
रंगोत्सव की आखिरी कड़ी है रंग पंचमी
वास्तव में रंग पंचमी के दिन देव होली का उत्सव मनाते हुए रंगों की जगह गुलाल या सूखे रंगों को आसमान की तरफ उछालकर हवा में उड़ाया जाता है।
होली के पर्व के आखिरी पड़ाव के रूप में मनायी जाने वाली देव होली या रंग पंचमी देवताओं के साथ मनुष्यों द्वारा खेला जाने वाला रंग पर्व है। लेकिन देव होली में या रंग पंचमी में आमतौर पर पानी वाले रंगों का इस्तेमाल नहीं करते, सिर्फ गुलाल से होली खेलने की परंपरा है। लेकिन गुलाल लोग एक दूसरे पर नहीं लगाते, न एक दूसरे पर फेंकते हैं। वास्तव में रंग पंचमी के दिन देव होली का उत्सव मनाते हुए रंगों की जगह गुलाल या सूखे रंगों को आसमान की तरफ उछालकर हवा में उड़ाया जाता है।
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक रंग पंचमी के दिन देवता आसमान से उतरकर मनुष्यों के साथ अदृश्य रूप में होली खेलते हैं या रंगोत्सव मनाते हैं। रंग पंचमी का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है। मथुरा वृंदावन में इस दिन हुरियारे खूब गुलाल हवा में उड़ाते हैं। चारो तरफ वातावरण में इंद्रधुनषी रंग छा जाते हैं। वैसे ब्रज क्षेत्र में पंचमी के साथ-साथ कुछ लोग चैत्र माह की अष्टमी को भी रंग पर्व मनाते हैं। एक मान्यता के मुताबिक राधा रानी एक बार भगवान श्रीकृष्ण से अष्टमी के दिन होली खेलने आयी थीं। इसलिए ब्रज क्षेत्र में कुछ लोग चैत्र अष्टमी पर होली पर्व का औपचारिक समापन करते हैं।
रंग पंचमी के दिन यानी देव दिवाली की तरह देवताओं के साथ रंगोत्सव बहुत ही शुभ होता है। धार्मिक मान्यता है कि इससे सुख, समृद्धि और वैभव का विस्तार होता है। घर में धन, समृद्धि बढ़ती है और यह भी माना जाता है कि जब देवताओं के साथ खेली गई होली के रंग और गुलाल हवा में उड़ते हैं तो वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा का माहौल बनता है। इससे लोगों में सद्विचार या सकारात्मकता बढ़ती है तथा तमो और रजो गुण नष्ट होते हैं।
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