उपचुनाव में कांग्रेस : 4 सीटों पर निर्णय आसान, 3 सीटों पर जिताऊ और टिकाऊ की तलाश जारी

दावेदारों के बीच सामंजस्य बनाए रखना भी जरूरी हो गया है

उपचुनाव में कांग्रेस : 4 सीटों पर निर्णय आसान, 3 सीटों पर जिताऊ और टिकाऊ की तलाश जारी

भाजपा की रणनीति पर निगरानी बनाते हुए संगठन और दावेदारों के बीच सामंजस्य बनाए रखना भी जरूरी हो गया है।

जयपुर। विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव के बाद कभी भी आचार संहिता लगने की स्थिति में कांग्रेस ने भी प्रत्याशियों के चयन की कवायद तेज कर दी है। उपचुनावों में छह सीटों पर जीत की उम्मीद से लबरेज कांग्रेस हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद अब सभी सीटों पर नए सिरे से रणनीति बना रही है। कांग्रेस चार सीटों दौसा, देवली-उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ़ सीट पर जिताऊ प्रत्याशी तय करने का निर्णय आसानी से ले सकती है, लेकिन तीन सीटों खींवसर, चौरासी और सलूम्बर पर जिताऊ उम्मीदवार की तलाश अभी भी जारी है। गठबंधन पर फैसला नहीं होने के कारण खींवसर, चौरासी और सलूम्बर सीट को लेकर पशोपेश में फंसी कांग्रेस ने अपने स्तर पर भी मजबूत पार्टी प्रत्याशियों का फीडबैक लेना शुरू कर दिया है। उपचुनाव में कांग्रेस के पास पूर्व में जीती हुई सीटों को बचाने की चुनौती है, लेकिन भाजपा की रणनीति पर निगरानी बनाते हुए संगठन और दावेदारों के बीच सामंजस्य बनाए रखना भी जरूरी हो गया है।

दौसा: कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट के प्रभाव वाली माने जाने वाली यह सीट बचाए रखने कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है। विधायक मुरारीलाल मीणा के सांसद बनने के बाद खाली हुई सीट पर कांग्रेस की बड़ी चिंता भाजपा नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा है, जिनकी इस क्षेत्र में अच्छी पैठ है। भाजपा के मजबूत दावेदारों के बीच कांग्रेस में यहां सांसद मुरारीलाल मीणा की पत्नी सविता मीणा, बेटी निहारिका मीणा प्रमुख दावेदार हैं। इसके अलावा पायलट के करीबी पूर्व विधायक जीआर खटाणा, पूर्व छात्रसंघ महासचिव नरेश मीणा, ब्राह्मण नेता महेश शर्मा, संदीप शर्मा, पूर्व मंत्री बृजकिशोर शर्मा और उनके बेटे-बहू भी दावेदार हैं। भाजपा और कांग्रेस के दावेदारों में से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरने पर मुकाबला रोमांचक हो सकता है। 

देवली-उनियारा: विधायक हरीश मीणा के सांसद बनने के बाद भी यहां कांग्रेस का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। सांसद के भाई और पूर्व केन्द्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा, पूर्व विधायक रामनारायण मीणा, धीरज गुर्जर भी यहां से दावेदार हैं। पूर्व छात्रसंघ महासचिव नरेश मीणा की दौसा के बाद यहां भी दावेदारी बनी हुई है। इस सीट पर मुख्य रूप से चुनौती कांग्रेस और भाजपा के बीच है। गठबंधन नहीं होने पर आरएलपी भी यहां से प्रत्याशी उतारे तो मुकाबला रोमाचंक होगा। तीसरे मोर्चे के अन्य दलों का यहां मजबूत आधार नहीं है।

रामगढ़: कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन के बाद खाली इस सीट पर भी मुकाबला काफी रोचक माना जा रहा है। इस सीट पर तीन बार भाजपा और चार बार कांग्रेस के विधायक बनने के साथ ही दो परिवारों का राज रहा है। भाजपा राज में कांग्रेस के लिए यह सीट बचाना चुनौती है। हिंदू-मुस्लिम राजनीतिक समीकरण वाली इस सीट पर कांग्रेस में दिवंगत विधायक की पत्नी पूर्व विधायक साफिया जुबेर खान और बेटा प्रमुख दावेदार है। तीसरे मोर्चे के दलों में यहां कई चुनावों में बसपा से प्रत्याशी उतारा गया है, लेकिन जीत नहीं मिली।

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झुंझुनूं: पूर्व केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला परिवार के प्रभाव वाली इस सीट पर कांग्रेस का लंबे समय से जीत का सिलसिला बरकरार है। बिना माइक्रो मैनेजमेंट के भाजपा को कांग्रेस का यह गढ़ ढहाना चुनौती है। विधायक से सांसद बन चुके बृजेन्द्र ओला की पत्नी राजबाला ओला, पुत्र अमित ओला, पुत्रवधु आकांक्षा ओला के अलावा यहां कांग्रेस जिलाध्यक्ष दिनेश सुंडा भी दावेदार हैं। तीसरे मोर्चं के दलों में यहां आरएलपी, बसपा, आप पार्टी प्रत्याशी उतारें तो कांग्रेस को परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी की रणनीति तैयार करनी पड़ेगी। यहां जाट और दलित वोट बैंक ही हार जीत तय करते हैं।

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सलूम्बर: दिवंगत भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर कांग्रेस को जिताऊ प्रत्याशी की तलाश है। भाजपा यहां सहानूभूति लहर पर सवार होकर चुनाव लड़ेगी तो आदिवासी पार्टी बीएपी का यहां अच्छा खासा प्रभाव माना जा रहा है। गठबंधन नहीं होने पर कांग्रेस को यहां किसी पूर्व दिग्गज को मैदान में उतारना पड़ेगा। इस सीट पर कांग्रेस में पूर्व सांसद रघुवीर मीणा, पत्नी बसंती मीणा प्रमुख दावेदार हैं। बीएपी का प्रत्याशी घोषित होने के बाद यहां मुकाबला काफी रोचक रहेगा।

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खींवसर: आरएलपी विधायक से सांसद बने हनुमान बेनीवाल के कारण यह सीट खाली हुई। गठबंधन नहीं होने के कारण यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने के संकेत हैं। आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल के मजबूत प्रभाव वाली इस सीट पर कांग्रेस के विधायक हरेन्द्र मिर्धा के बेटे राघवेन्द्र मिर्धा और पूर्व जिला प्रमुख बिन्दु चौधरी प्रमुख दावेदार हैं। आरएलपी में हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल और भाई नारायण बेनीवाल में से किसी को मौका मिल सकता है। 

चौरासी: बीएपी पार्टी के राजकुमार रोत के विधायक से सांसद बनने के बाद इस सीट पर बीएपी पार्टी का अच्छा खासा प्रभाव है। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों को जिताऊ प्रत्याशी की तलाश है। बीएपी के पोपटलाल खोखरिया प्रमुख दावेदार बताए जा रहे हैं। इसके अलावा अनिल और दिनेश भी दावेदार हैं। कांग्रेस में पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा, बेटा रूपचंद भगोरा और महेन्द्र भगोरा दावेदार माने जा रहे हैं। यहां आदिवासी क्षेत्र में धरातल पर पकड़ रखने वाला कद्दावर नेता जीत हासिल करेंगे।  

 

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