महिलाएं अपने अधिकारों को भली-भांति समझें

महिलाएं अपने अधिकारों को भली-भांति समझें

जब हम समाज के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हैं, तो महिलाओं का योगदान और महत्व स्पष्ट होता है।

जब हम समाज के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हैं, तो महिलाओं का योगदान और महत्व स्पष्ट होता है। महिलाएं समाज की आधारशिला होती हैं और उनकी समृद्धि समाज की समृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है। महिलाओं का योगदान समाज में विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक है। वे न केवल घरेलू कार्यों में ही सक्रिय हैं, बल्कि उन्हें नौकरियों, विज्ञान, कला, राजनीति और अन्य क्षेत्रों में भी उन्नति के लिए मिलता है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का मुख्य उद्देश्य जेंडर इक्वलिटी को प्रोत्साहित करना है। महिलाओं को समाज में उनके अधिकारों की प्राप्ति और समानता का अधिकार है। सामाजिक परिपेक्ष्य में महिलाओं की दशा और दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। भारतीय महिला वर्तमान दौर में समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है। महिला अब घर में कैद मात्र लक्ष्मी ही नहीं रह गई है, बल्कि घर से बाहर समाज के कर्तव्य निभाने के लिए आगे बढ़ आई है। वह घर की चार दीवारी से अपने कदम को बढ़ाती हुई समाज की विकलांग दशा को सुधारने के लिए कार्यरत हो रही है। इसके लिए वह पुरूष के समकक्ष पद व अधिकार को प्राप्त करती हुई पुरुष को चुनौती दे रही है। वह पुरुष को यह अनुभव कराने के साथ-साथ उसमें नई चेतना भर रही है कि महिला में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता में कम नहीं है। मात्र अवसर मिलने भर की देर है। महिला का स्थान हमारे समाज में आज सर्वाधिक मजबूती के साथ उभर कर सामने आया है।

वर्तमान दौर में भारतीय महिलाओें का उत्थान और विकास नजर आ रहा है। यह महिला सशक्तिकरण के एक पहलू के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय महिला सदैव पिता, पति, पुत्र पर आश्रित थी आज वो स्वयं सक्षम है। शिक्षा के विकास के साथ महिला विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनी है। महिलाओं ने परम्परावादी सामाजिक नियमों से हटकर कुछ कर दिखाया है। महिला को घर से बाहर काम करने और परिवार के मामलों में बोलने की स्वतंत्रता मिल गई है। वर्तमान में महिलाएं सोशियल मीडिया जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपनी बातें व गति-प्रगति को समाज के सामने प्रस्तुत कर रही है। घर-कार्यालय में समन्वय स्थापित कर रही शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, खेल, उद्योग, कला, संगीत, मीडिया, राजनीति, समाज सेवा आदि क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त कर रही है। वर्तमान भारत की महिला ने खुद को पहचान लिया है और काफी हद तक अपने हक के लिए आवाज बुलन्द करना भी सीख लिया है। महिलाओं का समाज में जिस गति से बदलाव हो रहा है उससे महिलाओं के प्रति लोगों के चिंतन में सकारात्मक बदलाव आया है। हम आज भी प्राचीन व दकियानुसी सोच का परिचय देते है और कहते है कि महिलाएं बदलाव को तैयार नहीं है, जबकि जब भी महिलाओं को अवसर मिला है उन्होंने प्रगति की राह को समझा है और आगे बढ़ी है। जहां एक ओर महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के साथ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता होना है तो दूसरी और समाज में पुरुषों के बराबर स्थिति पर पहुंचना है।
भारत में महिलाएं दिन-ब-दिन अपनी लगन, मेहनत एवं उत्कृष्ट कार्यों द्वारा राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। मौजूदा दौर में महिलाएं नए भारत के विश्वास की प्रमुख कड़ी दिख रही हैं। अथक परिश्रम के बाद भारतीय महिलाएं आज समूचे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है। पुरुष प्रधान रूढ़िवादी समाज में महिलाएं निश्चित रूप से देश के विकास की नींव और मजबूत करने का हरसंभव प्रयास कर रहीं हैं, जो हमारे लिए गर्व की बात है। कुछ अंश में आज भी महिलाएं घर की चारदीवारी में कैद होकर रूढ़िवादी परंपराओं का बोझ तले दबती जा रही है, इसके पीछे कारण यही है कि अभी भी महिला पुरुषवादी मानसिकता में बंधी हुई है।

भारत मेंं महिला सशक्तिकरण पर चिंतन करते समय महिलाओं की वास्तविक स्थिति को देखना जरूरी है। महिला सशक्तिकरण के दौर में महिला समाज, राजनीति और प्रशासन में कितना आगे बढ़ सकी है। महिलाओं की यह सजगता महानगर केंद्रित हैं या अति संपन्न, सुसंपन्न और सुशिक्षित परिवारों में परिलक्षित होता है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की स्थिति कहीं नहीं बदली है। आदिवासी व पिछड़े क्षेत्र की महिलाओं की स्थिति सामान्य महिलाओं की तुलना में काफी बदहाल दिखती है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर एसोचैम द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 32 से 58 वर्ष की 72 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं अवसाद, पीठ में दर्द, मधुमेह, हायपरटेंशन, उच्च कोलोस्ट्रोल, हृदय एवं किडनी की बीमारियों से ग्रस्त पाई है। 

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महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, सम्मान, समानता, समाज में स्थान की जब भी बात होती है, कुछ रिपोर्ट व आंकड़ों को आधार बनाकर निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश की जाती है कि उसमें इतना सुधार आया है कि महिलाओं के लिए समानता के बारे में बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन समानता की बात तो दूर, यह आधी आबादी आज तक अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित है। लिंग विषमता और महिला सशक्तिकरण के जो कानून बने उनसे सीमित महिलाओं को ही लाभ हो रहा है।      

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