सतरंगी सियासत

सतरंगी  सियासत

पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर एक चुनावी सभा में गोलीबारी हो गई। घटना चौंकाने वाली। इससे अमरीका जैसे देश की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई।

पोल खुली!
पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर एक चुनावी सभा में गोलीबारी हो गई। घटना चौंकाने वाली। इससे अमरीका जैसे देश की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई। वहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कितनी साफ सुथरी और सुरक्षित। पहले अमरीका में कैपिटल हिल में आम जनता घुस चुकी। गौर करने वाली बात यह कि पश्चिमी ताकतें हमेशा ही भारत की लोकतांत्रिक परंपरा और प्रक्रियाओं पर सवाल उठाते रहीं। लेकिन खुद अपने गिरेबां में नहीं झांकती। लेकिन दूसरों पर अंगुली उठाना मानो अपना हक समझती। भारत के हालिया आम चुनाव में इन ताकतों ने दखलंदाजी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उसके बावजूद सफलता नहीं मिली। लेकिन पश्चिमी ताकतों से ज्यादा भारत का लोकतंत्र मजबूत। भारत में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण और बदलाव इसकी गवाही। भारत में कभी भी खून बहने की नौबत नहीं आई। लेकिन जो पारदर्शिता और साफगोई का दावा करते। उनका हाल देखने लाय।

कहां अटका मामला?
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल 30 जून का समाप्त हो गया। वह काबिना मंत्री भी बन गए। लेकिन नए अध्यक्ष की सुगबुगाहट शुरू होकर धीमी भी पड़ गई। वैसे, यह देरी क्यों? भाजपा पर करीब से नजर रखने वाले कह रहे। मंथन जारी। शायद सिंतबर की शुरूआत में कुछ सुगबुगाहट पता चले। तब तक मामला टल गया! आम चुनाव में जो प्रदर्शन भाजपा का रहा। इससे भी ज्यादा जो बयान जेपी नड्डा ने संघ को लेकर दिया। उससे चीजें सामान्य नहीं लग रहीं। सो, कहीं ऐसा न हो कि दिल्ली सर्किल से बाहर का नेता भाजपा अध्यक्ष बन जाए। जैसे कभी राष्ट्रीय राजनीति से इतर नितिन गडकरी को लाया गया था। हालांकि कयास और नाम कई चले। लेकिन फाइनल कुछ भी नहीं। बातचीत और चर्चा होगी। लेकिन अंतिम निर्णय कुछ ही नेताओं में चर्चा बाद होने की संभावना। और वह कौन? यह सभी जानते!

अब क्या जवाब?
मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के विवाह के चर्चे देश-दुनियां में चारों ओर। करीब पांच हजार करोड़ खर्च होने का अनुमान। इस विवाह में समाज जीवन से जुड़े हर क्षेत्र के दिग्गज पहुंचे। अब राजनीतिक दिग्गज कैसे बचे रहेंगे? सो, विवाह में पीएम मोदी भी नवदम्पत्ति को आशीर्वाद देने पहुंचे। लेकिन जो नेता एवं दल पूरे समय अंबानी की मजम्मत करते रहते। वह भी समारोह में सपरिवार पहुंचे। इसमें सपा के अखिलेश यादव और राजद के लालू यादव प्रमुख। जब लालू कहीं जाएं और उसकी चर्चा न हो। ऐसा कैसे संभव। हां, गांधी परिवार को निमंत्रण होने के बावजूद वहां कोई नहीं पहुंचा। लेकिन कई कांग्रेस नेता गए। अब इसे क्या कहा जाए? आप किसी की सार्वजनिक आलोचना भी करेंगे। जब वह अपने पारिवारिक समारोह में बुलाए। तो जाएंगे भी। भारतीय समाज का यह भी एक पहलू! आम जनता इस पर भी गौर करे!

संकेत और संदेश
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले 11 सीटों पर हुए विधान परिषद चुनाव बहुत कुछ संकेत और संदेश दे रहे। कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी। तो एमवीए के लिए भी असहजता वाला हाल। हां, भाजपानीत सरकार के लिए मानो राहत की सांस। लेकिन माना जा रहा। इस गठजोड़ में अजित पवार ज्यादा भरोसे लायक नहीं। क्योंकि उनके गुट के नेता शरद पवार मिल रहे। इसीलिए भाजपा खासी आशंकित। कांग्रेस विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। जबकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले अकेले ही चुनाव लड़ने का दंभ भर रहे। शिवसेना यूबीटी और शिंदे गुट फिलहाल राहत में। जबकि भाजपा किसी प्रकार का जोखिम लेने के मूड में नहीं। सफलता की संभावना वाला हर विकल्प खुला। फिर महाराष्टÑ का दिल्ली कनेक्शन भी। पिछले पांच साल कैसे निकले। यह दिल्ली भाजपा ही जानती। ऐसे में हर मोहर और चाल चली जाए। तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए!

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चैक एंड बैलेंस!
भारत के दो पड़ोसी मानो चैक बैलेंस कर रहे। एक बांगलादेश और दूसरा नेपाल। वैसे, चीन और पाक तो भारत का कभी अच्छा चाहते ही नहीं। बीते कुछ समय से भारत अपने पड़ोसियों पर प्रभाव छोड़ रहा। चीन के प्रभाव के चलते केपी शर्मा ओली का भारत विरोधी रूख रहा। अब फिर उनकी वापसी हो गई। ओली भारत के लिए कब असहज स्थिति बना दें। कहा नहीं जा सकता। वहीं, बांगलादेश की पीएम शेख हसीना की हालिया चीन यात्रा की चर्चा। कानाफूसी यह कि वह यात्रा बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौट गईं। चीन में उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ। जबकि मोदी 3.0 में वह दो बार भारत आ चुकीं। यानी हसीना ने चीन के मुकाबले भारत को ज्यादा प्राथमिकता दी और भरोसा भी जताया। सवाल बांगलादेश में योगदान का नहीं। बल्कि नीति और नीयत का। इस मामले में भारत की साख कहीं ज्यादा।

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भाजपा की कशमकश!
दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता। यह कहावत आजकल भाजपा पर चरितार्थ हो रही। आम चुनाव में जमीनी कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं देने के परिणाम सामने। वहीं, उत्तर प्रदेश में बयानबाजी का दौर। जो किसी के हित में नहीं। हिमाचल प्रदेश में आम चुनाव से पहले निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस सरकार को संकट में डालने की कोशिश भाजपा को उल्टी पड़ रही। सीएम सुक्खु पहले से ज्यादा मजबूत हो गए। इसी से सबक लेकर पार्टी तेलंगाना में खासी सतर्क। वहां बीआरएस के केसीआर का राजनीतिक ग्राफ लगातार नीचे जा रहा। उनके नेता, कार्यकर्ता इधर-उधर हो रहे। सत्ताधारी कांग्रेस उन्हें वैसे ही तोड़ रही। जैसे उन्होंने कभी उसे तोड़ा था। इनमें से कुछ भाजपा में भी आने के इच्छुक। लेकिन पार्टी नेतृत्व हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्टÑ से सबक ले रहा। क्योंकि इस सबसे भाजपा का मूल कॉडर ही नाराज हो रहा।

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चर्चा में यूपी...
लोकसभा चुनाव परिणाम को लेकर इन दिनों यूपी चर्चा में। हो भी क्यों नहीं? आखिर यूपी में 80 लोकसभा क्षेत्र। खासकर सीएम योगी को लेकर कई तरह की अफवाहें तैर रहीं। अब इनमें सच्चाई कितनी। यह तो समय बताएगा। लेकिन सीएम योगी की अपना काम करने की शैली ज्यों की त्यों। हां, दिल्ली और लखनऊ में अफवाहबाजों की कमी नहीं। सो, उनका भी काम जारी। भले ही यूपी भाजपा संगठन में बदलाव हों। लेकिन प्रदेश सरकार में मंत्रियों को छोड़कर किसी बड़े बदलाव की संभावना फिलहाल नहीं। क्योंकि सीएम योगी की आज स्थिति वही। जो साल 2013 में पीएम मोदी की थी। आज योगी मॉडल की देशभर में लोकप्रियता। खासकर कानून व्यवस्था को लेकर। उन पर भ्रष्टाचार का बीते सात सालों में व्यक्तिगत रुप से कोई आरोप नहीं लगा। सो, योगी भाजपा के भीतर ही नहीं। बल्कि देशभर में जनता के बीच भी बेहद लोकप्रिय।

दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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