छलावा बनी फसल बीमा योजना, मुआवजा के लिए चक्कर लगाने की मजबूरी
राहत के नाम पर ठंडे छींटे
जिले में ब्लॉक स्तर पर किसानों की समस्या सुनने के लिए बीमा कंपनी के अधिकृत प्रतिनिधि तक नहीं हैं। इस कारण किसान पिछले दिनों बारिश के कारण नुकसान के दायरे में आई फसलों की सूचना तक बीमा कंपनी को नहीं दे पा रहे हैं। इससे जिले के किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
कोटा। इस बार प्रदेश में मानसून भले ही मेहरबान रहा, लेकिन अन्तिम दौर में वह किसानों के चेहरों पर मायूसी दे गया। पिछले दिनों हुई बरसात के कारण जिले के कई हिस्सों में खेतों में खड़ी फसल बर्बाद हो गई। अपनी हाड़तोड़ मेहनत का यह परिणाम देखकर किसान सदमे में हैं। खेतों में पानी भर जाने से सोयाबीन, मक्का, धान, उड़द, मूंग समेत खरीफ की कई फसलों को नुकसान पहुंचा है। राज्य सरकार यों तो ऐसी प्राकृतिक आपदा के मौकों पर किसानों की मददगार बनने का दावा करती है, लेकिन राहत के नाम पर ठंडे छींटों के अलावा कुछ नहीं होता। इस बार भी प्रदेश में खरीफ में करीब 66 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में खड़ी फसल का बीमा किया गया है। इसमें कोटा जिले में करीब दो लाख हैक्टेयर क्षेत्र शामिल है। सरकार ने फौरी राहत के नाम पर प्रभावित क्षेत्रों में फसलों के खराबे को लेकर सर्वे शुरू कराने का दावा किया है, लेकिन फसल बीमा की जमीनी हकीकत दूसरी ही है।
किसानों का आरोप, टोल फ्री नम्बर बंद
किसानों का कहना है कि फसल बीमा के एवज में मुआवजे के नाम पर उन्हें चक्कर लगाने को मजबूर किया जाता हैै। हर साल बीमा कम्पनियां टोल फ्री नम्बर बदल देती हैं। इसके अलावा ज्यादातर यह टोल फ्री नम्बर बंद रहता है। किसानों को फसल खराबे की सूचना 72 घंटे के भीतर देनी होती है। यदि वह चूक जाता है तो फिर कोई सुनवाई नहीं करता। भले ही हर ब्लॉक स्तर पर बीमा प्रतिनिधि होने का दावा किया जाता है, लेकिन ये प्रतिनिधि कभी इलाके में नहीं मिलते। ऐसे में खराबे के समय ये बीमा कंपनियां किसानों के घावों पर मरहम लगाने के बजाय नमक डालने जैसा ही काम कर रही हैं।
साढ़े 27 हजार हैक्टेयर में नुकसान
जिले में ब्लॉक स्तर पर किसानों की समस्या सुनने के लिए बीमा कंपनी के अधिकृत प्रतिनिधि तक नहीं हैं। इस कारण किसान पिछले दिनों बारिश के कारण नुकसान के दायरे में आई फसलों की सूचना तक बीमा कंपनी को नहीं दे पा रहे हैं। इससे जिले के किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। जिले में पिछले दिनों हुई बारिश के कारण करीब साढ़े 27 हजार हैक्टेयर में खरीफ की फसलों में नुकसान हुआ है। इंश्योरेंस कंपनी का टोल फ्री नम्बर बंद होने के कारण कुछ किसान ही खराबे की सूचना दे पाए हैं।
मुआवजे से बचने की कवायद
किसानों का आरोप है कि प्राकृतिक आपदा के समय किसानों को मुआवजा नहीं देना पड़े इसके लिए कंपनी अपने टोल फ्री नम्बर को ही अक्सर बंद रखती है। वहीं अधिकारी भी फोन नहीं उठाते हैं। नतीजन नुकसान होने पर किसान अपनी शिकायत आॅनलाइन रिकॉर्ड नहीं करवा पाता है। हालांकि, सीजन की शुरुआत के समय बीमा कंपनी का जागरुकता रथ गांव-गांव जाता है लेकिन इसके बाद बीमा कंपनी गांवों से मुंह मोड़ लेती है।
प्रीमियम ज्यादा से, मुआवजा कम को
किसानों ने बताया कि हर सीजन में बीमा कंपनी जिले के हजारों किसानों से प्रीमियम लेती है, लेकिन खराबा होने पर मुआवजा कुछ किसानों को ही मिल पाता है। बीमा कंपनी रबी और खरीफ दोनों सीजन के दौरान बतौर प्रीमियम किसानों से लाखों रुपए लेती है। बीमा कंपनी फसल बीमा शुरू करने से पहले ब्लॉक स्तर पर कंपनी के प्रतिनिधि लगाने की घोषणा तो करती है लेकिन, ब्लॉक स्तर पर कोई प्रतिनिधि नहीं मिलता है।
लाइन बिजी होने पर टोल फ्री नंबर स्विच आॅफ बताता होगा। किसान ई-मित्र या एप पर भी आवेदन कर सकते हैं। बीमा का लाभ उठाने के लिए किसानों को ही जागरूक होना होगा।
-रामकुमार गुप्ता, कृषि पर्यवेक्षक
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