कृषि अधिकारी से वैज्ञानिक बनने की दौड़ में शामिल बेटियां

उच्च शिक्षा में बदला टेÑंड, रिसर्च में नामुमकिन को मुमकिन बना रहीं हाड़ौती की लाडलियां

कृषि अधिकारी से वैज्ञानिक बनने की दौड़ में शामिल बेटियां

कृषि में लगातार अनुसंधान किए जा रहे हैं। नई तकनीकों का विकास कर रिसर्च की जा रही है। जिसमें बेटियां भी अहम भूमिका निभा रहीं हैं। जिसका प्रत्यक्ष उदारहण कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में देखने को मिले।

कोटा। उच्च शिक्षा के हर क्षेत्र में बेटियां कीर्तिमान रच रही हैं। इंजीनियर-डॉक्टर से एक कदम आगे बढ़कर अब कृषि अनुसंधान की दौड़ में भी शामिल हो गई हैं। कृषि में लगातार अनुसंधान किए जा रहे हैं। जिसका प्रत्यक्ष उदारहण कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में देखने को मिले। विवि में कोटा काबूली चना-3 और कोटा उड़द-5 किस्में विकसित की गई हैं। वहीं, फसल सुधार, फसल उत्पादन, पौध संरक्षण के लिए 30 तरह की नई तकनीकों का विकास कर रिसर्च की जा रही है। जिसमें बेटियां भी अहम भूमिका निभा रहीं हैं। इन रिसर्च से उत्पादन, उत्पादकता व आय में वृद्धि होगी। इतना ही नहीं, बेटियों ने अपने जुनून और मेहनत के दम पर दिमागी प्रतिस्पर्दा का उच्च शिक्षा में ऐसा बैंचमार्क स्थापित किया, जिसे सुनहरे भविष्य के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। 

आलू को अगेती अंगमारी रोग से बचाया
कोटा कृषि विश्वविद्यालय की गोल्ड मेडलिस्ट छात्रा रितिका हाड़ा ने आलू की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले अगेती अंगमारी रोग से किसानों को राहत दिलाने के लिए अनुसंधान किया। दिन-रात रिसर्च में बीत गए। आखिरकार वो पल भी आया जब फसल पर बायोलॉजिकल बदलाव से आलू रोग मुक्त हुआ। रितिका कहती हैं, हाड़ौती की मिट्टी आलू की पैदावार के लिए अनुकूल है। यहां की मिट्टी में ग्रोथ करता है। लेकिन अगेती अंगमारी रोग से किसान इस कदर परेशान थे कि वे आलू की खेती बीच में ही छोड़ दूसरी खेती करने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में मन में सवाल थे कि यह रोग कैसे और क्यों होता है। इसका इलाज ढूंढने की दिशा में अनुसंधान शुरू किया। फसल में कैमिकल के उपयोग रोक बायोलॉजिकल बदलाव किए तो ट्राईकोडर्मा नामक फफूंदनाशी का इजाद हुआ। यह फफूंदनाशी है, जिसके उपयोग से  अंगती रोग को बढ़ने से रोकने में सफलता मिली। रितिका वर्तमान में उदयपुर में कृषि अधिकारी है। 

गर्मियों में भी मूंग का उत्पादन किया संभव 
एग्रीकल्चर यूनिवसिर्टी की गोल्ड मेडलिस्ट नीलम नामा ने अपनी रिसर्च के दम पर गर्मियों में भी मूंग की फसल होना संभव कर दिखाया। नीलम कहती हैं, किसानों की धारणा है कि गर्मी में मूंग की फसल का उत्पादन नहीं हो सकता, जबकि यह गलत है, दो माह में ही फसल तैयार हो जाती है, यह रिसर्च में साबित हो चुका है। उन्होंने अनुसंधान कर मंूग में नाइट्रोजन का फिक्सेशन व फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ा दी। जिससे फसल की न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ी बल्कि भूमि की उर्वरकता में बढ़ोतरी हुई। इसके बाद गर्मी में फसल को सूखे लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए दो रसायन पोटेशियम क्लोराइड व सोडियम सिलेनाइट का स्प्रे का एक्सप्रीमेंट किया जो सफल रहा। नीलम  वर्तमान में बारां जिले में कृषि अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। 

खरपतवार नियंत्रण के लिए किया अनुसंधान
कोटा की उदिती धाकड़ को दीक्षांत समारोह में कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ ब्रांच टॉपर रहने पर दो गोल्ड मेडल मिले हैं। उन्होंने एमएसएसी किया है, अब पीचएडी करना चाहती हैं। उन्होंने सोयाबीन में खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए रिसर्च की है। साथ ही फसल विज्ञान, तकनीकी उन्नत विकास में शोध करना प्राथमिकता है। उदिती कहतीं है, हाड़ौती में खरपतवार की समस्या अधिक है, जिससे किसानों को छुटकारा दिलाने की दिशा में काम कर रहीं हैं। कृषि में महिलाओं का योगदान बरसों से रहा है। खेती किसानी वक्त के साथ हाईटेक हो चुकी है। महिलाओं को रोजगार के प्रति जागरूक कर सक्षम बनाना चाहती हूं।  उदिती ने बताया कि वे डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन पिता डॉ. प्रताप सिंह धाकड़ ने कृषि में आने को प्रेरित किया। पिता एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में अनुसंधान निदेशक हैं। वे कहते हैं, कृषि न केवल हमारी आजिविका चलाती है बल्कि दूसरों को रोजगार देने वाला भी बनाती है। 

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फूलों पर रिसर्च कर रहीं रिशिका
बीएससी उद्यानिकी स्टूडेंट रिशिका चौधरी को दो गोल्ड मेडल मिले हैं। पहला यूनिवर्सिटी टॉप करने पर कुलपति स्वर्ण पदक व दूसरा ब्रांच टॉप करने पर मेडल मिला है। रिशिका पुष्प विज्ञान में अनुसंधान कररही हैं। वे बतातीं है, फूलों पर दो साल से रिसर्च कर रहीं हैं। फूलों में विभिन्न तरह की नई किस्में तैयार करना उद्देश्य है। आगे एमएससी कर रिसर्च जारी रखनी है। ग्रामीण महिलाओं को आगे बढ़ाना और उन्हें रोजगार से जोड़ना ही मकसद है। फूलों से ज्वैलरी, गुलकंद, फरफ्यूम, नेचुरल कलर तथा ड्राई फ्लावर आर्ट बनाने के लिए स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं। ताकि, दूसरों को रोजगार मिले सके। रिशिका को उनके पिता डॉ. जेपी चेतरवाल ने ही कृषि के क्षेत्र में आने को प्रेरित किया। वर्तमान में चेतरवाल कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में सहायक आचार्य हैं।  

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