राज्य सरकार की ओर से जारी किये गये एक आदेश ने भू-मालिकों की बढ़ा दी चिंता

राज्य सरकार से यह आदेश पारित करवा दिया

राज्य सरकार की ओर से जारी किये गये एक आदेश ने भू-मालिकों की बढ़ा दी चिंता

आम जनता को राहत प्रदान करने के नाम पर राज्य सरकार की ओर से जारी किये गये एक आदेश ने भू-मालिकों की चिंता बढ़ा दी है। इस आदेश के बाद भू माफियाओं में खुशी की लहर है।

जोधपुर। आम जनता को राहत प्रदान करने के नाम पर राज्य सरकार की ओर से जारी किये गये एक आदेश ने भू-मालिकों की चिंता बढ़ा दी है। इस आदेश के बाद भू माफियाओं में खुशी की लहर है। आरोप है कि अधिकारियों ने बिना गुण-दोष का आंकलन किये राज्य सरकार से यह आदेश पारित करवा दिया जिसमें कहा गया है कि अब आम सूचना प्रकाशन का खर्च जेडीए और हाउसिंग बोर्ड व निकाय वहन करेंगे। सुनने में जरूर यह आदेश आमजन को राहत प्रदान करने जैसा है लेकिन इस आदेश की गंभीरता को समझे तो इससे ना केवल जमीनों के गलत नामांकन की आशंकाएं बलवती हो गई है अपितु इसमें जरा सी ढील से आमजन की अपनी खरी कमाई से खरीदी गई जमीन किसी और के नाम हस्तांतरित हो जाने के भी सारे दरवाजे खुल गये हैं। खास बात यह है कि असली मालिक के हाथ से कब उसकी जमीन खिसकेगी उसे इसका पता ही कई दिनों तक नहीं चल पायेगा।

इसे यूं समझे
अब तक आम सूचना जिस प्रारूप में प्रकाशित होती थी उसमें जमीन का खसरा नंबर और पूरा डॉक्यूमेंट चैनल का प्रकाशन किया जाता था और प्रकाशन की साइज भी स्वायत्त शासन विभाग की ओर से तय की गई थी। इसलिए समाचार पत्रों में प्रकाशन के बाद सहजता से इसे हर कोई देख, समझ और पढ़ सकता था। भले ही इसके लिए संबंधित पार्टियों को दो से पांच हजार रुपए व्यय करने पड़ते थे। और वैसे भी दस से पचास लाख की तक की प्रोपर्टी के लिहाज से यह रकम आम आदमी की जेब पर कोई ज्यादा असर नहीं डाल रही थी। सब कुछ सहज, सामान्य और अच्छे से चल रहा था।  अब आम सूचना प्र्रकाशन का जो नया फॉरमेट तैयार किया गया है उसमें केवल भूखंड संख्या, उसका नाप और आवेदक का नाम ही दिया जाना तय किया है। शेष जानकारी ऑन लाइन उपलब्ध करवाने का भरोसा दिया गया है। सवाल यह है कि जब प्रदेश के अधिकांश घरों में बिजली और पानी ही पूरा नहीं पहुंच पा रहा वहां कितने लोग आॅन लाइन भूखंड के बारे में जानकारी हासिल कर पायेंगे? सवाल यह भी है कि नये फारमेट में आवेदक का ही नाम प्रकाशित होगा, भूखंड किसका है यह पता ही नहीं चल पायेगा। ऐसे में कोई भी अधिकारियों और कर्मचारियों से सांठ गांठ कर किसी का भी भूखंड अपने नाम करवाने की आम सूचना आसानी से प्रकाशित कर लेगा। इससे भू माफियाओं की राह तो आसान होगी ही साथ ही पुलिस और कोर्ट कचहरी के मामले भी बढ़ जायेंगे।

जो चल रहा था उसमें दिक्कत क्या थी
सवाल यह है कि जो व्यवस्था वर्तमान में चल रही थी उसमें दिक्कत किसको थी? ना ही यह मांग कभी सरकार के समक्ष खड़ी हुई और ना ही किसी एक ने भी आम सूचना प्रकाशन की राशि कम करने को लेकर सरकार से कोई मांग ही कभी की। फिर भी अधिकारियों ने केवल चुनिंदा लोगों के इशारे पर व्यवस्थित रूप से चल रही पूरी परिपाटी बदल कर भू माफियाओं की राह प्रशस्त कर दी? क्यों? जांच की जानी चाहिए। सरकार को गुमराह कर सीधे तौर पर इससे उसकी साख पर संकट खड़ा करने की कोशिश की गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बढ़ती लोकप्रियता को ध्वस्त करने के लिए कहीं यह विपक्षी दलों की कोई साजिश का हिस्सा तो नहीं। इस पर भी सरकार को मनन अवश्य करना चाहिए।

जेब पर भार तो अभी भी पड़ेगा
राज्य सरकार की ओर से जो आदेश जारी किया गया है उसमें जेडीए, हाउसिंग बोर्ड और निकायों को अपनी ओर से आम सूचना प्रकाशन का अधिकार दिया गया है, लेकिन ये सभी इसके लिए एक निश्चित राशि भू मालिकों से ही वसूलेंगे। तो इससे आम लोगों को राहत कैसे मिलेगी? यह सरकार समझ नहीं पाई।

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