आन्ध्र प्रदेश: त्रिकोणीय चुनावी मुकाबला
2019 में यहां हुए चुनावों में यहां के एक क्षेत्रीय दल वाईएसआर कांग्रेस ने अन्य दलों का सफाया सा ही कर दिया था।
दक्षिण भारत में आन्ध्र प्रदेश एक ऐसा राज्य जहां लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ चुनाव होने वाले हैं। 2019 में यहां हुए चुनावों में यहां के एक क्षेत्रीय दल वाई एस आर कांग्रेस ने अन्य दलों का सफाया सा ही कर दिया था। इस पार्टी को कुल 175 में से 151 पर जीत मिली थी। चुनावों से पूर्व यहां के सत्तारूढ़ दल तेलगुदेशम पार्टी को केवल 23 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसी प्रकार कुल 25 लोकसभा सीटों में यह पार्टी 22 सीटों जीतने में सफल रही थी। उस समय दोनों दलों में लगभग सीधा मुकाबला था। लेकिन अब पांच साल बाद यहां की सियासी तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। नए राजनीतिक समीकरण उभर कर सामने आ रहे है। ऐसा लग रहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री तथा वाई एस आर कांग्रेस मुखिया जगन मोहन रेड्डी को फिर सत्ता में आने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। जो समीकरण उभर का सामने आ रहे हैं उसके अनुसार सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले होंगे। जगन मोहन रेड्डी की पार्टी को न केवल बीजेपी-तेलगुदेशम- जन सेना पार्टी के नए गठबंधन का सामना करना पड़ेगा बल्कि अपनी मूल पार्टी कांग्रेस से भी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। दिलचस्प बात यह है कि इस समय राज्य कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष कोई और नहीं बल्कि जगन मोहन रेड्डी की सगी बहन वाई एस शर्मिला है। एक समय था जब राज्य में कांग्रेस पार्टी की तूती बोलती थी। जगन मोहनरेड्डी के पिता राजशेखर कांग्रेस पार्टी को दो बार सत्ता में लाने में सफल रहे थे। अचानक जब उनकी एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई तो उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को लगा कि पार्टी आलाकमान अब राज्य में पार्टी की कमान उनको सौंप देगी। लेकिन पार्टी के भीतर के गुटबन्दी के चलते ऐसा नहीं हो सका। इसके चलते जगन मोहन रेड्डी ने वाई एस आर कांग्रेस के नाम से अपना अलग दल बना लिया। 2014 में उनकी पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई और राज्य में तेलगुदेशम पार्टी फिर सत्ता में आई। उस समय तेलगुदेशम पार्टी केंद्र में एनडीए का हिस्सा थी। लेकिन 2019 के चुनावों से कुछ पहले तेलगुदेशम पार्टी एनडीए से अलग हो गई। इसके नेता चंद्रबाबू नायडू ने अपनी ओअर्टी के बलबूते पर चुनाव लड़ने का निर्णय किया। उधर राज्य में गुटबन्दी का शिकार कांग्रेस पार्टी की राज्य में हालत खस्ता थी। बीजेपी उस समय अन्य पार्टियों से बहुत पीछे थी। इसका पूरा लाभ जगन मोहन रेड्डी की पार्टी को मिला तथा वह सत्ता में सफल रही। लेकिन जगन्मोहन रेड्डी के सत्ता में आने कुछ महीने बाद जगन मोहन रेड्डी के अपनी मां तथा बहिन शर्मिला रेड्डी के संबंधों में दरार आ गई। यह दरार जल्द ही इतनी गहरी हो गई कि मां-बेटी ने आन्ध्र प्रदेश से कट बने नए राज्य तेलंगाना में जाकर तेलंगाना वाई एस आर के नाम से नई पार्टी का गठन कर लिया। मां और बेटी को लगता था कि अविभाजित आंध्र ओर देश में राजशेखर रेड्डी की छवि चलते उनकी नई पार्टी को व्यापक समर्थन मिलेगा। उनकी पार्टी 2019 के चुनावों में कुछ खास नहीं कर पाई। धीरे -धीरे दोनों कांग्रेस पार्टी के नजदीक होती चली गईं। दोनों दलों में बनी सहमति के आधार पर शर्मिला के पार्टी हाल ही के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए और कांग्रेस के उम्मीदवारों का समर्थन किया। राज्य में कांग्रेस पार्टी भारत राष्टÑ समिति को पराजित कर सत्ता में आने में सफल रही। इसी बीच शर्मिला गांधी परिवार के निकट हो गई। तेलंगाना के चुनावों में कुछ समय बाद ही उन्हें आंध्र प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व सौंपने का निर्णय किया गया। पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद शर्मिला ने राज्य में लम्बी यात्राएं आरंभ की ताकि संगठन को फिर सक्रिय किया जा सके।
इसी बीच पार्टी ने तय किया है कि वह राज्य के सभी 175 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी।उधर तेलगुदेशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू एक बार फिर बीजेपी के नजदीक आ गए, क्योंकि उनको लगता था कि बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ कर ही उनकी पार्टी राज्य में फिर सत्ता में आ सकती है। राज्य के एक अन्य क्षेत्रीय दल जन सेना पार्टी के साथ तेलगुदेशम पार्टी का गठबंधन हो चुका है। अब दोनों दल मिलकर बीजेपी के नेताओं से मिलकर सीटों के बंटवारे की बातचीत कर रहे है। अब लगभग तय सा है कि इस बार राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला होगा।
- लोकपाल सेठी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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