीडी रोग का बड़ा कारण
जयपुर। वर्ल्ड copd डे के अवसर आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ अस्थमा एवं स्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्र सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि"लगातार धुएं वाले कारकों के संपर्क में आने से और बार-बार लंग संक्रमण के संपर्क से अंतर्निहित सीओपीडी बढ़ सकता है जिससे फेफड़े का दौरा पड़ता है। सीओपीडी पर जागरूकता की कमी की वजह से लोग डॉक्टर्स के पास नहीं जाते हैं जो कि इसके रोकथाम में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सीओपीडी के लक्षणों की पहचान करना और लंग-अटैक होने पर चिकित्सक से समय पर सहायता प्राप्त करना इस रोग की प्रगति को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। यदि धूम्रपान करने वालों को यह पता हो कि इससे लंग-अटैक हो सकता है तथा जिसके लिए तत्काल चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता होती है, वे समय से चिकिसकीय सहायता ले लेंगे। रोग के निदान के लिए नियमित रूप से फेफड़ों के कार्य की जाँच तथा सीओपीडी के जोखिम कारकों कि जांच आवश्यक है।
फेफड़े के कार्य परीक्षण कि जांच स्पिरोमेट्री से करनी चाहिए जो कि सीओपीडी के निदान के लिए गोल्ड स्टैण्डर्ड है। हालांकि यह आमतौर पर नहीं जांचा जाता है, और निदान काफी हद तक रोगी के इतिहास और लक्षणों पर आधारित होता है। स्पिरोमेट्री नहीं करने की वजह से सीओपीडी के बहुत से मामले जांच में छूट सकते हैं।
डायग्नोसिस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ वीरेंद्र सिंह ने आगे कहा, "प्रारंभिक स्क्रीनिंग और डायग्नोसिस फेफड़ों के अटैक के रोग के बोझ को कम करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्वसन रोग संबंधी लक्षणों वाली आबादी में स्पिरोमेट्री टेस्ट महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गलत डायग्नोसिस से बचाती है और वायु प्रवाह सीमा की गंभीरता का मूल्यांकन करने में सहायता करती है। जबकि सांस की बीमारियों के कारण पूरी तरह से आपके नियंत्रण में नहीं हो सकते हैं फिर भी समय पर पता लगाने के लिए सतर्क और जागरूक रहना महत्वपूर्ण है।
Comment List