जानें राज-काज में क्या है खास

इन दिनों एक सीएम काफी चर्चा में

जानें राज-काज में क्या है खास

नेताओं की जुबानें भी लक्ष्मण रेखा पार कर गई हैं।

चर्चा में सीएम
सूबे में इन दिनों एक सीएम काफी चर्चा में हैं। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने पर भी इन सीएम साहब की चर्चा हुए बिना नहीं रहती। सीएम भी किसी छोटी पार्टी से नहीं बल्कि भगवा से ताल्लुकात रखते हैं। पिंकसिटी के दीनों का नाथ इलाके में बने ठिकाने पर निवास करने वाले सीएम साहब सूबे की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव में कमल के निशान पर अपना भाग्य भी आजमा चुके हैं, पर पार नहीं पड़ी। साहब का चर्चा में आना लाजमी भी है, चूंकि साहब के उड़नखटोले पर मोटे अक्षरों में जो पट्टी लगी है, उस पर हर किसी का ध्यान पड़े बिना नहीं रहता। साहब का एमएलए बनने का सपना तो पूरा नहीं हो सका, किन्तु अपने उड़नखटोले पर विधायक लिखा कर रोब दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हालांकि अपने बचाव में छोटे अक्षरों में हारा हुआ प्रत्याशी लिखकर ईमानदारी भी दिखा कर मन हलका करने में कंजूसी नहीं दिखाई।

लाशों पर राजनीति
सूबे में इन दिनों लाशों पर राजनीति जोरों पर है। लाशें भी किन्हीं बड़े-बुजुर्गों की नहीं बल्कि दुधमुंहें बच्चों की। वैसे लाशों पर राजनीति नई बात नहीं, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही है। नेताओं की जुबानें भी लक्ष्मण रेखा पार कर गई हैं। अब देखो न, नेतागिरी चमकाने के चक्कर में न तो अपनों को छोड़ रहे हैं और न सामने वालों को लपेटने में कोई कसर छोड़ रहे। अब इन नेताओं को कौन समझाए कि गुजरे जमाने में दोनों दलों के राज में भूख से मौतों को लेकर पहले भी कई बार सूबे की किरकिरी हो चुकी है। अब उनको कौन समझाए कि उनकी लंबी जुबानों से राज का काज करने वालों की मोटी चमड़ी पर कोई असर दिखाई देने वाला नहीं, चूंकि राज ही बदलता है, काज करने वाले नहीं।

रूठे सैंयां हमारे...
इन दिनों हाथ वाली पार्टी में रूठों को मनाने का काम जोरों पर है, लेकिन रूठने वाले तो किसी न किसी बहाने रूठेंगे, उनको रोक भी कौन सकता है। अब देखों न विधानसभा के उप चुनावों में शिकस्त खाने के बाद सूबे में पार्टी को फिर से अपने पांवों पर खड़ा करने के लिए लक्ष्मणगढ वाले भाई साहब हाथ रूपी जहाज को बैतरणी पार कराने के लिए रात दिन भी एक कर रहे हैं। बाहर का रास्ता दिखा चुके कुछ नेताओं को भी जैसे-तैसे मनाकर अंदर लेने के लिए पसीने बहा रहे हैं, मगर अभी भी उनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब है। बेचारे सूख कर दुबले होते ही जा रहे हैं। इतना करने के बाद भी जहाज है, कि विपरीत हवाओं के चलते आगे नहीं बढ़ पा रहा। और तो और साहब के सहयोगी तक सौ कदम दूर भाग रहे हैं। इंदिरा गांधी भवन में हाथ वाले ठिकाने पर सालों से आने वाले भाई लोग भी समझ नहीं पा रहे कि भाई साहब के सिवाय किसी भी बड़े नेता की सक्रियता दिखाई नहीं दे रही। दो पूर्व सदरों को जिम्मेदारी भी सौंपी गई, लेकिन दोनों किसी न किसी बहाने खुश नहीं है।

एक जुमला यह भी
इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि थोथे थानेदारों को लेकर है। चार महीने पहले छापाखानों में दो दिन तक चर्चा में आए थोथे थानेदारों को भोली भाली पब्लिक भुला चुकी थी, लेकिन गवर्नमेंट हॉस्टल के आसपास बन रहे राजस्थानी गेटों को देखकर उनकी याद ताजा हुए बिना नहीं रहती। जुमला है कि इन गेटों और थोथे थानेदारों की घटना के बीच गहरा ताल्लुकात है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं) 

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