'इंडिया गेट'

जानें इंडिया गेट में आज है खास...

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पर्दे के पीछे की खबरें जो जानना चाहते है आप....

आगे कुंआ, पीछे खाई!
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार पवार एवं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए इन दिनों धर्म संकट। आखिर एनसीपी और शिवसेना तीसरे दल कांग्रेस साथ मिलकर महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार जो चला रहे। लेकिन कांग्रेस के सितारे मानो गर्दिश में। जिसका असर पवार और ठाकरे की राजनीतिक सेहत पड़ना लाजमी। सो, इन दिनों असमंजस में। कांग्रेस के साथ सरकार में बनें रहें या उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ें? यानी आगे कुंआ, पीछे खाई वाली हालत! आज छोड़ दें तो गठबंधन सरकार की सेहत पर असर होगा। साथ रहे तो इसका असर 2024 में होना तय। महाराष्ट्र में इन दिनों यही चर्चा। बीएमसी चुनाव बिल्कुल नजदीक। कांग्रेस को साथ लें या छोड़ दें? क्योंकि बीएमसी शिवसेना के लिए गर्भनाल जैसी। शरद पवार छटपटा रहे। उनके कई साथी केन्द्रीय जांच एजेंसी के रडार पर। मुंबई में बड़े स्तर पर यूपी एवं बिहार के लोग। जो चुनावी दृष्टि से खासे महत्वपूर्ण। जिन पर भाजपा का भी खासा असर। सो, दोनों दलों में भ्रम की स्थिति।


प्रियंका का स्टारडम!
तो यूपी में प्रियंका गांधी के पॉलीटिकल स्टारडम ने काम नहीं किया। वह बीते दो साल से जोरशोर से कांग्रेस की सियासी जमीन सींचने में दिन रात एक किए हुए थीं। कई बार तो वह योगी सरकार के खिलाफ सपा एवं बसपा से ज्यादा प्रभावी दिखीं। लेकिन पार्टी का विधानसभा चुनाव में उम्मीद के अनुरुप प्रदर्शन नहीं रहा। करीब 97 फीसदी कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। पार्टी को केवल दो सीटों के साथ 2.70 फीसदी वोट हासिल हुए। अब कांग्रेस यूपी में अपना दल, रालोद एवं निषाद पार्टी से भी नीचले पायदान पर चली गई। प्रियंका गांधी में जो कांग्रेसी इंदिरा गांधी की छवि देख रहे थे। उस पर भी तुषारापात हो गया। पहले राहुल गांधी लगातार विफल होते रहे। वह अमेठी के लोकसभा चुनाव में 2019 में शिकस्त खा चुके। सोनियाजी उम्रदराज हो चलीं। लगभग असक्रिय। अब तो रायबरेली की सीट भी खतरे में। वहां से आदिती सिंह अब भाजपा विधयक। सो, प्रियंका से अब क्या उम्मीद पाली जाए?


केजरीवाल नया चेहरा!
पंजाब में ‘आप’ की प्रचंड जीत के बाद अरविंद केजरीवाल को विपक्ष का मोदी के खिलाफ संभावित चेहरा बताया जा रहा। इससे पहले पिछले साल मई में यही शिगूफा ममता बनर्जी के लिए उछला गया था। ममता दीदी ने बंगाल में तमाम झंझावतों से निकलकर भाजपा को जबरदस्त पटखनी दी थी। लेकिन सवाल अभी भी बरकरार। क्या यह संभव? फिर केसीआर क्या करेंगे? जो पीएम मोदी के खिलाफ काफी आक्रामक। और राहुल गांधी तो हैं ही। क्या यह सब आसानी से मान जाएंगे? चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पूरे आंकलन और अध्ययन के साथ बता चुके। कांग्रेस आज भी 200 लोकसभा सीटों पर सीधे भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में। इसके बावजूद कोई क्षेत्रीय दल का नेता मोदी के सामने कैसे खड़ा होगा? हां, गाहे बगाहे नितिश कुमार और नवीन पटनायक का नाम भी संभावितों की सूची में शामिल हो जाता। ऐसे में केजरीवाल कहां ठहरते? फिर वैसे भी आम चुनाव में दो साल बाकी। कहीं फिर कोई नया चेहरा उभरा तो?


काम नहीं आई कवायद
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सारे मंसूबे फेल हो गए। इस बार अपनी सीटें भले ही करीब ढाई गुनी कर ली। लेकिन पार्टी को सत्ता दिलाने में विफल रहे। वह 2012 से 17 के बीच सीएम रह चुके। लेकिन सपा की हार का सिलसिला 2014 से ही चल निकला। जो अभी तक थमा नहीं। इस बीच उन्होंने आश्यर्चजनक रुप से 2019 के आम चुनाव में बसपा से गठबंधन कर लिया। इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठजोड़ कर लिया। जबकि कांग्रेस शीला दीक्षित को सीएम फेस के रुप में आगे कर चुकी थी। अब आखिरी में 2022 में रालोद के जयंत को भी साथ लिया। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। अखिलेश पर माफियाओं को साथ लेने का भी आरोप। इस बीच अखिलेश कब राजनीति के दिग्गज मुलायम सिंह की छाया से बाहर निकले। पता ही नहीं चला। लेकिन वह सीएम पिताजी द्वारा सौंपी गई कुर्सी से ही बने। मतलब अभी राजनीति में संघर्ष करना बाकी। लेकिन कब तक?

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हाय रे यूक्रेन संकट...
बीते दो हफ्तों से रूस-यूक्रेन युद्ध भारतीय राजनीति में भी चर्चा का केन्द्र बना रहा। आखिर करीब 20 भारतीय वहां फंसे जो हुए थे। उनकी स्वदेश वापसी के लिए सरकर ने बकायदा ऑपरेशन गंगा चलाया। हालत यह हो गई कि विधानसभा चुनावों के बीच भी यूक्रेन संकट ने अच्छी खासी सुर्खियां बटोरीं। इससे और कुछ नहीं सपा, कांग्रेस जैसे दलों को परेशानी हुई। क्योंकि चुनावों के दौरान जो मीडिया कवरेज उन्हें मिलना चाहिए था। उससे यह दल महरुम हो गए। इससे कम से कम तीन चरणों में जनता तक सपा अपनी बात उस शिद्दत से नहीं पहुंचा पाई। बल्कि यूक्रेन संकट ने यूपी के चुनावी माहौल का सारा फोकस लूट लिया। बीती 25 फरवरी के बाद से चर्चा वहीं की रही। कांग्रेस भी उतना प्रचार नहीं कर पाई। खासकर सीधे जनता से जुड़े मसलों का। अब तो चर्चा यहां तक। यूपी से फोकस क्या गायब हुआ। भाजपा बाजी मार ले गई। लोगों का फोकस भारतीय नागरिकों की वापसी पर चला गया।

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रुतबा घटेगा!
भविष्य में कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं लेंगी। बल्कि यह और बढ़ेंगी। यूपी एवं पंजाब के नतीजों ने काफी निराश किया। तो उत्तराखंड, मणिपुर एवं गोवा ने उम्मीदें तोड़ दीं। राष्ट्रीय स्तर पर आज भी भाजपा के सामने कांग्रेस ही मुख्य विपक्ष। साथ में संसद के दोनों सदनों में भी। लेकिन अब यह आभा लगातार कम हो रही। जो रूकने का नाम ही नहीं ले रही। अब हाल यह है कि केजरीवाल जी की ‘आप’ सुदूर दक्षिण में टीआरएस सरकार पर शिक्षा बजट को कम करने का आरोप मड़ रही। जबकि ममता बनर्जी कांग्रेस के पीछे हाथ धोकर पड़ी हुईं। हालात को देखते हुए देशभर में कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूरी बनाने की जुगत में। जो पार्टी के लिए मुसीबत का सबब। अब महाराष्ट्र और झारखंड में भी परेशानियां बढ़ने लगें। यह भी संभव। जहां कांग्रेस गठबंधन सरकार में सहयोगी। जबकि डीएमके पहले ही तमिलनाडु में कांग्रेस को छका रही। नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया।
-दिल्ली डेस्क

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