सतरंगी सियासत

डिजीटल भाजपा

सतरंगी सियासत

देशभर में उसके 18 करोड़ कार्यकर्ता। जिसमें से तीन करोड़ किसी न किसी जिम्मेदारी पर। जिनसे सूचनाएं साझा करने में भी अल्प समय की जरुरत। साथ में उसकी मॉनिटरिंग भी।

डिजीटल भाजपा

भाजपा संगठनात्मक कामकाज में नित नए प्रयोग करने से नहीं हिचकिचाती। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का जितना उपयोग भाजपा कर रही। बाकी दल उसके आसपास भी नहीं। सोशल मीडिया के जरिए कार्यकतार्ओं एवं नेताओं के बीच आपसी संपर्क एवं संवाद का बेहतरीन तरीका भाजपा ने ईजाद किया हुआ। एक क्लीक पर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता से नई दिल्ली से संपर्क साधना अब आसान। उपर से भाजपा का दावा। देशभर में उसके 18 करोड़ कार्यकर्ता। जिसमें से तीन करोड़ किसी न किसी जिम्मेदारी पर। जिनसे सूचनाएं साझा करने में भी अल्प समय की जरुरत। साथ में उसकी मॉनिटरिंग भी। कोई गड़बड़ी होने की संभावना भी कम ही। मतलब न तो दिल्ली से और न ही बूथ स्तर से किसी प्रकार की संवादहीनता की गुंजाईश। फिर भाजपा कैसे दावा नहीं करे कि वह दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल। इसके लिए ह्यसरलह्ण एप। जो इस प्रकार की सुविधा दे रहा।

स्वाद कसैला!

भारत जोड़ा यात्रा की शुरूआत में सबसे पहले राहुल गांधी एक विवादास्पद पादरी से मिले। फिर आरएसएस की निक्कर में आग लगती हुई फोटो वायरल हुई। बाद में महाराष्ट्र में वीर सावरकर पर टिप्पणी ने राज्य के कांग्रेस नेताओं को असहज किया। और अब जब यात्रा अंतिम पड़ाव पर। तब दिग्विजय सिंह ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग लिए। लेकिन समझने वाले क्या इससे मान जाएंगे? यह सेल्फ गोल नहीं तो और क्या? लेकिन जब भाजपा नेताओं ने यात्रा पर बोल दिया। तो समझो कांग्रेस का यह नवाचार सफल। यानी मीडिया में कुछ समय के लिए सुर्खियां बन गईं। लेकिन क्या इसी से काम चल जाएगा? या बूथ तक वोटर लाने में सारी उर्जा लगाई जाएगी। क्योंकि हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के जरिए पार्टी वोटर तक पहुंचने की कवायद शुरू कर चुकी। ऐसी बयानबाजी का इसमें क्या योगदान होगा? अलावा सारे अभियान का स्वाद कसैला करने के!

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मेयर का चुनाव...
राजधानी दिल्ली में दूसरी बार मेयर का चुनाव नहीं हो सका। यदि पद ह्यआपह्ण और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा का सवाल बन रहा। जिसमें उपराज्यपाल की भूमिका भी अहम। इसीलिए ह्यआपह्ण उन पर केन्द्र के इशारे पर काम करने का आरोप लगा रही। लेकिन केन्द्र ने उल्टे उपराज्यपाल की ताकत बढ़ा दी। जिससे आप नेताओं का पारा और चढ़ गया। लेकिन करे भी क्या? केन्द्र शासित प्रदेशों के कानून-कायदों के मामले में दिल्ली का मामला अलहदा। यह सब अरविंद केजरीवाल भी जानते। इसीलिए बयानबाजी के अलावा कुछ बचता भी नहीं। वहीं, भाजपा प्रतिद्वंदी ह्यआपह्ण से मिल रही मात से वह खुन्नस छुपा नहीं पा रही। इसीलिए हर प्रकार के दांव पेंच भाजपा अब तक आजमाती रही। माना जा रहा। अब मेयर का चुनाव कुछ समय के लिए और टल गया। जो कम से कम भाजपा के लिए फायदेजनक। वहीं, आप जैसे दल के लिए जिज्ञासा का सबब।

मतलब देरी होगी!
सुरक्षा का हवाला देकर राहुल गांधी ने शुक्रवार को अचानक भारत जोड़ो यात्रा बीच में ही रोक दी। जिसका राज्य प्रशासन द्वारा खंडन किया गया। वहीं, दिल्ली में भाजपा भी कूद गई। कहा, पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम के बावजूद राहुल गांधी गलत बयानी कर रहे। लेकिन इसका कारण कुछ और! असल में, कांग्रेस की यात्रा जम्मू-कश्मीर में हो और कोई हंगामा न हो। ऐसा कैसे संभव? फिर भाजपा कहां पीछे रहने वाली। सो, उसने भी वही किया। जो अपेक्षित था। केन्द्र सरकार का दावा। जम्मू-कश्मीर में हालात पहले के मुकाबले सामान्य होने की ओर बढ़ रहे। जिसका कांग्रेस प्रतिवाद करेगी ही। फिर भाजपा राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही। लेकिन कांग्रेस की उसके मुकाबले धीमी। फिर पार्टी की पतली हालत अलग से। ऐसे में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही अपनी मंशा में सफल दिख रहे! मतलब चुनाव में देरी संभव। जो दोनों दलों के लिए मुफिद लग रहा।

एक और रिपोर्ट!
पहले गुजरात हिंसा पर बीबीसी की रिपोर्ट आई। जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका पर संदेह जताया गया। अब उद्योगपति गौतम अडाणी को लेकर भी एक रिपोर्ट चर्चा में। रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह कि अडाणी की कंपनी ने फजीर्वाड़ा करके भारी भरकम ऋण लिया हुआ। जिससे सरकार को भी नुकसान हो रहा। पर सवाल यह भी कि एक रिपोर्ट ब्रिटेन से और दूसरी रिपोर्ट अमरीका से आई। जिनमें भारत के पीएम और दुनियां में तेजी से उभरते हुए भारतीय उद्योगपति को लेकर तथ्यों को उजागर किया गया। लेकिन इसमें भी साजिश की बू। साल 2024 देश की राजनीति और भविष्य के लिए बेहद अहम। क्योंकि इस साल आम चुनाव। जैसा कि अनुमान। पीएम मोदी विपक्ष के मुकाबले आगे। ऐसे में विदेशी ताकतें क्यों चाहेंगी कि भारत लगातार मजबूत हो। उनका यही इरादा तो नहीं? जिससे कारण ऐसी रिपोर्ट्स बाहर आ रहीं। जिनकी टाइमिंग गौर करने लायक।

कब तक?
बिहार में जदयू की सियासी रार अब सतह पर। ऐसे में कयास। महागठबंधन सरकार कब तक चलेगी? जदयू से कौन कब बाहर होगा? या फिर पार्टी टूटेगी? सीएम नीतीश और उपेन्द्र कुशवाह एक दूसरे पर तीर चला रहे। आमने सामने बैठकर संवाद करने के बजाए जरिया मीडिया को बनाया जा रहा। मतलब बात वहां तक पहुंच चुकी। जहां से लौटना अब मुश्किल। फिर इन दिनों मोदी कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा जोरों पर। जिसमें चिराग पासवान और आरसीपी सिंह की एंट्री की चर्चा। फिर चर्चा तो उपेन्द्र कुशवाह और जीतनराम मांझी की भी। इससे राजद नेता तेजस्वी भी परेशान। क्योंकि उनके भी सपने। जो पूरे होने से पहले ही तिरोहित होने के आसार बन रहे। हां, नीतीश एक बार फिर से भाजपा को चारा डाल रहे। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने अकेले चलने का तय कर लिया। फिर महागठबंधन सरकार कब तक चलेगी? इसी पर जानकार कयास लगा रहे।

छटपटाहट का आलम!
महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे जमीनी राजनीति से दो चार हो रहे। मुंबई महानगर पालिका पर कब्जा बनाए रखना। मानो ठाकरे के लिए अस्तित्व का सवाल। इसीलिए हर वह तरकीब अपना रहे। जिससे बीएमसी में उनका दल मजबूत रहे। इससे पहले राज्य का मुख्यमंत्री बनने के लिए भाजपा का साथ ही नहीं छोड़ा। बल्कि विचारधारा के स्तर पर भी समझौता करते हुए कांग्रेस एवं एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल हो गए। इसी का परिणाम हुआ कि पार्टी टूट गई और सरकार भी गिर गई। अब बीएमसी में बने रहने के लिए ठाकरे कांग्रेस एवं एनसीपी से परे जाकर ह्यशिवशक्तिह्ण का नारा देकर ह्यभीम शक्तिह्ण (प्रकाश अंबेडकर की पार्टी) के साथ जा मिले। इससे अब एमवीए भी खतरे में। लेकिन पार्टी को बचाए रखने के लिए बीएमसी सबसे जरुरी। आखिर सत्ता के लिए छटपटाहट का आलम तो देखिए! कहां से कहां आ गए?
-दिल्ली डेस्क 

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