
चिड़ियाघर के वन्यजीवों की 2 साल से अटकी शिफ्टिंग
टिकट पूरा फिर भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पक्षी नहीं देख पा रहे पर्यटक
बायोलॉजिकल पार्क के निर्माण के दौरान 44 एनक्लोजर बनने थे लेकिन प्रथम चरण में मात्र 13 ही बन पाए। जबकि, 31 एनक्लोजर अभी बनने बाकी हैं। जब तक यह एनक्लोजर नहीं बनेंगे तब तक पुराने चिड़ियाघर में मौजूद एक दर्जन से अधिक वन्यजीव बायलॉजिकल पार्क में शिफ्ट नहीं हो पाएंगे।
कोटा। प्रदेश का सबसे बड़ा अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क दो साल से बजट को तरस रहा है। बजट के अभाव में सुविधाएं विकसित नहीं हो पा रही। पक्षियों के अधूरे एनक्लोजर पूरे नहीं हो पा रहे। वहीं, रियासतकालीन चिड़ियाघर से वन्यजीवों की 2 साल से बायोलॉजिकल पार्क में शिफ्टिंग अटकी पड़ी है। यहां न तो कैफेटेरिया है और न ही ई-रिक्शा। ऐसे में यहां आने वाले पर्यटकों को चाय नाश्ते के लिए भटकना पड़ता है। जबकि, पर्यटकों से पैसा पूरा वसूला जाता है, लेकिन देखने के लिए पूरे एनिमल नहीं है। दरअसल, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में द्वितीय चरण के तहत 20 करोड़ की लागत से कई निर्माण कार्य होने हैं, जो बजट के अभाव में शुरू नहीं हो पाए। वन्यजीव विभाग प्रशासन सरकार को कई बार प्रस्ताव भेज चुका है। इसके बावजूद बजट स्वीकृत नहीं हुआ। इसके चलते एक दर्जन से अधिक वन्यजीव चिड़ियाघर से बायोलॉजिक पार्क में शिफ्ट नहीं हो पा रहे।
पक्षियों के पांच एनक्लोजर अधूरे
बायोलॉजिकल पार्क में प्रथम चरण के तहत 18 एनक्लोजर बनाए जाने थे लेकिन 13 ही बन सके। वहीं, पक्षियों के 5 एनक्लोजर बजट के अभाव में अधूरे पड़े हैं। इनमें सारस क्रेन, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पक्षी ऐमू सहित अन्य बर्ड्स शामिल हैं। यहां आने वाले पर्यटकों से टिकट का पूरा पैसा वसूला जाता है, इसके बावजूद उन्हें पूरे एनिमल देखने को नहीं मिलते। इससे पर्यटकों में भी नाराजगी है।
द्वितीय चरण में यह होने हैं कार्य
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में द्वितीय चरण के तहत 20 करोड़ की लागत से 31 एनक्लोजर, स्टाफ क्वार्टर, कैफेटेरिया, वेटनरी हॉस्पिटल, इंटरपिटेक्शन सेंटर, पर्यटकों के लिए आॅडिटोरियम हॉल, छांव के लिए शेड, कुछ जगहों पर पथ-वे सहित अन्य कार्य शामिल हैं।
काम नहीं आया शासन सचिव का भरोसा
वन्यजीव अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2020-21 में जाइका प्रोजेक्ट के तहत बायलॉजिकल पार्क में अधूरे निर्माण कार्यों को पूरा करवाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा था। जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद फिर से रिव्यू प्रस्ताव भेजे गए, वह भी स्वीकृत नहीं हुए। गत वर्ष 4 जून को वन विभाग के शासन सचिव शिखर अग्रवाल के बायलॉजिकल पार्क निरीक्षण के दौरान समस्या से अवगत कराया था। इस पर उन्होंने जल्द ही बजट पास करवाने का भरोसा दिलाया था लेकिन दो साल बीतने के बाद भी बजट नहीं मिल पाया।
31 एनक्लोजर बनना बाकी
बायोलॉजिकल पार्क के निर्माण के दौरान 44 एनक्लोजर बनने थे लेकिन प्रथम चरण में मात्र 13 ही बन पाए। जबकि, 31 एनक्लोजर अभी बनने बाकी हैं। जब तक यह एनक्लोजर नहीं बनेंगे तब तक पुराने चिड़ियाघर में मौजूद अजगर, मगरमच्छ, बंदर व कछुए व ऐमु सारस क्रेन सहित एक दर्जन से अधिक वन्यजीव बायलॉजिकल पार्क में शिफ्ट नहीं हो पाएंगे। तीन किमी पैदल चलना हो रहा मुश्किल: बायोलॉजिकल पार्क घूमने आए नयापुरा निवासी लोकेश कुमार, प्रहलाद मीणा, कविता, हर्षिता का कहना है, पार्क का ट्रैक करीब 3 किमी लंबा है और वन्यजीवों के एनक्लोजर भी दूर हैं। ऐसे में ई-रिक्शा चलाए जाने चाहिए। साथ ही कैफेटेरिया व बच्चों के लिए झूलों की सुविधा भी विकसित की जानी चाहिए।
30 करोड़ से बना था बायोलॉजिकल पार्क
वन्यजीव अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2017 में 30 करोड़ की लागत से बायोलॉजिकल पार्क का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। जिसे 2019 में पूरा किया जाना था लेकिन कोविड के 2 साल के कारण काम समय पर पूरा नहीं हो सका। इसके बाद 21 नवम्बर 2021 को काम पूरा हुआ। यहां प्रथम चरण में 18 एनक्लोजर बनाए जाने थे लेकिन बजट के अभाव में 13 ही बन सके। वहीं, पक्षियों के 5 एनक्लोजर भी अधूरे पड़े हैं।
बजट मिले तो सुधरे दशा
द्वितीय चरण में बेहद महत्वपूर्ण काम होने थे, जो बजट के अभाव में नहीं हो सके। यूआईटी को पूर्व में प्रस्ताव भेजे गए हैं लेकिन अभी तक इस संबंध में अभी तक कुछ नहीं हुआ। वर्तमान में 31 एनक्लोजर बनने शेष हैं। जिसकी वजह से चिड़ियाघर से अन्य वन्यजीवों को बायोलॉजिक पार्क में शिफ्ट नहीं कर पा रहे। बजट मिले तो यहां वेटनरी हॉस्पिटल, स्टाफ क्वार्टर, आॅडिटोरियम, कैफेटेरिया बने। हालांकि, बायोलॉजिकल पार्क में सुविधाएं विकसित करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
- दुर्गेश कहार, रैंजर, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क
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