तेंदुओं की आबादी का बढ़ना बेहद सुखद

तेंदुओं की आबादी का बढ़ना बेहद सुखद

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की गुरुवार को आई ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में देशभर में करीब 13,874 तेंदुए हैं।

यह बेहद सुखद खबर है कि देश में तेंदुओं की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की गुरुवार को आई ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में देशभर में करीब 13,874 तेंदुए हैं। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, शिवालिक पहाड़ियों और उत्तर भारत के कई इलाके में इनकी संख्या में गिरावट आई है। मंत्रालय ने कहा कि ताजा गणना में तेंदुओं की संख्या 12,616 से 15,132 के बीच पाई गई है, जबकि इससे पहले 2018 में किए गए सर्वे में यह आंकड़ा 12,172 से 13,535 के बीच था। बता दें कि यह रिपोर्ट राष्टÑीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एवं वन्य जीव संस्थान द्वारा किए गए पांचवें चक्र की गणना पर आधारित है। यह सर्वेक्षण चार बड़े टाइगर रिजर्व में 18 बाघ राज्यों में तेंदुओं की रिहायश वाले लगभग 70 फीसदी क्षेत्र में किया गया।

हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को भारत में तेंदुओं की बढ़ती आबादी पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि तेंदुओं की संख्या में यह उल्लेखनीय वृद्धि जैव विविधता के प्रति भारत के अटूट समर्पण का प्रमाण है। पीएम मोदी ने उन सभी लोगों की भी सराहना की जो वन्यजीव संरक्षण की दिशा में विभिन्न सामूहिक प्रयासों का हिस्सा हैं। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मंत्रिमंडल ने जानवरों की सात प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक संयुक्त गठबंधन विकसित करने के लिए इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस यानी आईबीसीए की स्थापना का रास्ता भी साफ  कर दिया है। इस एलायंस का मुख्यालय भारत में होगा। इसे 2023-24 से 2027-28 तक पांच वर्षों की अवधि के लिए 150 करोड़ रुपये की एकमुश्त बजटीय सहायता मिलेगी। उल्लेखनीय है कि बिग कैट के अंतर्गत मुख्यत: सात बिग कैट आते हैं इनमें प्रमुखत: बाघ, शेर, तेंदुआए हिम तेंदुआ, प्यूमाए जगुआर और चीता शामिल हैं। बता दें कि बिग कैट्स और उनके आवासों की सुरक्षा करके, आईबीसीए प्राकृतिक जलवायु अनुकूलन, जल और खाद्य सुरक्षा और इन पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर समुदायों की भलाई में योगदान देने का काम करेगा। इसका उद्देश्य पारस्परिक लाभ और दीर्घकालिक संरक्षण लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। इस एलायंस की सफलता के लिए बहुत जरूरी है कि वन्य जीवों के लिए मुफीद वातावरण बनाया जाए। उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए बेहतर प्रबंध किए जाए। अगर हम वन्य जीवों के महत्व को समझने लगेंगे तो यह भविष्य में निश्चित रूप से हमारे देश की सॉफ्ट पॉवर को दर्शाएंगे।

हालांकि, तेंदुएं की तादाद को बताते ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि विभिन्न राज्यों में इनकी संख्या अलग-अलग तरह से घटी या बढ़ी है। तमिलनाडु में तेंदुओं की संख्या में जहां खासी वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं राजस्थान में संख्या स्थिर है। अलबत्ता यहां थोड़ी कमी ही आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में तेंदुओं की संख्या लगातार देश में सबसे अधिक बनी हुई है, जहां 3,907 तेंदुए पाए गए हैं। यहां वर्ष 2018 में 3,421 तेंदुए थे। महाराष्टÑ में 2018 में 1,690 तेंदुए थे, जो 2022 में बढ़कर 1,985 हो गए। वहीं, कर्नाटक में इनकी संख्या 1,783 से बढ़कर 1,879 और तमिलनाडु में 868 से बढ़कर 1,070 हो पहुंच गई। वहीं, अरुणाचल प्रदेश में इनकी संख्या में सबसे कम वृद्धि हुई, जहां 2018 में 11 तेंदुए थे, वर्ष 2022 में यह संख्या 42 तक ही पहुंची।

हालांकि ग्लोबल इकोलॉजी एंड बायोग्राफी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया था कि सड़क पर वाहनों द्वारा होने वाली मौतों के कारण उत्तर भारत में तेंदुओं के विलुप्त होने का खतरा 83 फीसद बढ़ गया है। इसके पीछे की मुख्य वजह रोडकिल को माना गया। दरअसल, सड़क पर वाहनों द्वारा होने वाली मौतों को रोडकिल कहा जाता है। अध्ययन में इस बात का दावा किया गया है कि रोडकिल का वर्तमान स्तर ऐसे ही बना रहता है तो आगामी 50 वर्षों में वैश्विक स्तर पर विलुप्ति के खतरे का सामना कर रहे चार जानवरों की आबादी में से उत्तर भारत में पाई जाने वाली तेंदुओं की आबादी सर्वाधिक सुभेद्य होगी यानी कि इन पर विलुप्ति का खतरा सबसे अधिक होगा। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि रोडकिल तेंदुए के जीवन को संकटमय बना रहा है। मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट बताती है कि शिवालिक पहाड़ियों और मैदानी इलाकों में तेंदुए की संख्या 2018 में 1,253 थी जो 2022 में घटकर 1,109 हो गई। मंत्रालय से संबंधित केंद्रीय मंत्री ने बयान में कहा है कि शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानी इलाकों में तेंदुओं की संख्या में प्रति वर्ष 3-4 फीसदी की दर से गिरावट हुई है। जो तेंदुएं पर मंडराते संकट को ध्वनित करता है। रिपोर्ट की मानें तो वन्य जीव (सुरक्षा) अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 में दर्ज होने और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन रेड लिस्ट द्वारा अतिसंवेदनशील घोषित किए जाने के बावजूद तेंदुओं पर खतरा मंडरा रहा है। इनकी रिहायश के इलाके लगातार कम होने, मानव-वन्यजीव संघर्ष, शिकार और अवैध व्यापार के कारण इन्हें जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
     

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