जानिए राजकाज में क्या है खास

सूबे में इस बार जो दशा हरकारों की बिगड़ी है, वह किसी सपने से कम नहीं है

जानिए राजकाज में क्या है खास

असर तो असर ही होता है, और जब अपने ही विरोध करे तो उसका असर और भी ज्यादा बढ़ जाता है।

चर्चा में खाकी और काला कोट
सूबे में इन दिनों खाकी और काला कोट वाले फिर चर्चा में हैं। हो भी क्यों ना, मामला न्याय के मंदिर से सड़क पर जो आ गया। पिंकसिटी की पब्लिक के अब तक समझ में नहीं आ रहा कि खाकी और काले कोट वालों के फेर में उसे चक्करघिन्नी करने के पीछे राज का मकसद क्या है। अब देखो ना, गत दिनों रात एक बजे बाद काले कोट वाले कुछ भाई लोग खाकी वालों के हत्थे चढ़ गए। वर्दी उतरवाने की बात हो गई तो खाकी वालों का कम पड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता, सो वो ही किया, जिसके लिए फेमस हैं। लात-घूंसों से अगुवानी करने के बाद मुंह से भी आवभगत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि दूसरे दिन काले कोट वालों ने सड़क पर उतरकर जो कुछ किया, वह मायने नहीं रखता, लेकिन खाकी वालों ने जो किया, वह उन्हें सबक जरूर सिखा गया।

कॉन्फिडेंट बनाम ओवर कॉन्फिडेंट
पड़ोसी सूबे हरियाणा में जो कुछ रिजल्ट आया, उसने कॉन्फिडेंट और ओवर कॉन्फिडेंट की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनावी जंग से पहले बढ़ चढ़कर दावे करने वाले घर से बाहर निकलने में भी शरमा रहे हैं। और तो और घरवाली तक चैन से न तो खाने दे रही और न ही पीने दे रही। दिन का चैन और रातों की नींद कोसों दूर है। अब भाई लोगों को कौन समझाए कि कॉन्फिडेंट और ओवर कॉन्फिडेंट के फेर में फंसने वाले भाई लोगों को न तो आगा दिखता है न ही पीछा। हरियाणा में भगवा वाले भाई लोग कॉन्फिडेंट थे तो हाथ वाले ओवर कॉन्फिडेंस पाले हुए थे।

असर अपनों के विरोध का
असर तो असर ही होता है, और जब अपने ही विरोध करे तो उसका असर और भी ज्यादा बढ़ जाता है। अब देखो ना पिछले दिनों सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर इसका असर कुछ ज्यादा ही दिखाई दिया। स्टेट इंचार्ज आरएमए भाई साहब ने अपनों के कामकाज को लेकर अपना मुंह खोला तो एक युवा मंत्री पर जल्द ही असर दिख गया। मंत्री ने जो कुछ बोला, उसका असर औरों पर पड़ा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा मगर आरएमए साहब पर हाथों हाथ दिख गया। यूथ मिनिस्टर के मुंह से भी सत्य वचन निकल गया कि हम सामने वालों का क्या विरोध करें, अभी तो मीनेष वंशज डॉक्टर साहब के इस्तीफे की गूंज भी कम नहीं हुई। इस बार तो हम सबसे पहले अपने ही राज के फैसलों पर सवाल खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

बेचारे हरकारे
सूबे में इस बार जो दशा हरकारों की बिगड़ी है, वह किसी सपने से कम नहीं है। उन्हें चारों तरफ  से लताड़ के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा। बेचारों को आंसू पौंछने वाले तक नहीं मिल रहे। जिनके सहारे कॉलर ऊंची कर मार्केट में घूमते हैं, वो भी बगले झांकने में ही अपनी भलाई समझते हैं। अब देखो ना दिन रात राज के गीत गाने के बाद भी बताशों की जगह दुत्कार ही पल्ले पड़ती है। राज का काज करने वाले भी समझ नहीं पा रहे कि आखिर माजरा क्या है। पहले चौकड़ी की सलाह से सीएमओ और सीएमआर के चारों तरफ  लक्ष्मण रेखा खींची गई और प्रेम से बुलावा देने के बाद भी दुत्कार दिया जाता है। बड़ी कुर्सी को कौन सलाह दे कि हरकारों और राज का संबंध तो जन्मों-जन्मों से है। अब राज को दोष भी तो नहीं दिया जा सकता। चूंकि उनके सलाहकारों को तो अपने कामों से ही फुर्सत नहीं है। सचिवालय में चर्चा है कि राज के कानों तब सच पहुंचे तो कई चापलूसों का पत्ता साफ  हो, लेकिन खाटी कहने वाले भी तो कम नहीं है, वो चौकड़ी से भी दो कदम आगे हैं। जो कुछ हो रहा है उसे देख-देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। उनकी छठी इंद्री का संकेत है कि थोड़ा ठण्डी करके खाओ, वक्त एक सा नहीं होता।

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एल एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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