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कोरोनाकाल में हैडफोन और ईयर बड्स के जरूरत से ज्यादा उपयोग ने बढ़ाई बहरेपन की समस्या
विश्व श्रवण दिवस आज पर विशेष : ऑनलाइन क्लासेज लेने के दौरान बच्चों-युवाओं में देखी जा रही है ज्यादा परेशानी
कोरोना के चलते बदलती जीवनशैली में सामान्य से अधिक लोगों में बहरेपन या कम सुनने के मामले पहले की अपेक्षा बढ़ते जा रहे हैं।
जयपुर। कोरोना के चलते बदलती जीवनशैली में सामान्य से अधिक लोगों में बहरेपन या कम सुनने के मामले पहले की अपेक्षा बढ़ते जा रहे हैं। यह समस्या बच्चे, युवा और बुजुर्ग वर्ग में सबसे अधिक देखी जा रही है। कोरोना काल में बच्चों और युवाओं में यह समस्या ज्यादा बढ़ गई है। अधिकतर शिक्षण संस्थाओं के विद्यार्थी हैड फोन या इयर बड्स लगाकार आनॅलाइन कक्षाएं ले रहे हैं। वहीं जो लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं, वे भी इस समस्या से प्रभावित है। एसएमएस अस्पताल के ईएनटी विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ. पवन सिंघल ने बताया कि सुनने की समस्या पहले या तो जन्मजात होती थी या जो लोग तेज धमाकों या तेज आवाज के साथ काम करते थे उन्हें इसका सामना करना पड़ता था, लेकिन अब कोरोना काल में आनॅलाइन कक्षाओं के कारण स्टूडेंट्स को भी इससे दो चार होना पड़ रहा है। हमारे कान की सुनने की क्षमता 80 डेसिबल होती है, लेकिन आज के मॉडर्न लाइस्टाइल में लोग अपनी सुनने की क्षमता को ही खो बैठते हैं।
प्रति एक हजार बच्चों में से चार से ज्यादा को करना पड़ रहा है बहरेपन का सामना
नवजात बच्चों की जन्म के समय सुनने की क्षमता की जांच होना भी विशेषज्ञों ने बताया बेहद जरूरी
प्रदेश में भी ऐसे मामलों में हुई बढ़ोतरी
डॉ. सिंघल ने बताया कि राज्य में सुनने की क्षमता प्रभावित होने के मामले पहले से काफी बढ़ गए हैं। एसएमएस अस्पताल में भी बहरेपन के मामले कोरोना काल के बाद ज्यादा बढ़ गए हैं। अधिक समय तक मोबाइल पर बात करना, तेज आवाज में संगीत सुनने या गेम खेलना सबसे अधिक नुकसानदायक है। अकेले एसएमएस की बात करें तो यहां रोजाना 70-80 मरीज सुनने की क्षमता से प्रभावित होने के कारण ओपीडी में इलाज के लिए आ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा बहरेपन की समस्या विकासशील और कम विकसित देशों में देखने को मिलती है। नवजात शिशु की जन्म के समय ही सुनने की जांच की जाए और अगर उसे दिक्कत है तो एक से दो साल के बीच ही कॉकलियर इंप्लांट किया जाए।
राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान का हिस्सा बनें
देशभर में प्रति एक हजार बच्चों में से 4 से अधिक बच्चों को बहरेपन का सामना करना पड़ रहा है। इनको समय पर सुनने की जांच न मिल पाने के कारण ये आवाज से वंचित रह जाते है। ना सुन पाते हैं और ना ही बोल पाते हैं। ऐसे में विशेषज्ञों ने सरकार से मांग की है कि इसके लिए नवजात शिशु की सुनने की जांच अनिवार्य हो। इसे राष्टÑीय टीकाकरण अभियान का हिस्सा बना दिया जाए, जिसमें सुनने की जांच हो सके।
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