चंबल में घुल रहा प्रदूषण का जहर

राजस्थान की 14 प्रदूषित नदियों में चंबल भी शुमार

चंबल में घुल रहा प्रदूषण का जहर

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की रिपोर्ट में चम्बल नदी को प्रदूषित माना है। बीते वर्षों के मुकाबले में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ा है। ऐसे में चम्बल में बढ़ता जलीय प्रदूषण चम्बल अभयारण्य के घड़ियाल, मगरमच्छ व अन्य दुर्लभ जलीय जीवों के लिए खतरे की घंटी है। चम्बल के पानी में प्रदूषण जलीय जीवों के लिए काफी चिंताजनक है।

कोटा। राजस्थान और मध्यप्रदेश के लिए जीवनदायिनी चंबल नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पानी में जी रहे जीवों की सांसों पर संकट बना हुआ है। चंबल नदी में जलीय जीवों की भरमार हैं। पूर्व में चंबल का स्वच्छ पानी जलीय जीवों के लिए संजीवनी का काम कर रहा था। अब पानी में बढ़ती प्रदूषण की मात्रा इनके लिए दुखदायी बनती जा रही है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की ओर से अभी हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार चंबल के पानी में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में इसमें हुई वृद्धि अब खतरे का संकेत दे रही है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की रिपोर्ट में चम्बल नदी को प्रदूषित माना है। बीते वर्षों के मुकाबले में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ा है। ऐसे में चम्बल में बढ़ता जलीय प्रदूषण चम्बल अभयारण्य के घड़ियाल, मगरमच्छ व अन्य दुर्लभ जलीय जीवों के लिए खतरे की घंटी है। चम्बल के पानी में प्रदूषण जलीय जीवों के लिए काफी चिंताजनक है।

इन जलीय जीवों की भरमार
चंबल नदी कोटा शहर के लोगों के साथ जीवों के लिए भी संजीवनी का कार्य कर रही है। यहां पर घड़ियाल, मगरमच्छ, डाल्फिन और कछुओं की भरमार है। पानी की उपलब्धता भरपूर होने के कारण इन जलीय जीवों का कुनबा तेजी से बढ़ा है। इनके अलावा सर्दी के मौसम में चंबल का रूख करने वाले प्रवासी पक्षियों की तादात में भी बढ़ोतरी होती जा रही है। यहां पर इंडियन स्कीमर, रिवर टर्न, ब्लैक बेलीड जैसे पक्षियों ने भी चंबल नदी को अपना आशियाना बना रखा है। यदि चंबल नदी में प्रदूषण की यह रफ्तार रही तो आगामी दिनों में इन जलीय जीवों के जीवन पर संकट आ सकता है

सरकार ने भी माना प्रदूषित हैं नदियां
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से नदियों और अन्य जल स्रोत के जल की गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है। गत नवम्बर 2022 में बोर्ड ने इसको लेकर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में जैविक प्रदूषण के संकेतक जैव-रासायनिक आॅक्सीजन मांग (बीओडी) के संदर्भ में परिणाम जारी किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश की 279 नदियों में 311 प्रदूषित खंडों की पहचान की गई है। इनमें राजस्थान की बनास, बांडी, जवाई, चम्बल, कोठारी, लूनी, गंभीरी, बांदी, खारी, माही और पीपलाद नदी के खंड भी शामिल हैं। राजस्थान से बहने वाली 14 नदियों में कई खंड औद्योगिक और अन्य कारणों से प्रदूषित हैं। यह जानकारी हाल ही में केद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने लोकसभा में दी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश में चम्बल, बेतवा, खान, काशीपुरा, हिरान सहित कई नदियों में प्रदूषण है।

गंदा पानी हो रहा समाहित
कोटा में चंबल में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में यदि जल्द ही प्रदूषण को कम करने की दिशा में काम नहीं किया गया तो जिले में भी हालात खराब हो सकते है। रिपोर्ट में कोटा में 22 और केशोरायपाटन में छह अत्यधिक प्रदूषित ड्रेन चिन्हित किए गए हैं। इनकी नियमित रूप से राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा जांच की जा रही है। कोटा शहर के नालों का गंदा पानी चंबल में समाहित होने के कारण पानी में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। हालांकि इस समय शहर में सीवरेज लाइन डालने का कार्य प्रगति पर है। यह कार्य पूरा होने के कारण प्रदूषण में कमी होने की उम्मीद है।

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ऐसे बढ़ रहा प्रदूषण का ग्राफ
प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की ओर से वर्ष 2020 में चम्बल नदी के पानी के नमूने संकलित किए गए थे। उस समय कोटा की चम्बल नदी में बॉयो केमिकल आॅक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर 5.5 सामने आया था। इसके बाद वर्ष 2022 में भी पानी के नमूने लिए गए थे। इन नमूनों की जांच करने पर पता चला कि बीओडी का आंकड़ा 6.00 तक पहुंच गया है। अब नई रिपोर्ट में वर्तमान में कोटा में चंबल के पानी में बीओडी का स्तर 6 से अधिक पाया गया। उल्लेखनीय है कि एक लीटर पानी में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम होने पर उसे सुरक्षित माना जाता है। इससे जाहिर है कि कोटा में चंबल के पानी में प्रदूषण की स्थिति बढ़ रही है।

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इतनी है बॉयो केमिकल आॅक्सीजन डिमांड 
2020 - 5.5
2022 - 6.0
2023 - 6.20

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इनका कहना है
प्रदूषण की स्थिति का पता लगाने के लिए चम्बल नदी से पानी के सैंपल लिए गए थे। सैंपल की जांच में सामने आया कि नदी में बॉयो केमिकल आक्सीजन डिमांड यानी प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पानी में प्रदूषण की मात्रा बढ़ना चिंताजनक है।
-अनुराग कुमार, पर्यावरण अभियंता प्रदूषण नियंत्रण मंडल

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