14 महीने से सलाखों में कैद शावक झेल रहे टॉर्चर
अब तक रखरखाव पर खर्च हो चुका 15 लाख, उद्देश्य से भटकी रिवाइल्डिंग
30 गुणा 30 के कमरे में कट रही शावकों की जिंदगी।
कोटा। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में पल रहे बाघिन टी-114 के दोनों शावकों की उम्र 16 माह से ज्यादा की हो चुकी है। इसके बावजूद वन विभाग इनकी शिफ्टिंग को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं कर सका। जबकि, एनटीसीए द्वारा गठित कमेटी दोनों शावकों की दरा अभयारणय के 28 हैक्टेयर के एनक्लोजर में शिफ्ट करने पर सहमति जता चुकी है और चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को तीन बार शिफ्टिंग के प्रस्ताव भिजवा चुकी है। इसके बावजूद स्वीकृति नहीं मिलने से इन शावकों की रिवाइल्डिंग पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए। दरअसल, दोनों शावक, टाइगर के नाइट शेल्टर में करीब 14 माह से रह रहे हैं। गत वर्ष 1 फरवरी को उन्हें रणथम्भौर से अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में शिफ्ट किया गया था। तब उनकी उम्र करीब ढाई वर्ष थी। वर्तमान में उनकी उम्र 16 महीने पार कर चुकी है। इसके बावजूद उन्हें शिफ्ट नहीं किया जा सका। जबकि, उम्र के साथ 100 किलो से ज्यादा हो गया है। ऐसे में दोनों शावकों की जिंदगी 30 गुणा 30 फीट के कमरेनुमा पिंजरे में कट रही है। इधर, विशेषज्ञों का मत है कि रिवाइल्डिंग अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। पिंजरे में रखना उनको टॉर्चर करना जैसा है।
शिकार से ज्यादा पैदल चलना कर रहे पसंद
सूत्रोें से मिली जानकारी के अनुसार, दोनों शावकों को सप्ताह में एक दिन टाइगर के एनक्लोजर में खुला छोड़ा जाता है, जहां उनके सामने 8 से 14 किलो का बकरा छोड़ देते हैं। लेकिन, शावक शिकार करने से ज्यादा पैदल चलना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि वे 6 दिन तक वे कमरेनुमा पिंजरे में रहते हैं, उन्हें चलने की जगह नहीं मिलती। ऐसे में वे तनाव में रहते हैं। जब उन्हें एक दिन के लिए टाइगर के एनक्लोजर में छोड़ा जाता है तो वे इधर से उधर दौड़ते रहते हैं। जबकि, शिकार उनके सामने रहता है फिर भी वे शिकार नहीं करते। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे किस तरह से तनाव झेल रहे हैं। अगले ही दिन तड़के उन्हें फिर से पिंजरों में कैद कर दिया जाता है।
कमरेनुमा पिंजरे में कट रही जिंदगी
शावकों का तेजी से वजन बढ़ रहा है। मेल शावक का 130 तो फिमेल शावक का वजन 95 किलो हो चुका है। वहीं, 16 महीने से ज्यादा की उम्र हो चुकी है। जबकि, उन्हें 10 गुणा 10 फीट के नाइट शेल्टर और 30 गुणा 30 साइज की कराल में रखा जा रहा है। उनके चलने फिरने के लिए जगह की तंगी बनी हुई है। जबकि, जंगल में इस उम्र के शावक प्रतिदिन 30 किमी चलते हैं। इस तरह शावकों का लोको मोटर सिस्टम प्रभावित होने की आशंका बनी हुई है।
शिकार के बचने व शिकारी के दौड़ने की जगह तक नहीं
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, रिवाइल्डिंग के नाम पर बायोलॉजिकल पार्क में शावकों के कमरानुमा पिंजरे में बकरा खुला छोड़ देते हैं। ऐसे में शिकार को खुद की जान बचाने के लिए न तो दौड़ने की जगह मिल पाती है और न ही शिकार के पीछे भागने के लिए शावकों को मेहनत करनी पड़ती है। जबकि, जंगल में भोजन के लिए हर दिन संघर्ष होता है। ऐसी स्थिति में वे न तो शिकार की कला सीख पा रहे और नहीं जंगल की चुनौतियों से रुबरू हो पा रहे।
संभावित खतरों को पहचान ने में होगी दिक्कत
इस उम्र के शावक जंगल में 10 किमी प्रतिदिन मूवमेंट करते हंै, जो यहां बिलकुल भी नहीं हो रहा। इनकी सीखने की उम्र तो गुजर गई, अब इन्हें जंगल में छोड़ने पर लंबे समय तक सुरक्षा करने की जरूरत होगी। शिफ्टिंग में देरी से मसल्स ग्रोथ प्रभावित होगी। बॉडी स्टेमिना डवलप नहीं होगी। दौड़ना, घात लगाकर शिकार करने की प्रवृति सीख नहीं पाएंगे। छोटी जगह में इनका शारीरिक विकास नहीं होगा।वे स्ट्रेस में आएंगे। इन्हें तत्काल शिफ्ट करना उचित रहेगा।
- डॉ. अखिलेश पांडेय, वरिष्ठ पशुचिकित्सक, कोटा
शावकों को प्राकृतिक आवास में छोड़ने का यह सही समय निकलता जा रहा है। शिफ्टिंग में देरी से उन्हें जंगल में सरवाइव करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। बायोलॉजिकल पार्क में शिकार के नाम पर बकरा ही दिया जा रहा जबकि, यह जीव जंगल में नहीं मिलेगा। ऐसे में इन्हें अपने शिकार व संभावित खतरों को पहचानने में दिक्कत होगी।
- रवि नागर, वाइल्ड लाइफ रिसर्चर
वेट बढ़ने से इन्हें चलने फिरने के लिए बड़ी जगह की जरूरत है। पिंजरानुमा कमरे में रहने से इनका लोको मोटर सिस्टम प्रभावित होगा। जिससे चलने फिरने के अंग विकसित नहीं हो पाएंगे। शिफ्टिंग में देरी से यह शावकों के लिए घातक होगी। तुरंत दरा एनक्लोजर में छोड़ना चाहिए।
-डॉ. सुधीर गुप्ता, वन्यजीव प्रेमी
बिना समय गवाएं दरा एनक्लोजर में शिफ्ट करें। छोटे से पिंजरे में यह न तो शिकार की कला सीख पा रहे और न ही घात लगाना, खुद के छिपने की जगह, अपना बचाव करना, वन्यजीवों की प्रवृति समझना सहित जंगल की चुनौतियों से वाकिफ नहीं हो पाएंगे।
- एएच जैदी, नेचर प्रमोटर
शावकों को यहां रहते 14 माह से ज्यादा समय हो गया। पिंजरे में रखना इन पर उत्याचार करना जैसा है। बायोलॉजिकल पार्क में शावक टॉर्चर झेल रहे हैं। 16 महीने की उम्र होने के बावजूद मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक इनकी शिफ्टिंग पर फैसला नहीं कर सके। रिवाइल्डिंग के नाम पर शावकों की जिंदगी बर्बाद की जा रही है। वन विभाग की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
- देवव्रत सिंह हाड़ा, अध्यक्ष, पगमार्क फाउंडेशन
इनका कहनां हमारी ओर से दोनों शावकों को दरा सेंचुरी के 28 हैक्टेयर के एनक्लोजर में छोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। स्थानीय कमेटी द्वारा तीन बार प्रस्ताव चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को भिजवा दिए हैं। इस संबंध में फैसला वहीं से ही होगा। हाल ही में एनटीसीए की आईजी ने शावकों को लेकर बायोलॉजिकल पार्क का दौरा किया था। उन्होंने आश्वस्त किया है कि जल्द ही इस पर निर्णय किया जाएगा।
- अनुराग भटनागर, उप वन संरक्षक, वन्यजीव विभाग
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