ऐसे समझें हरियाणा में बीजेपी की जीत की इन्साइड स्टोरी, क्यों हुए एग्जिट पोल फेल

बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है

बीजेपी ने बहुमत के लिए जरूरी 46 से 2 सीट ज्यादा हासिल की हैं। हरियाणा में बीजेपी की जीत के पीछे 5 फैक्टर क्या रहे, आइए जानते हैं।

नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव में सभी एग्जिट पोल को झूठा साबित करते हुए बीजेपी जबरदस्त जीत दर्ज की। 90 विधानसभा सीटों वाले राज्य में बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। बीजेपी ने बहुमत के लिए जरूरी 46 से 2 सीट ज्यादा हासिल की हैं। हरियाणा में बीजेपी की जीत के पीछे 5 फैक्टर क्या रहे, आइए जानते हैं।

चुनाव से पहले खट्टर की जगह सैनी को सीएम बनाने का दांव
बीजेपी पहली बार 2014 में हरियाणा की सत्ता में आई। 2019 में वह अपने दम पर बहुमत से दूर रही लेकिन जेजेपी की मदद से गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही। हालांकि, लगातार दो कार्यकाल सत्ता में रहने पर एंटी-इन्कंबेंसी का जोखिम तो रहता ही। इसी जोखिम को खत्म करने के लिए बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपना जांचा-परखा, आजमाया दांव चल दिया। दांव मुख्यमंत्री बदलने का। पंजाबी खत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह पर उनके ही भरोसेमंद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी का ये दांव कामयाब रहा है।

सैनी के सीएम बनने से ओबीसी वोट बीजेपी के पक्ष में झुका
नायब सिंह सैनी ओबीसी समुदाय से आते हैं। वह हरियाणा में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले ओबीसी समुदाय के पहले शख्स हैं। इससे उनके समुदाय के वोटरों का बीजेपी की ओर झुकाव बढ़ा। हरियाणा में अहीर, गुज्जर और सैनी समुदाय करीब 11 प्रतिशत हैं। ओबीसी 34 प्रतिशत के करीब हैं।

नए कैंडिडेट्स को टिकट 
बीजेपी ने सत्ताविरोधी रुझान और स्थानीय स्तर पर विधायक के लेवल पर वोटरों में नाराजगी को दूर करने के लिए सीएम बदलने के अलावा एक और दांव चला। दांव नए उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का। इससे कुछ सीटों पर पार्टी को बगावत का भी सामना करना पड़ा।चुनाव में बीजेपी को इसका लाभ भी मिला और एंटी-इन्कंबेंसी की तपिश को खत्म करने में मदद मिली।

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दलित वोट पर फोकस
कांग्रेस हरियाणा में जीत को लेकर आश्वस्त थी। बीजेपी को पता था कि इस बार राह आसान नहीं रहने वाली। उसने बहुत ही करीने से कांग्रेस की अंतर्कलह का फायदा उठाया। कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा बनाम कुमारी सैलजा की लड़ाई को खूब हवा दी। टिकट वितरण में हुड्डा खेमे की ही चली और ज्यादातर उम्मीदवार वही बने, जिन पर पूर्व सीएम का हाथ था। सैलजा इससे असहज भी हुईं और उन्होंने चुनाव प्रचार से दूरी बना ली। इतना जरूर है कि राहुल गांधी की एक रैली में वह हुड्डा के साथ मंच पर दिखीं। बीजेपी ने ये प्रचारित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी कि कांग्रेस के भीतर दिग्गज दलित चेहरा सैलजा का अपमान किया जा रहा है। उनकी उपेक्षा हो रही है। इसके अलावा पार्टी ने मिर्चपुर कांड की याद दिलाकर दलितों को चेतावनी भी दी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो उनके समुदाय पर अत्याचार का दौर शुरू हो सकता है। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को दलित वोटरों को भी साधने में कामयाबी मिलती दिख रही है।

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जख्मों को कुरेदने में कामयाब रही बीजेपी
2005 में गोहाना में दलित-जाट संघर्ष हुआ था, और वैसे ही 2010 में मिर्चपुर में। दोनो घटनाओं में अंतर जरूर पांच साल का था, लेकिन दोनो बार दलितों के घर जलाए गए थे। मिर्चपुर में एक बच्ची, और एक बुजुर्ग को जिंदा जला दिया गया था। उसी गोहाना की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने दलितों और ओबीसी को ठगने का काम किया है। मोदी ने अपनी स्टाइल में समझाया कि 2014 से पहले हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार थीङ्घ हुड्डा की सरकार में... शायद ही ऐसा कोई साल रहा हो, जब दलितों और ओबीसी के उत्पीड़न की घटनाएं न हुई हों। और सिर्फ प्रधानमंत्री ही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सैनी ने अपनी चुनाव रैलियों में बार बार इन घटनाओं की याद दिलाकर पुराने जख्मों को कुरेदने की भरपूर कोशिश की। चुनाव नतीजे तो यही बता रहे हैं कि बीजेपी अपने मिशन में कामयाब है, और कांग्रेस को भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

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 गैर-जाट वोटों की लामबंदी
कांग्रेस का अति-आत्मविश्वास, भूपेंद्र सिंह हुड्डा को उम्मीदवार तय करने में फ्री हैंड के साथ बहुत ज्यादा अहमियत ने चुनाव में जाट बनाम गैर-जाट ध्रुवीकरण को हवा दिया। ऊपर से बीजेपी ने नायब सिंह सैनी के तौर पर ओबीसी समुदाय का पहला मुख्यमंत्री देकर इस ध्रुवीकरण को और मजबूत ही किया। इसका फायदा पार्टी को मिला। हरियाणा जाट दबदबे वाला राज्य है जहां करीब 30 प्रतिशत जाट हैं। दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग के वोटर की तादाद तकरीबन 34 प्रतिशत है। इनके अलावा 17 प्रतिशत दलित हैं। कांग्रेस में जाट समुदाय को बहुत ज्यादा अहमियत मिलने से कहीं न कहीं गैर-जाट वोटरों का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ा। बीजेपी को अंदाजा हो गया था कि उसे लेकर जाट वोटर में नाराजगी है इसलिए उसने इस समुदाय से बहुत ज्यादा उम्मीद तक नहीं पाली। चुनाव से पहले बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से दूरी बना ली जिसका कोर वोटर बेस जाट ही है। इसका भी बीजेपी को फायदा मिला।

 

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