गांधी परिवार के लिए साउथ इंडिया है बूस्टर डोज, वायनाड छोड़ना हो सकता है रिस्की  

उनमें से 42 फीसदी साउथ इंडिया से ही मिली हैं

गांधी परिवार के लिए साउथ इंडिया है बूस्टर डोज, वायनाड छोड़ना हो सकता है रिस्की  

साउथ इंडिया की वायनाड को चुना, इतना ही नहीं, इस बार के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने जितनी सीटें जीती हैं, उनमें से 42 फीसदी साउथ इंडिया से ही मिली हैं।

नई दिल्ली। राहुल गांधी वायनाड छोड़ेंगे या फिर रायबरेली? अभी इस पर सस्पेंस बरकरार है। चार जून को चुनावी नतीजे वाले दिन जब राहुल से इसे लेकर ही सवाल किया गया था, तो उन्होंने कहा था कि अभी डिसाइड नहीं किया है। राहुल वायनाड से 3.90 लाख और रायबरेली से 3.64 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीता है। 2019 में भी राहुल ने वायनाड ने 4 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीता था। 2009 के परिसीमन के बाद जब से वायनाड सीट बनी है, तब से वहां कांग्रेस ही जीतती रही है। इसलिए वायनाड कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में से एक मानी जाती है। लेकिन चुनावी इतिहास देखें तो साउथ इंडिया हमेशा से कांग्रेस के लिए बूस्टर डोज साबित हुआ हो। इमरजेंसी के बाद जब इंदिरा गांधी चुनाव हारीं तो सत्ता में उनकी वापसी साउथ इंडिया ने ही करवाई। सोनिया गांधी का सियासी करियर भी साउथ इंडिया से ही शुरू हुआ और तो और जब 2019 में भी राहुल जब यूपी की अमेठी सीट पर कमजोर पड़े तो उन्होंने साउथ इंडिया की वायनाड को चुना, इतना ही नहीं, इस बार के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने जितनी सीटें जीती हैं, उनमें से 42 फीसदी साउथ इंडिया से ही मिली हैं।

जब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी
साउथ इंडिया में कांग्रेस हमेशा से मजबूत रही है। आजादी के बाद कई सालों तक तो साउथ इंडिया में कांग्रेस का अच्छा-खासा प्रभाव था। इमरजेंसी के बाद 1977 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस 154 सीटों पर सिमट गई थी। ये पहली बार था कांग्रेस को इतनी कम सीटें मिली थीं। इनमें से 60% सीटें साउथ इंडिया से ही आई थीं। उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस एक सीट भी नहीं जीत सकी थी। खुद इंदिरा गांधी रायबरेली सीट राज नारायण से हार गई थीं। इस हार के बाद साउथ इंडिया ने ही इंदिरा को फिर संसद पहुंचाया था। कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट पर कांग्रेस के सांसद चंद्र गौड़ा थे। उनसे इस्तीफा लिया गया और सीट खाली कराई गई। फिर उपचुनाव में इंदिरा गांधी यहां से उम्मीदवार बनीं। उनके सामने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल थे।  उपचुनाव में इंदिरा गांधी ने वीरेंद्र पाटिल को 77 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया।  इसके बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में भी इंदिरा गांधी ने दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से लड़ा था। यहां से उन्होंने दो लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीता था।

सोनिया का सियासी करियर भी यहीं से शुरू
1999 के लोकसभा  चुनाव से कुछ वक्त पहले सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। सक्रिय राजनीति में आने के बाद अब बारी सोनिया गांधी को संसद पहुंचाने की थी। तब उनके लिए दो सुरक्षित सीटें तलाशी गईं। पहली सीट थी- उत्तर प्रदेश और दूसरी थी- कर्नाटक की बेल्लारी। अमेठी से कांग्रेस की जीत पक्की थी, लेकिन पार्टी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी इसलिए सोनिया ने बेल्लारी से भी चुनाव लड़ा। सोनिया के सामने सुषमा स्वराज ने भी बेल्लारी से पर्चा भर दिया। सोनिया ने उन्हें 56 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया। 

साउथ इंडिया में कैसा रहा कांग्रेस का प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बार 99 सीटों पर जीत हासिल की। 2009 के चुनावों का बाद ये कांग्रेस का बेहतरीन प्रदर्शन है। 2014 में कांग्रेस 44 और 2019 में 52 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें साउथ इंडिया से मिलीं। कांग्रेस ने 99 में से 42 सीटें साउथ इंडिया में ही जीतीं। इसके बाद 23 सीटें उसे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और गोवा जैसे पश्चिमी राज्यों से मिलीं। 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें साउथ इंडिया से ही मिली थीं। तब कांग्रेस ने 52 में से 29 सीटें साउथ इंडिया से ही जीती थीं।

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