नमक सत्याग्रह की चिंगारी राजस्थान से उठी

नमक सत्याग्रह की चिंगारी राजस्थान से उठी

बापू की हथेली में मुट्ठी भर नमक ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया। गुजरात में अरब सागर के तटीय गांव दांडी में आज से 94 बरस पहले 6 अप्रैल 1930 का यह परिदृष्य भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया।

बापू की हथेली में मुट्ठी भर नमक ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया। गुजरात में अरब सागर के तटीय गांव दांडी में आज से 94 बरस पहले 6 अप्रैल 1930 का यह परिदृष्य भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 12 मार्च को नमक सत्याग्रह से जुड़ी प्रसिद्व दांडी यात्रा महात्मा गांधी के नेतृत्व में आरम्भ हुई। लेकिन नमक सत्याग्रह की यह चिंगारी 1926 में पश्चिमी राजस्थान के पचपदरा से फूटी थी। इसकी दिलचस्प कहानी है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान औपनिवेशिक भारत में अहिंसक सविनय अवज्ञा के रूप में दांडी यात्रा अहम पड़ाव था। यह मार्च 1882 के नमक अधिनियम के प्रतिरोध में समुद्र के जल से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति के उल्लंघन का प्रतीक बना। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 78 स्वयंसेवक रोजाना औसतन 16 से 19 कि.मी. पदयात्रा करते हुए करीब 386 कि.मी. की दूरी 24 दिन में तय करके नवसारी के दांडी पहुुंचे। अगले दिन 6 अप्रैल को प्रात:काल दांडी के समुद्र तट पर बापू ने नमक हाथ में लेकर नमक कानून तोड़ा। ब्रिटिश कानून के तहत उन्हें हिरासत में ले लिया। एक शीशी मे बंद नमक की यह ढेली बाद में संग्रहालय मे रखी गई।

सत्याग्रह एवं नमक और इसके अर्न्तसम्बन्धों का महात्मा गांधी की आत्मकथा में रोचक ढंग से उल्लेख किया गया है। बापू के लिए सत्याग्रह आत्मशुद्धि के रूप में था। सत्याग्रह शब्द को गुजराती में लोग ‘पेसिव रेजिस्टेन्स’ के अंग्रेजी नाम से पहचानने लगे। लेकिन गोरो की सभा में इसे संकुचित अर्थ में कमजोरों का हथियार मानने पर बापू ने विरोध किया। तब बापू ने समाचार पत्र इण्डियन ओपिनियन के पाठकों से सत्याग्रह शब्द के लिए प्रतियोगिता करवाई। एक पाठक मगनलाल ने सत+आग्रह की संधि करके सदाग्रह शब्द बनाकर भेजा। इस शब्द को अधिक स्पष्ट करने के लिए बापू ने ‘य‘ अक्षर बढ़ाकर सत्याग्रह शब्द बनाया। गुजराती में यह लड़ाई इस नाम से पहचानी जाने लगी। सत्याग्रह के साथ नमक के घालमेल की कहानी 1908 में बापू की पहली जेल यात्रा से जुड़ गई। जेल के डाक्टर से हिन्दुस्तानी बंदियों के लिए करी पाउडर मांगा और नमक बनती हुई रसोई में डालने की बात को अनसुना कर दिया। बापू ने पुस्तकों में पढ़ा था कि मनुष्य के लिए नमक खाना आवश्यक नहीं है। घर पर कस्तूर बां से दाल नमक के परहेज के प्रसंग पर बापू ने एक साल तक नमक नहीं खाने के संकल्प को सत्याग्रह का नाम दिया। राजस्थान से नमक सत्याग्रह के सूत्रपात का प्रसंग लगभग 550 वर्ष पुराना है। घोड़े पर सवार मेवाड़ रियासत के झांझा नमक अधिकारी को पचपदरा के पास बरसाती पानी से भरे गड्ढों में चमकते हुए रवेदार कण दिखाई दिए। जिज्ञासावश उसने पानी में हाथ डाला और चखा तो वह खारा लगा। सूखने पर हाथ में रवेदार कण चिपक गए। पांचा जाट की ढाणी में रात्रि विश्राम मे झांझा को सपने में पेड़ के पास जमीन में दबी देवियों की दो प्राचीन मूर्तियों को मन्दिर में प्रतिष्ठित करने की बात कही। खुदाई में सांभरा एवं आसापुरा नामक देवियों की प्रतिमा मिली। बाद में पचपदरा साल्ट में देवल बनाया गया। फिर तो झांझा और पांचा के कुटुम्बजन नामक उत्पादन की सफेद चांदी के काम धंधे मे जुट गए। वही रियासतों ने राजस्व के लिए नमक उत्पादन के पट्टे देने की शुरूआत की। यूरोप में औद्योगिक क्रांति के दौर में भारत से कच्चे माल के रूप मे रूई, जूट तिलहन, लाख, रबड़, ऊन, कच्चा खनिज इत्यादि समुद्री मार्ग से इंग्लैण्ड भेजा जाता था। वापसी में तैयार माल कम जगह घेरता और भार संतुलन के लिए जहाज में भारी पत्थर रखे जाते। इस परेशानी से बचने के लिए समुद्री नमक भारत में खपाने के विचार से नमक उत्पादन वितरण पर एकाधिकार कायम करने की रणनीति बनी। प्रथम चरण में राजस्थान के विभिन्न इलाकों में नमक उत्पादन के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने देशी रियासतों के साथ नमक संधियों का जाल बिछाते हुए 1857 की क्रांति के 25 वर्षों पश्चात् 1882 में नमक कानून बनाया। नमक को सेन्ट्रल एक्साईज के अन्तर्गत लेने से नमक उत्पादन एवं वितरण सरकार के अधिकार में आ गया। इससे हुकूमत को मनमानी की छूट मिल गई। मारवाड़ में नमक से जुड़ी तीन संधियो में कुचामन, नांवा, गुढ़ा फिर 1869-70 मे जयपुर-जोधपुर के शामिलाती हिस्से में सांभर झील तथा सबसे अंत में 1879 में तीसरी संधि पचपदरा डीडवाना, फलोदी, लूणी नमक क्षेत्र के लिए की गई। इन संधियों की आड़ में मारवाड़ में करीब 89 स्थानों पर नमक उत्पादन बंद किया गया। बाडमेर जिले के पचपदरा में नमक उत्पादन का विशिष्ट तरीका है। अन्य स्थानों पर भूमिगत नमक स्त्रोतों पर अधिकांशत: झीले हैं जिसके लवणीय पानी को क्यारियों में सूखाकर नमक बनाया जाता था। सांभर झील डीडवाना, फलौदी तथा गुजरात के खारागोडा में ऐसी झीलें थीं। 
-गुलाब बत्रा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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