जानें इंडिया गेट में आज है खास... खटपट की आहट!, असली खेल चुनाव बाद!, प्रचार की दशा और दिशा!, मैं हूं ना!, असर और पलटवार...

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खबरें पर्दे के पीछे की.....

खटपट की आहट!
यूपी चुनाव के बहाने बिहार में भाजपा-जदयू के बीच नई राजनीतिक खटपट की आहट! असल में, जदयू ने यूपी में भाजपा से गठबंधन की इच्छा जताई। लेकिन भाजपा की ना। क्योंकि उसके लिए यूपी बेहद अहम। राज्यसभा के लिहाज से यहां 31 सीटें। उसे यहीं से सबसे ज्यादा आस भी। सो, बाकी दलों को तो एमएलसी के बहाने निपट लेंगे। लेकिन जदयू भाजपा का पुराना साझीदार। उसके नेता भी पके पकाए, घुटे घुटाए नितिश कुमार। सो, उन्हें हैंडल करना इतना आसान भी नहीं। सो, यूपी में गठबंधन पर बात नहीं बनने पर जदयू ने अकेले ही प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया। लेकिन बात यूपी के बहाने बिहार की। जहां वीआईपी के मुखिया साहनी और ‘हम’ के मांझी आंखें तरेर रहे। लेकिन क्या बातें वहीं? जो बाहर आ रहीं या कुछ और? उधर, नितिश को राजद के युवा नेता तेजस्वी की ओर से नित नए ऑफर। जबकि नितिश भी भाजपा को इशारों में समझा रहे। सो, आगे क्या? इसका चुनाव परिणाम तक इंताजर किया जाए!


असली खेल चुनाव बाद!
पंजाब में तमाम सर्वे एवं चुनाव पूर्व आकलन में त्रिशंकु विधानसभा आने के आसार बन रहे। आखिर इस बार मुकाबला भी तो बहुकोणिय होने की संभावना। राजनीतिक पैंतरेबाजी ऐसी कि तीन दशक पुराना भाजपा एवं अकाली दल का साथ टूटा। तो खांटी कांग्रेसी रहे कैप्टन अमरिन्दर सिंह चुनावी बेला में भाजपा के साथ हो लिए। बदले हुए हालात में अब अकालियों के साथ बसपा। राज्य में तेजी से उभरी ‘आप’ का अपना राग। तो सत्ताधारी कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने के लिए जूझ रही। इस बीच, मसला यह कि चुनाव के तुरंत बाद सात रा’यसभा सीटों का चनाव। पांच सीटें नौ अप्रैल और बाकी दो सीटें चार जुलाई में खाली हो रहीं। ऐसे में यदि विधानसभा त्रिशंकु हुई। तो वोटिंग होगी। फिलहाल तीन-तीन अकाली दल एवं कांग्रेस और एक सीट भाजपा के पास। बाद में क्या होगा। यह विधानसभा का आंकड़ा ही बताएगा। संभव है, आज आमने-सामने खड़े दल, कल आपस में मिल जाएं। आखिर बात उच्च सदन में सत्ता समीकरण की।


प्रचार की दशा और दिशा!

यूपी में बीते शनिवार को अमित शाह ने घर-घर जाकर चुनावी प्रचार किया। प्रचार यूपी के कैराना समेत उन इलाकों में। जहां से बड़ी संख्या में पलायन के समाचार मिले। मतलब भाजपा ने तय कर दिया। उसका चुनावी प्रचार किसी ओर होगा और उसकी दशा एवं दिशा क्या होगी! हालांकि सपा, बसपा एवं कांग्रेस का फोकस रोजगार, सांप्रदायिकता, महंगाई, किसानों... जैसे मुद्दों पर। केन्द्र एवं रा’य सरकार पर भरपूर हमलावर भी। लेकिन भाजपा की अपना चुनावी पिच। सीएम योगी पहले ही कह चुके। यह मुकाबला 80 बनाम 20 का। विपक्ष जो भी समझे। लेकिन उनका मतलब 20 फीसदी भाजपा विरोधियों से। अब देखना होगा। जनता क्या समझती है? लेकिन योगीजी ने भी चुनावी प्रचार की शुरुआत वहीं से की। जो संवेदनशील माने जाते। भाजपा अपना चुनावी ऐजेंडा सेट कर रही। तो बाकी विपक्ष को उसी पिच पर ले जाने की मंशा। सपा तो आ चुकी। लेकिन बसपा चुपचाप समीकरण साध रही। हां, कांग्रेस इसी बहाने अपना जमीनी आधार तलाशती नजर आ रही।


मैं हूं ना!
प्रियका गांधी ने यूपी में पार्टी के चेहरे के सवाल पर लगभग ‘मैं हूं ना’ के अंदाज में जवाब दिया। अब इससे नए कयास। कहा, क्या आपको मेरा चेहरा नहीं दिख रहा? क्या आपको कोई और चेहरा दिख रहा? मतलब, मैं ही तो हूं चेहरा! प्रियंका गांधी ने जो कहा। वह राहुल गांधी की मौजूदगी में कहा। तो इसके भी मायने। वैसे सितंबर में पार्टी को नया अध्यक्ष मिलने जा रहा। पार्टी का तो यही दावा। संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही। सदस्यता अभियान इसी का हिस्सा। प्रियंका गांधी की हामी केवल यूपी के लिए ही? या आगे का भी संकेत? मतलब जरुरत पड़ी। तो वह सीएम चेहरा भी बनेंगी। और मौका लगा तो क्या अध्यक्ष पद के लिए भी ताल ठोंक सकती हैं? वैसे भी पार्टी नेता एवं कार्यकर्ता उनमें इंदिरा गांधी की छवि देखते। बीते दो साल से प्रियंका यूपी में सक्रिय। हां, फिर भी एक सवाल। क्या कोई और पार्टी महासचिव इस तरह का ऐलान करेगा कि वही चेहरा?

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विकल्पहीनता में ऐलान!

आखिरकार पंजाब विधानसभा चुनाव तक आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को जनता के बीच अपना सीएम चेहरा घोषित करना पड़ा। पहले साथी सांसद भगवंत सिंह मान को झटका दिया। फिर सर्वे का सहारा लिया। रा’य की जनता की राय के आधार पर सांसद मान को सीएम फेस घोषित करना पड़ा। असल में, केजरीवाल अभी भी अपनी हसरत छोड़ नहीं पा रहे। वह पुलिस को अपने हाथ मे रखना चाह रहे। लेकिन राजधानी दिल्ली में कानूनन ऐसा नहीं हो पा रहा। सो, पंजाब में वह इच्छा पूरी करने की कोशिश। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद फिलहाल बात बनी नहीं। इसीलिए अपने को पाक साफ बताने के लिए भगंवत मान को आगे किया। लेकिन यह संकल्प चुनाव परिणाम के बाद भी बना रहेगा। या यह चुनावी शिगूफा साबित होगा? यह तो जब विधानसभा सीटों का समीकरण सामने आएगा। तभी पता चलेगा। लगता है किसान संगठनों के चुनावी मैदान में उतरने से रणनीति बदलनी पड़ी। फिलहाल तो विकल्पहीनता के बीच मजबूरी में यह ऐलान!


असर और पलटवार...

यूपी चुनाव लगातार दिलचस्प हो रहा। देखिए ना। जब सीएम योगीजी ने मैदान में उतरने का ऐलान किया। तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर भी दबाव बना। पहले असमंजस और अनिर्णय, आनाकानी। फिर उसी का असर कि मैदान में उतरने को तैयार। चर्चा परंपरागत मैनपुरी संसदीय क्षेत्र के करहल विधानसभा क्षेत्र से उतरने की। जबकि वह सांसद आजमगढ से। यह घबराहट का संकेत। अब बसपा प्रमुख मावायती क्या करेंगी? थोड़ा इंतजार किया जाए। फिलहाल वह न सांसद, न विधायक। ’यों-’यों चुनाव निकट आते जा रहे। नेता लोग इधर से उधर भाग रहे। भाजपा में भगदड़ जैसे हालात। यह दावा सपा का। सो, मौका चुनावी हो और उधार रखी जाए। शायद भाजपा को गवारा नहीं। इसीलिए अखिलेश के छोटे भाई प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव को अपने पाले में कर लिया। इस मौके पर डिप्टी सीएम कैशव मौर्या तंज कसने से नहीं चूके। बोले, जो अखिलेश अपने परिवार को नहीं संभाल सके। वह यूपी जैसे बड़े सूबे को संभालने का दंभ कैसे भर रहे?
-दिल्ली डेस्क

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