माफियाओं पर नियंत्रण होना जरूरी
आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण के निरंकुश विस्तार के कारण यह अभ्यास पहले से अधिक बढ़ गया है और साथ ही इस अभ्यास की निगरानी इस पर नियंत्रण व अंकुश का शासकीय कर्त्तव्य कुंद पड़ चुका है।
प्रवर्तन निदेशालय, आतंकवाद निरोधक दल तथा अन्य जांच एजेंसियां कुछ दिनों से मादक पदार्थों को जब्त करने व इन्हें छुपाने, बेचने वालों को पकड़ने के अभियान में व्यस्त हैं। कुछ दिन पूर्व दिल्ली में जब्त मादक पदार्थों के प्रकरण पर 11 अक्टूबर को मुकदमा दर्ज करते हुए दिल्ली, मुंबई, गुरुग्राम तथा अन्य नगरों में छापामारी हुई है। छापे के दौरान ये मादक पदार्थ 2 अक्टूबर को दिल्ली स्थित महिपालपुर क्षेत्र के एक गोदाम में पाए गए। पदार्थ में 560 किलो से अधिक का कोकीन तथा 40 किलो का हाइड्रोपोनिक मारिजुआना शामिल था। इसका अनुमानित मूल्य 7000 करोड़ से अधिक है। इस प्रकरण में सात लोग पुलिस हिरासत में हैं। इस संबंध में भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक सहित छह व्यक्तियों के विरुद्ध लुकआउट सर्कुलर भी जारी हुआ है। दो अक्टूबर को पुलिस ने मादक पदार्थों का मुद्रा मूल्यांकन 5620 करोड़ किया था। इससे पहले इसी माह 5 अक्टूबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित एक कारखाने में 1814 करोड़ मूल्य का मेफेड्रोन मादक पदार्थ तथा इसे बनाने में प्रयुक्त होनेवाली कच्ची सामग्री जब्त की गई थी। जब्त मादक पदार्थ का कुल मूल्य 8 हजार करोड़ है। सहज कल्पना की जा सकती है कि मादक पदार्थों के धंधे में लिप्त माफियाओं की कितनी बड़ी एक पृथक अर्थव्यवस्था चल रही है।
मुख्यधारा के शासकीय नियम-कानूनों से छिपकर देश-दुनिया में वितरित होने वाले मादक पदार्थों के कुल मूल्य का सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कितने का होगा। बच्चों, युवक-युवतियों को पथभ्रष्ट करके देश-दुनिया में मनमानियां करने के लिए, जो सबसे सरल रास्ता सत्ता के माफियाओं को नजर आता है, वह उन्हें मादक पदार्थों के उत्पादन, वितरण व प्रसारण में ही नजर आता है। यह सामान्य घटनाएं नहीं हैं। शासन को इस ओर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना होगा। राष्टÑ में मादक पदार्थों का विशाल जंजाल फैला हुआ है। इस जंजाल में लिप्त व्यक्ति मादक पदार्थ बनाने से लेकर बेचने तक के अपने काम को अत्यंत व्यावसायिक और प्रोद्यौगिकीय तरीके से संपन्न करते हैं। गहन दुख व ग्लानिपूर्वक कहना पड़ रहा है कि मादक पदार्थ के माफियाओं के कामधंधों को सुगमतापूर्वक संपन्न करवाने में न्यूनाधिक मात्रा में तथा गोपनीय तरीके से प्रशासन के कुछ घटक भी लिप्त हो सकते हैं। इस कुप्रथा को गुपचुप शासकीय संरक्षण दिए जाने तक ही सीमित नहीं है।अब इस समय तो पैकेट बंद निर्मित व अर्द्धनिर्मित भोज्य उत्पादों व पेय पदार्थों में भी प्राणघातक रासायनिक मिश्रण डाले जा रहे हैं।
आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण के निरंकुश विस्तार के कारण यह अभ्यास पहले से अधिक बढ़ गया है और साथ ही इस अभ्यास की निगरानी इस पर नियंत्रण व अंकुश का शासकीय कर्त्तव्य कुंद पड़ चुका है। मादक पदार्थों तथा रासायनिक मिश्रण वाले गेहूं, चावल, दाल, सब्जी, फल, मसाले, तेल, घी, पैकेट बंद पदार्थों के सेवन से अधिकतर लोगों का स्वास्थ्य बेहाल है। यह बेहाली शरीर के अंगों को क्षतिग्रस्त, निष्क्रिय ही नहीं, बल्कि मस्तिष्कीय व मनोविकारों के रूप में भी परिव्याप्त है।
जनता की इस स्वास्थ्य बेहाली को चिकित्सा सेवा के नाम पर प्राइवेट चिकित्सालयों के रूप में फैले हुए चिकित्सा माफिया अपनी मर्जी व मुनाफे के हिसाब से करते हैं। चिकित्सा की दुर्दशा यह है कि धनपति हों अथवा अंतरराष्ट्रीय ख्याति के नेता या अन्य व्यक्ति किसी को भी चिकित्सकीय देखभाल या एलौपैथ की ओषधियों द्वारा सौ वर्षों तक का पूर्ण स्वस्थ जीवन उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है। हाल ही में रतन टाटा का देहांत हुआ, जो 86 वर्ष के ही थे। वे धनपति थे। उनका अपना चिकित्सालय था। उनके पास असीमित संसाधन थे। तब भी चिकित्सकीय व्यवस्था उन्हें सौ वर्ष का संपूर्ण स्वास्थ्य आधारित खुशहाल जीवन प्रदान नहीं कर सकी।
देश-दुनिया में माफियाओं का चहुंमुखी हस्तक्षेप केवल मादक पदार्थों की अवैध तस्करी या चिकित्सा माफियाओं के रूप में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करके धनार्जन करने तक ही सीमित नहीं है। प्राइवेट स्कूल, बिल्डिंग मैटीरियल, खनन व आपूर्ति, पैकेट बंद भोज्य व पेय पदार्थ बनाने व बेचने का मनचाहा उपयोग व लेनदेन करने, जीवन के हर क्षेत्र व आधुनिक सुविधा पर माफियाओं का नियंत्रण हो चुका है। इस समय शासन व शासकीय व्यवस्था के समानांतर एक स्थापित माफिया अवश्य उपस्थित है, जो लोकतंत्र और इसके संसदीय नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाकर मनमर्जी से अपने लोकघाती व लोकजीवन घाती कार्यों को बेधड़क होकर किए जा रहा है। इस परिस्थिति में जनसाधारण के जीवन व स्वास्थ्य से खिलवाड़ पर कठोर से कठोर दंड का प्रावधान हो। माफिया नियंत्रित गतिविधियां रोकने के लिए कुछ निर्णय सरकार को शीघ्र ही लेने होंगे।
-विकेश कुमार बडोला
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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