बाल कुपोषण के लिए महत्वपूर्ण एजेंडा
भारत में छोटे बच्चों के बीच पूरक आहार को बढ़ाने के लिए सबसे पहले और सबसे जरूरी है आहार में स्वस्थ और पौष्टिक भोजन को शामिल करना
इस सितंबर में भारत ने 7वां राष्ट्रीय पोषण माह 2024 मनाया है। यह पोषण जागरूकता और कार्यवाही के लिए समर्पित महीना है, एक महत्वपूर्ण पहलू जो सभी के सामूहिक ध्यान की मांग करता है, वह है पूरक आहार। शिशुओं को केवल स्तनपान से ठोस और अर्ध-ठोस खाद्य पदार्थों वाले आहार में बदलने की यह प्रथा भारत में कुपोषण की लगातार समस्या को दूर करने के लिए मौलिक है। पूरक आहार केवल भोजन के बारे में नहीं है। यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि बच्चों को सही समय पर सही पोषक तत्व मिले। चूंकि केवल दूध बढ़ते बच्चे की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है, इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन 6 महीने की उम्र में पोषण संबंधी पर्याप्त और सुरक्षित पूरक खाद्य पदार्थों की शुरूआत के साथ 2 साल की उम्र या उससे आगे तक स्तनपान जारी रखने की सलाह देता है।
पूरक आहार मस्तिष्क के कार्य, शारीरिक विकास और प्रतिरक्षा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पहले वर्ष के दौरान एक बच्चे का वजन लगभग तीन गुना बढ़ जाता है। इसलिए पूरक आहार न केवल मस्तिष्क के विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि बाल कुपोषण को रोकने में भी इसकी भूमिका है। जाहिर है बच्चे के जीवन के पहले दो साल एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जहां पर्याप्त पोषण हमारी भावी पीढ़ियों के शारीरिक विकास और प्रतिरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण अवधि है जहां विटामिन युक्त फलों और सब्जियों, साबुत अनाज, फलियां, अंडे और डेयरी उत्पादों से भरा संतुलित आहार बच्चे के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। इसके बावजूद भारत में पूरक आहार का प्रचलन चिंताजनक रूप से कम है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा छोटे बच्चों के लिए पूरक आहार में एक महत्वपूर्ण अंतर दिखाते हैं। कुपोषण से प्रभावी ढंÞग से निपटने के लिए इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय पोषण माह 2024 में महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा पूरक आहार को प्राथमिकता देना, भारत के पोषण एजेंडे में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह हमें महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर ले जाता है। भारत में छोटे बच्चों के बीच पूरक आहार को बढ़ाने के लिए सबसे पहले और सबसे जरूरी है आहार में स्वस्थ और पौष्टिक भोजन को शामिल करना, खासकर छह महीने से दो साल के बीच की अवधि के दौरान। भारत की समृद्ध रसोई की विरासत पोषक तत्वों से भरपूर कई विकल्प प्रदान करती है, जो छोटे बच्चों के लिए आदर्श है। खिचड़ी और दलिया जैसा पारंपरिक खाना न केवल बनाने में आसान है, बल्कि आवश्यक पोषक तत्वों से भी भरपूर है। उदाहरण के लिए रागी केला दलिया आयरन और कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जबकि बाजरा खिचड़ी विटामिन और खनिजों का एक अच्छा मिश्रण है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मिशन पोषण के दूससे चरण के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में आहार विविधता को बढ़ावा देने और ताजे फल, सब्जियां, बाजरा और साबुत खाद्य पदार्थों के सेवन पर बहुत बल दिया गया है। इन दिशानिर्देशों के आधार पर स्थानीय रूप से उपलब्ध और किफायती सामग्री से बने पारंपरिक खाद्य पदार्थों को पुनर्जीवित करने से यह सुनिश्चित होगा कि बच्चों को संतुलित आहार मिले, जो उनके विकास और वृद्धि में सहायक हों। दिलचस्प बात यह है कि जन्म के छह महीने बाद पूरक आहार शुरू करने के लिए डब्ल्यूएचओ की सिफारिश भारतीय संस्कृतिक में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर अन्नप्राशन की सदियों पुरानी प्रथा से पूरी तरह मेल खाती है। पूरक आहार के महत्व को पहचानते हुए महिला और बाल विकास मंत्रालय देश भर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित कार्यक्रम के रूप में अन्नप्राशन दिवस के उत्सव को बढ़ावा देता है। इससे माताओं और स्थानीय समुदायों को बच्चों के आहार में विविध और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करने के महत्व के बारे में परामर्श दिया जा सके। इस प्रकार वैज्ञानिक संदेश के लिए पारंपरिक ज्ञान और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं का उपयोग करना छोटे बच्चे के आहार प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए एक सर्वोत्तम अभ्यास के रूप में उभरता है। तीसरा यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी छोटे बच्चों को सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना पौष्टिक भोजन तक पहुंच मिले वर्तमान सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाना महत्वपूर्ण है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय का पूरक पोषण कार्यक्रम छह महीने से छह साल की उम्र के बच्चों को घर ले जाने का राशन और गरम पका हुआ भोजन प्रदान करता है। यह परिवारों के लिए जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है, विशेष रूप से कम आय वाले समुदायों में जहां पोषक तत्वों से भरपूर भोजन तक पहुंच अक्सर सीमित होती है। चौथा स्वस्थ खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देते समय बच्चों को जंक, और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों विशेष रूप से उच्च वसा, चीनी और नमक के खाद्य पदार्थों के खतरों से बचाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। कुकीज, चिप्स, नमकीन, इंस्टेंट नूडल्स, सॉफ्ट ड्रिंक और बेकरी उत्पाद जैसे जंक फूड दुर्भाग्य से बच्चों के खास भोजन बन गए हैं। चिंताजनक रूप से हाल ही में वैज्ञानिक साक्ष्य संकेत देते हैं कि इन अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के संपर्क में आने से मोटापा और मधुमेह की शुरुआत हो सकती है, इसलिए प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
- डॉ. अनन्या अवस्थी
सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता और अनुवाद सॉल्यूशंस की निदेशक हैं
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