जलवायु परिवर्तन से लंबा हो सकता है एलर्जी का मौसम
अक्सर देखा जाता है कि सामान्य दिनों की तुलना में विभिन्न खास मौसमों में ही लोगों को एलर्जी की शिकायतें सुनने को मिलती हैं
लेकिन अब वैज्ञानिकों को एक अध्ययन में पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण एलर्जी का मौसम अधिक लंबा हो सकता है।
पराग पैदा करने वाली घास, खरपतवार और पेड़ जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होते हैं। बढ़े हुए तापमान के कारण वे अपने वास्तविक समय से पहले सक्रिय हो जाते हैं। गर्म तापमान भी उत्पादित पराग की मात्रा को बढ़ा सकता है।
अक्सर देखा जाता है कि सामान्य दिनों की तुलना में विभिन्न खास मौसमों में ही लोगों को एलर्जी की शिकायतें सुनने को मिलती हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों को एक अध्ययन में पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण एलर्जी का मौसम अधिक लंबा हो सकता है। नए शोध के अनुसार मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के परिणामस्वरूप एलर्जी के मौसम लंबे और अधिक तीव्र होने की संभावना है। शोधकर्ताओं ने पाया कि 1995 से 2014 की समयावधि की तुलना में इस शताब्दी के अंत तक वसंत तु में पराग कणों का उत्सर्जन 40 दिन पहले हो सकता है। इससे एलर्जी पीड़ितों को पराग कणों के कारण होने वाली तकलीफ 19 और दिन झेलनी पड़ सकती है। इसके अलावा तापमान और कार्बन डाईआक्साइड का स्तर बढ़ने से पराग कणों के उत्सर्जन की मात्रा भी हर साल 200 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
एक मॉडल विकसित
अनुसंधान सहायक यिंगक्सियाओ झांग ने कहा कि पराग से प्रेरित श्वसन एलर्जी जलवायु परिवर्तन के साथ खराब हो रही है। उन्होंने कहा कि हमारे निष्कर्ष पराग और संबंधित स्वास्थ्य प्रभावों पर जलवायु परिवर्तन के परिणाम में आगे की जांच के लिए एक प्रारंभिक बिंदु हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने एक मॉडल विकसित किया, जो सबसे आम पराग कणों में से 15 की जांच करता है।
ये दिक्कतें होती हैं
शोधकर्ताओं ने 1995 से 2014 तक के डेटा के साथ अपने मॉडलिंग को सहसंबंधित करते हुए, सामाजिक आर्थिक परिदृश्यों के साथ जलवायु डेटा को जोड़ा। फिर उन्होंने 21वीं सदी के अंतिम दो दशकों के लिए पराग कण उत्सर्जन की भविष्यवाणी करने के लिए अपने मॉडल का उपयोग किया। एलर्जी के लक्षण हल्के से जलन पैदा करते हैं, जैसे पानी वाली आंखें, छींकना, शरीर पर चकत्ते और अधिक गंभीर स्थितियों जैसे कि सांस लेने में कठिनाई।
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