एनटीए स्कोर में राजस्थान 5 साल से लगातार पिछड़ रहा, तीन गुना तेजी से बढ़ रहा है तेलंगाना

सूची में तेलंगाना के सात स्टूडेंट शामिल हैं

एनटीए स्कोर में राजस्थान 5 साल से लगातार पिछड़ रहा, तीन गुना तेजी से बढ़ रहा है तेलंगाना

इसी तरह वर्ष 2022 के रिजल्ट में भी तेलंगाना के जहां पांच स्टूडेंट थे वहां राजस्थान के मात्र चार स्टूडेंट ही सूची में अपना स्थान बना पाए।

कोटा। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) द्वारा हाल ही जारी जेईई मेंंस रिजल्ट ने शिक्षाविदों की आंखे खोल दी है। राजस्थान लगातार एनटीए की सूची में पिछड़ता जा रहा है जब कि मात्र दस साल पहले 2014 में अस्तित्व में आया तेलंगाना जैसा छोटा सा राज्य राजस्थान को पछाड़ कर दो गुना तेजी से आगे बढ़ रहा है। 2024 के रिजल्ट की ही बात करें तो 100 परसेंटाइल प्राप्त करने वालों की सूची में तेलंगाना के सात स्टूडेंट शामिल हैं जब कि राजस्थान के मात्र तीन स्टूडेंट ही इस सूची में अपना स्थान बना पाए हैं। इससे पहले वर्ष 2023 में तेलंगाना के 11 स्टूडेंट के मुकाबले राजस्थान के  पांच ही विद्यार्थी 100 परसेंटाइल की सूची में नाम दर्ज करा पाए थे। इसी तरह वर्ष 2022 के रिजल्ट में भी तेलंगाना के जहां पांच स्टूडेंट थे वहां राजस्थान के मात्र चार स्टूडेंट ही सूची में अपना स्थान बना पाए। यह स्थिति तब है जब देश भर में कोचिंग नगरी के नाम से ख्यात कोटा शहर  के  कोचिंग संस्थानों के पास देश की नामचीन फैकल्टी उपलब्ध है। हाई टेक कोचिंग संस्थान हैं। महलों जैसी सुविधा वाले विशाल भवनों की श्रंखला उपलब्ध है। हजारों हॉस्टल्स हैं। पूरा शहर पलक पांवड़े बिछाए स्टूडेंट्स का ऐसे ध्यान रखता है। सवाल उठता है कि फिर यह हालात क्यों हैं। 

कोचिंग बना कारपोरेट बिजनेस
कोचिंग इंडस्ट्री से जुड़े एक्सपर्ट का कहना है कि कोटा में 1990 से शुरू हुआ शिक्षा का  दौर पूरी तरह कॉरपोरेट बिजनेस में बदल चुका है। कोचिंग संस्थानों द्वारा अब शिक्षा नहीं शिक्षा के लिए खर्च की जाने वाली मोटी फीस पर फोकस किया जाने लगा है। पहले टेस्ट के जरिए आईआईटी की तैयारी करने वाले बच्चों का शैक्षणिक स्तर आंका जाता था। लेकिन आज लाखों की भीड़ को बिना परखे ही जेईई,आईआईटी, नीट की कोचिंग करवाई जा रही है। पहले कोचिंग संस्थानों द्वारा क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस किया जाता था, लेकिन अब  शिक्षा की गुणवत्ता गौण हो गई।  जिसका दुष्परिणाम आत्महत्या के रूप में सामने आने लगे।  

शो बिजनेस बना कोचिंग
 कोटा के कोचिंग अब शो बिजनस बन गए हैं। अभिभावक यहां कोचिंग और हॉस्टल्स के भरोसे अपने बच्चों को छोड़ कर जाते हैं। लेकिन कोचिंग संस्थानों का ध्यान केवल पैसे पर रहता है। प्रशासन की गाइड लाइन को कोचिंग फोलो नहीं करते। बच्चे पर पूरा ध्यान नहीं देते। हालात यह हो रहे हैं कि अब लोग अपने बच्चों को कोटा भेजने से भी डरने लगे हैं।    

-लाल नारायण प्रताप, अभिभावक  

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स्कूलों की तरह हो पीटीएम
कोचिंग में स्कूलों की तर्ज पर पैरेंट्स-टीचर मीटिंग होनी चाहिए।  क्लासरूम में आॅब्जर की छात्रों की गतिविधियों से अभिभावकों को अवगत कराएं। प्रत्येक विद्यार्थी की काउंसलिंग अभिभावकों व टीचर के साथ सुनिश्चिित हो। बच्चे किस विषय में कमजोर है, उनकी कमियों को कैसे सुधारा जाए इस पर फोकस करना चाहिए लेकिन कोचिंग केवल पैसे पर फोकस कर रहे हैं।  

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- अजीम पठान, शिक्षाविद

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समर्पण की भावना खत्म
ं पहले कोचिंग का छात्र के प्रति तो छात्र का शिक्षक के प्रति समर्पण का भाव होता था। अब दोनों ही स्तर पर बीच में पैसा आ गया है। समर्पण की भावना खत्म होने से यह स्थिति बन रही है। कोचिंग में व्यावसायिकता हावी हो रही है। अब बच्चों पर फोकस कम और ज्यादा से ज्यादा कोचिंग बिजनस के विस्तार पर ध्यान दिया जा रहा है। सारी स्थितियां इसी से बिगड़ रही हैं।    

-देव शर्मा, कोचिंग एजुकेशन एक्सपर्ट


साउथ में शिक्षा का माहौल
साउथ इंडिया में हायर एजुकेशन मजबूत है। वहां शिक्षा का माहौल, परिवेश और स्तर काफी अच्छा है। क्लास में बच्च्चों की शिक्षा पर बहुत फोकस किया जाता है, जबकि कोटा में डमी एडमिशन कल्चर बहुत व्यापक स्तर पर है। कोचिंग करने आने वाले विद्यार्थी यहां के स्कूलों में डमी एडमिशन लेते हैं। इससे इन बच्चों की स्कूली नीवं कमजोर रहती हैं।  

 -प्रो. गोपाल सिंह, अर्थ शास्त्री

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