बदलाव के लिए सफाईकर्मी स्वयं प्रयास करें

बदलाव के लिए सफाईकर्मी स्वयं प्रयास करें

यह व्यवस्था समाज विशेष को सरकारी नौकरी में सुरक्षा प्रदान करती है और उनका भविष्य सुरक्षित अवश्य बनाती है, लेकिन समाज में सामाजिक समानता की स्थापना नहीं करती है बल्कि असंतुलन पैदा करती है।

वर्तमान में सफाई कर्मियों की भर्ती में वाल्मीकि समाज को 50 प्रतिशत एचबी आरक्षण की मांग को स्वीकार कर वर्ग विशेष पर सफाई व्यवस्था बनाए रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी गई है। हालांकि मांग भी समाज विशेष की ही थी जो मान ली गई है। यह  व्यवस्था समाज विशेष को सरकारी नौकरी में सुरक्षा प्रदान करती है और उनका भविष्य सुरक्षित अवश्य बनाती है, लेकिन समाज में सामाजिक समानता की स्थापना नहीं करती है बल्कि असंतुलन पैदा करती है। संविधान सामाजिक समानता की बात  कहता है जहां सभी को समान अवसर उपलब्ध होने चाहिए। प्राचीन काल में चतुर्वर्ण्य समाज की स्थापना से पूर्व सभी मनुष्य एक समान थे। सभी के अधिकार, अवसर भी एक समान थे और जीवनशैली भी लगभग समान  ही थी , लेकिन सामाजिक, मानसिक, शारीरिक विकास क्रम के तहत  मनुष्य ने  गुण, कर्म, आधारित समाज की स्थापना की और धीरे-धीरे  कर्म के अनुसार वर्ण निर्धारित हुए और कालांतर में  वर्ण व्यवस्था कर्म और गुणों से बाहर निकलकर जन्म आधारित बना दी गई और समाज जातियों में और मनुष्य जातिवादी मानसिकता में बंट गया। अब कोई व्यक्ति  किसी भी प्रकार का कर्म  करें, जाति तो जन्म से ही निर्धारित होगी।

इस सामाजिक विकास की  दौड़ में कुछ वर्ग, कुछ जातियां पिछड़ गई या कहें कि उन्हें दौड़ से अलग कर अवसरों से वंचित कर उनके मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक विकास की राह को अवरूद्ध कर दिया गया। समाज के  ऊंच और नीच के विभाजन ने वर्ग और जाति भेद की गहरी खाई खोद दी गई। जो आज भी काफी हद तक अपना प्रभाव बनाए हुए हैं। इस वर्ग भेद और असमानता की खाई को पाटने के लिए संविधान में  समानता, सुरक्षा, संवैधानिक अधिकार, अवसर की समानता, आरक्षण जैसे तत्वों का समावेश कर समाज के सभी वर्गों को एक स्तर पर लाने का भरपूर प्रयास भी  किया गया और आजादी के 75 साल में काफी हद तक सफलता प्राप्त भी हुई है। पर एक वर्ग विशेष सफाई वर्ग, जिसे समय-समय पर अलग-अलग नाम देकर सम्मान देने का भी प्रयास किया गया। वह वर्तमान में वाल्मीकि वर्ग आज भी समाज के सामाजिक स्तर पर अंतिम पंक्ति में उसी तरह खड़ा है।

आज भी समाज में वह सामाजिक स्वीकार्यता को उस तरह प्राप्त नहीं कर सका है, जिस तरह अन्य वर्ग जो वंचित और कमजोर या दलित के रूप में पहचान रखते हैं। आज भी वाल्मीकि वर्ग एक अलग कॉलोनी में, वर्षों से एक ही व्यवसाय में, एक अलग समुदाय के रूप में जीवन बसर कर  रहा है। आज भी उसका अन्य समाजों के साथ  उसका  खाना-पीना, उठना बैठना, रहना, उत्सव, शादी ब्याह उसके लिए बहुत दुर्लभ है। समाज आज भी उसे तभी याद करता है जब सफाई करवानी हो, श्मशान में कार्य के लिए डेड बॉडी हटाने या सीवर, फिर वोट बैंक के रूप में ही याद किया जाता है। और सबसे खतरनाक कार्य सीवर लाइन की मैनुअल सफाई और मौत को गले लगाने का जोखिम भरा काम सस्ते में करवाना हो तो  यही याद आते हैं।

लेकिन सामाजिक बदलाव एक तरफा नहीं हो सकता है। यदि इस वर्ग विशेष को समाज में सम्मान, हक अधिकार, समानता एवम स्वीकार्यता चाहिए तो  आवश्यक है कि उसे भारत देश के गुण आधारित कर्म प्रधान सिद्धांत को स्वयं वापस अपनाना होगा। इन्हें स्वयं अपने शिक्षा और बौद्धिक विकास के लिए संवैधानिक अधिकार को काम लेना होगा। इन्हें स्वयं त्यागना पड़ेगा। उस पुरातन सफाई कार्य को जिसे इन्होंने परमानेंट अपना रोजगार और अधिकार बना लिए है। जब यह कौम सफाई के कार्य में स्वयं के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग करती है तो यह जाहिर है कि वह स्वयं पर लगे ठप्पे सफाई कर्मी से बाहर नहीं निकलना चाहती है अर्थात् स्वयं के लिए गंदगी और झाड़ू का चयन आज के आधुनिक समाज में वह खुद कर रही है, जबकि पुरातन समाज में इस पर थोपा गया था। सरकारी नौकरी जीवन पर्यंत सुरक्षा अवश्य करती है और आरक्षण नौकरी को सुरक्षित भी करता है सफाई कर्मी के रूप में आप जीवन की सुरक्षा और रोटी का जुगाड़ कर सकते है, लेकिन आप एक नई पीढ़ी के विकास को अवरूद्ध कर रहे हैं। उसके गुणों को विकसित होने से रोक रहे है उन्हें आसान नौकरी दिलाकर। आप समाज की मुख्य धारा में आने से रोक रहे हैं। नए कर्म, नए व्यवसाय, नई दुनिया, नई व्यवस्था में अपनी जगह बनाने की आवश्यकता है जैसे की आरक्षण से अन्य जातियों ने भी बनाई है। आपके लिए आरक्षण हर सरकारी नौकरी में उपलब्ध है तो कुछ प्राइवेट सेक्टर में भी। तो नई पीढ़ी को नए रोजगार के लिए संघर्ष करने के अवसर दें, वहां के लिए प्रेरित करें और अवसरों की जानकारी भी दें। हालांकि इस बदलाव में एक दो पीढ़ियों को काफी संघर्ष करना होगा, पर शुरुआत तो करनी ही पड़ेगी। इस सफाई करने की दुनिया से बाहर आने की। फिर दूसरे वर्ग, समाज के लोगों को भी इस व्यवसाय सफाई व्यवस्था में आने से इस कार्य और इस कौम विशेष की महत्ता की जानकारी भी होगी। स्वत: ही सामाजिक समानता और गुण कर्म प्रधान समाज भी बनेगा।वो गलियां, मोहल्ले, वो वर्ग विभेद भी तभी खतम होगा जब सफाई के काम को सभी व्यक्ति, सभी वर्गों का काम माना जाएगा। किसी वर्ग विशेष का काम नहीं जैसे विदेशों में किया जाता है।

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अत: अब समय स्वयं को और स्वयं के कार्य को बदलने का है ताकि सफाई कर्मियों की नई पीढ़ी भी खुली स्वतंत्र, समानता आधारित और कार्य की विविधता वाले समाज में सम्मान से  जी सकें और अपनी पुरातन जीवन शैली जो कूड़े कचरे के ढेर और गटर की नालियों से बाहर निकलकर नई दुनिया के लिए स्वयं परिवर्तन कर,  नए स्वच्छ वातावरण और समानता आधारित समाज में  खुद भी सांस ले सकें और समाज में बदलाव भी नजर आए।
           

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