देश की नई मौद्रिक नीति एवं मूल्य वृद्धि

देश की नई मौद्रिक नीति एवं मूल्य वृद्धि

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के अंतर्गत कोई भी नीतिगत ब्याज दरों में परिवर्तन नहीं किया गया है और यथास्थिति वादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए कोरोना काल में घोषित नीति को ही लागू किया गया है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के अंतर्गत कोई भी नीतिगत ब्याज दरों में परिवर्तन नहीं किया गया है और यथास्थिति वादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए कोरोना काल में घोषित नीति को ही लागू किया गया है। संभावना व्यक्त की जा रही थी कि विश्व के विकसित देशों में मूल्य वृद्धि जनित मुद्रास्फीति ब्याज दरों पर प्रभाव पड़ा है तथा मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए अमेरिका का फेडरल रिजर्व बैंक ब्याज दर में वृद्धि का नीतिगत निर्णय ले सकता है। इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का मानना है कि विश्व के दूसरे विकसित देशों की तुलना में भारत में मूल्य वृद्धि के प्रभाव एवं कारणों में अंतर है। भारत में मूल्य वृद्धि के कारण विकसित देशों की तुलना में अलग है। विश्व के देशों में विश्व खाद्य संगठन के अनुसार खाद्य मूल्य वृद्धि लगभग 30 प्रतिशत है, जबकि भारत में खाद्य मूल्य वृद्धि 6.5 प्रतिशत है। अमेरिका में कार मूल्य वृद्धि का कारण है लेकिन भारत में नहीं है। यूरोपीय देशों में ट्रकों को चलाने के लिए ड्राइवर की उपलब्धता मूल्य वृद्धि का कारण है लेकिन भारत में नहीं है। ऐसी स्थिति में मूल्य वृद्धि की संभावनाओं एवं जोखिम का विशेषण करके एवं आमिकान जैसे कोरोना के पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए ही यथावत एवं समायोजित मौद्रिक नीति घोषित की गई है तथा मौद्रिक नीति समिति की भी यही सिफारिश है।


मौद्रिक नीति के अंतर्गत विकास एवं मूल्य स्थिरता एक महत्वपूर्ण चुनौती है। आर्थिक सर्वेक्षण के अंतर्गत वर्ष 2022-23 के लिए 8 से 8.5 प्रतिशत आर्थिक विकास दर में वृद्धि का अनुमान लगाया गया था, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने विकास दर वृद्धि का अनुमान 7.8 प्रतिशत लगाया है। इसी तरह से खुदरा मुद्रा प्रसार 5.3 प्रतिशत घटकर वर्ष 2023 में 4.5 प्रतिशत रह जाएगा। वर्तमान खुदरा मुद्रा मूल्य सूचकांक लगभग 6 प्रतिशत है, जबकि थोक मूल्य सूचकांक 12 से 13 प्रतिशत तक है। खुदरा मूल्य एवं थोक मूल्य सूचकांक में अंतर का कारण कर माना जाता है जिसको कि खुदरा मूल्य सूचकांक की गणना में सम्मिलित नहीं किया जाता है। मौद्रिक नीति प्रतिवेदन में विकास दर में कमी का अनुमान है, लेकिन मुद्रास्फीति नियंत्रित सीमा में 4 से 6 प्रतिशत के मध्य रहेगी। देश में विकास दर में वृद्धि भी आवश्यक है तथा महंगाई पर नियंत्रण भी। देश के गरीब, निर्धन एवं आमजन को विकास भी प्रभावित करता है तथा महंगाई भी। यदि विकास दर बढ़ती है तो रोजगार, आय एवं उत्पादन स्तर बढ़ता है, लेकिन महंगाई बढ़ती है तो आमजन का जेब खर्च बढ़ता है। लेकिन मूल्य वृद्धि का लाभ उद्योगपतियों, व्यापारियों, दलालों एवं कंपनियों की जेबों में तो जाता है, लेकिन गरीब की जेब तो खाली हो जाती है। इसका सीधा सा कारण भारत में मजदूरी की दरें तेजी से नहीं बढ़ती है तथा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम सरकारी एवं संगठित क्षेत्रों पर तो लागू होता है लेकिन असंगठित एवं निजी क्षेत्र पर नहीं।


महंगाई को रोकने एवं विकास दर में वृद्धि का उपाय यह है कि ब्याज दरें संतुलित एवं स्थिर रहे। मौद्रिक नीति में उल्लेखित बैंक दर, रेपो दर एवं रिवर्स रेपो दर साख की लागत को प्रभावित करती है तथा बचत पर मिलने वाले ब्याज दर से भी इस संबंध है। यदि उपभोग को बढ़ाना है तो ब्याज दर कम होनी चाहिए ताकि मांग में उठाव पैदा हो। मांग का उपभोग स्तर पूर्व कोरोना काल के स्तर पर आए। देश में रियलिटी एवं कंस्ट्रक्शन क्षेत्र, होटल एवं पर्यटन व्यवसाय, आॅटोमोबाइल क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आदि कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। इन उत्पादों में लगी कंपनियों एवं थोक व खुदरा व्यापारियों को अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ा है। यदि ब्याज दरें बढ़ती है तो उपभोक्ता ऋण महंगे हो जाते हैं तथा बड़ी लागत को उपभोक्ता तक लादने में उत्पादक व व्यापारी शत-प्रतिशत सफल नहीं हो पाते हैं।उपभोक्ता वस्तुओं में हुई मूल्य वृद्धि में कर नीति एवं साख की लागत का अत्यधिक प्रभाव होता है, जो कि आपूर्ति बाधा उत्पन्न करता है। ऐसे में साख की उठाव क्षमता को बनाए रखना एवं बढ़ाना है। देश में मांग के साथ-साथ पूर्ति बाधाएं भी मूल्य वृद्धि का कारण बन जाती है जो कि लॉजिस्टिक लागत को बढ़ाती है। देश में लॉजिस्टिक लागत अत्यधिक है, जो कि 15 से 20 प्रतिशत तक है, जबकि चीन में मात्र 4 से 5 प्रतिशत है । यह भी कारण है कि दुनिया के देशों में चीन सस्ता उत्पाद बेचने में सफल हो जाता है।


देश में आगामी समय में संभावित सामान्य मानसून, निर्यात बढ़ोतरी, नए बजट में पूंजीगत व्यय में वृद्धि तथा इंफ्रास्ट्रक्चर प्राथमिकता वृद्धि की दृष्टि से मूल्य राहत प्रदान होने की संभावनाएं है, लेकिन देश में खाद्य एवं ऊर्जा मूल्य वृद्धि पर कोई नियंत्रण नहीं है। खाद्य उत्पादों के मूल्य तेजी से बढ़ते हैं तो मूल्य सूचकांक भी बढ़ता है जिसके लिए आयात एक विकल्प है। देश में दालों एवं खाद्य तेल के संबंध में यह बात लागू होती है। दूसरी समस्या खनिज तेल के अंतरराष्टÑीय मूल्य में तेजी से वृद्धि है, जो कि दिसंबर 2021 में 69 डालर प्रति बैरल था जो कि अभी 94 प्रति बैरल हो गया है तथा रूस यूक्रेन के युद्ध एवं रूस व अमेरिकी देशों की खनिज तेल उत्पादन की भावी नीति मूल्य वृद्धि का कारण बनने की संभावना है। अभी देश में पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं तो पेट्रोल एवं डीजल के दाम तेल कंपनियों ने नहीं बढ़ाए हैं चुनाव बाद तेजी से बढ़ेंगे। यहां पर अर्थ नीति असफल है, राजनीति नहीं।

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  -डॉ. सुभाष गंगवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


अर्थचक्र
महंगाई को रोकने एवं विकास दर में वृद्धि का उपाय यह है कि ब्याज दरें संतुलित एवं स्थिर रहे। मौद्रिक नीति में उल्लेखित बैंक दर, रेपो दर एवं रिवर्स रेपो दर साख की लागत को प्रभावित करती है तथा बचत पर मिलने वाले ब्याज दर से भी इस संबंध है। यदि उपभोग को बढ़ाना है तो ब्याज दर कम होनी चाहिए ताकि मांग में उठाव पैदा हो। मांग का उपभोग स्तर पूर्व कोरोना काल के स्तर पर आए।

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