सतरंगी सियासत

तमिलनाडु से नई आहट, वहां डीएमके के नेता ही अजीबो गरीब बयान दे रहे

सतरंगी सियासत

शशि थरुर कांग्रेस की आंतरिक राजनीति के शिकार तो नहीं हो गए? क्योंकि बीते साल अक्टूबर में उन्होंने पूरे जोश से संगठन चुनाव लड़ा था। अध्यक्ष पद हुए चुनाव में उन्होंने एक हजार से ज्यादा मत पाए।

विपक्षी एकता!
कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर 23 दलों को आमंत्रित किया। यह प्रयास राहुल गांधी का नेतृत्व मनवाने का माना जा रहा। लेकिन टीआरएस एवं आप को नहीं बुलाया। हालांकि आरजेडी एवं जदयू ने उतनी रूचि नहीं दिखाई। तो सपा एवं बसपा ने भी दूरी बनाई। असल में, कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल की पोजीशन छोड़ने को तैयार नहीं। तो कई क्षत्रपों को कांग्रेस के साथ जाने से ही झिझक। लेकिन अब मुकाबला भाजपा से। सो, उनका असमंजस समझने लायक। फिर कई क्षत्रप पीएम पद से नीचे सोच नहीं पाते। जबकि कांग्रेस राहुल गांधी से अलग नहीं सोच पाती। सो, बात भले ही एकता की। लेकिन भाजपा से मुकाबले के लिए सबसे पहले विपक्षी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (सीएमपी) जरुरी। जिस पर बात नहीं हो रही। इसके बजाए सभी अपनी ताकत बढ़ाने में मशगूल। क्योंकि जब खुद की ताकत होगी। तब ही मोल भाव करने की भी स्थिति होगी।

अबके पूरी तैयारी!
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद अब कांग्रेस का ‘हाथ से हाथ जोड़ो अभियान’। मतलब इस राजनीतिक अभियान के बहाने कांग्रेस अपने आलोचकों को जवाब देने की पूरी तैयारी में। टारगेट लोकसभा चुनाव-2024। इस बार कोई भ्रम या असमंजस नहीं। राहुल गांधी करीब 3500 किलोमीटर से ज्यादा चल चुके होंगे। इसीलिए अब उन पर राजनीति के प्रति गंभीर नहीं होने का आरोप भी अब चस्पा नहीं होगा। इसके जरिए उन्होंने कई कयासों को भी धो दिया। अब यह सभी मान भी रहे। लेकिन फिर से सवाल वही। चुनाव के दौरान कांग्रेस को मतदता वोट करेंगे या नहीं? मतलब इतनी बड़ी कवायद वोट में तब्दील होगी या नहीं? लेकिन पार्टी के रणनीतिक जिस तरह से आत्मविश्वास जतला रहे। उससे बहुत कुछ संकेत मिल रहे। हां, चुनाव में हार जीत अपनी जगह। लेकिन इस बार कांग्रेस जमीन पर प्रयास करती हुई दिख रही। जो उसके सभी समर्थक एवं प्रशंसक चाहते।

क्या होगा?
राजधानी दिल्ली में मोदी कैबिनेट में फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो चली। सो, कुछ चौंकाने वाले नाम सामने आएंगे। जो कभी चर्चाओं में भी नहीं रहे होंगे। जैसा कि पीएम मोदी का ट्रेक रिकॉर्ड। वहीं, संगठन में भी कुछ चेहरे ऐसे आएंगे। जिनकी मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं रही होगी। हां, मीडिया के सामने फिर से मोदी की गोपनीयता की शपथ वाला संकल्प तोड़ने की चुनौती। असल में, मीडिया को खबर तब ही लगती। जब शीर्ष नेतृत्व की ओर से निर्णय बता दिया जाता। मोदी के शासनकाल में मीडिया इससे पहले कोई भी सूचना या जानकारी अनुमानित नहीं कर पा रहा। कई दिग्गज इससे भी परेशान। सो, जहां सरकार के लिए गोपनीयता। तो मीडिया के लिए सूचना बाहर लाने की चुनौती। हां, कई नेता हवन, पूजा, मंदिर दर्शन अथवा दुआओं में मशगूल बताए जा रहे। किसी को संकेत का, तो किसी को पीएमओ से कॉल का इंतजार रहेगा।

किनारे तो नहीं?
शशि थरुर कांग्रेस की आंतरिक राजनीति के शिकार तो नहीं हो गए? क्योंकि बीते साल अक्टूबर में उन्होंने पूरे जोश से संगठन चुनाव लड़ा था। अध्यक्ष पद हुए चुनाव में उन्होंने एक हजार से ज्यादा मत पाए। जिसका किसी को अनुमान नहीं था। हालांकि उस समय कयास लगे। पार्टी में उन्हें सम्मान मिलेगा। क्योंकि कांग्रेस का दावा। वह एक लोकतांत्रिक दल। लेकिन अब लग रहा थरुर बियांबान में। वह केरल में भी विवादों में। कभी उनके भाजपा के करीब जाने की भी चर्चाएं। ऐसा पहले भी हुआ। लेकिन अचानक सुनंदा पुष्कर का देहांत हो जाने के कारण योजना खटाई में पड़ गई बताई। फिलहाल थरुर की उतनी तवज्जो नहीं मिल रही। वह केरल में नायर समुदाय पर बयान देकर भी चर्चा में आ चुके। उनके बयान को पार्टी से मोहभंग से जोड़कर देखा गया। लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता पर किसी को भी शुबा नहीं। जो उनकी अलग पहचान।

वादा पूरा किया...
हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने वादे के मुताबिक ओपीएस लागू कर दी। कैबिनेट की पहली बैठक में जनता से किए गए इस वादे पर मोहर लगा दी गई। अब वचन तो पूरा कर दिया। लेकिन कहीं ऐसा न हो कि राज्य की अर्थव्यवस्था ही हिचकोले लेने लगे। क्योंकि इस निर्णय का असर दूरगामी होने वाला। आने वाली सरकारों को प्रदेश चलाने में परेशानी संभव। इसका अनुमान अभी से लगाया जा रहा। फिर सामाजिक कल्याण की योजनाओं एवं गरीब, पिछड़े एवं वंचित वर्गों के लिए लिए चलाई जाने वाली योजनाओं पर भी इस निर्णय का असर होने की संभावना। एक बड़ी धनराशि ओपीएस की मद में जाएगी। जिससे बाकी के खर्चों में कटौती की संभावना। खैर, कांग्रेस इसके जरिए केन्द्र सरकार पर भी दबाव बनाने की कोशिश में। लेकिन यह फैसला कितना वोटों में तब्दील होगा। भविष्य में होने वाले चुनावों में यह जनता की राय बताएगी।

नई आहट!
तमिलनाडु से नई आहट। वहां डीएमके के नेता ही अजीबो गरीब बयान दे रहे। राज्यपाल को ही मारने की धमकी। असल में, विवाद भले ही उपरी लग रहा हो। लेकिन असली वजह कुछ और। जहां एआईएडीएमके में ‘अम्मा’ जयललिता नहीं रहीं। तो वहां विभाजन एवं सिर फुटौव्वल के हालात। वहीं, डीएमके की राजनीतिक विरासत सीएम स्टालिन के बेटे संभालने को तैयार हो रहे। कांग्रेस बीते पचास सालों से सत्ता से बाहर। तो भाजपा लगातार अपना जनाधार बढ़ाती हुई दिख रही। जिससे एआईएडीएमके से ज्यादा डीएमके परेशान। तमिलानाडु में हिन्दी का मुखर विरोध होता रहा। फिर सीएम भी कुछ न कुछ बोलते ही रहते। इस बीच भाजपा के प्रदेश मुखिया अन्नामलाई राज्य की यात्रा पर। जिन्हें अपेक्षा से ज्यादा तवज्जो एवं प्रचार मिल रहा। सो, तमिलनाडु में डीएमके को कुछ नया एवं अलग होने का अंदेशा। शायद वही चिंता बाहर आ रही। इसीलिए कुछ न कुछ हो ही रहा।
-दिल्ली डेस्क 

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