ट्रैकर को ट्रैक करें तो बच सकती हैं लाडलियां
एक्टिव ट्रैकर की लाल और हरी लाइट की ही होती है जांच , नहीं खोलते ट्रैकर, भ्रूण लिंग परीक्षण संदेह पर कमेटी की निगरानी में खुलते हैं ट्रैकर, जिले में 116 सोनोग्राफी सेंटर हो रहे संचालित
प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने ,बाल लिंगानुपात में सुधार के लिए सोनोग्राफी सेंटरों की नियमित मॉनीटरिंग तो की जाती है लेकिन सोनोग्राफी सेंटर के एक्टिव ट्रैकर की सिर्फ लाल और हरी लाइन की ही जांच की जाती है।
कोटा। प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने ,बाल लिंगानुपात में सुधार के लिए सोनोग्राफी सेंटरों की नियमित मॉनीटरिंग तो की जाती है लेकिन सोनोग्राफी सेंटर के एक्टिव ट्रैकर की सिर्फ लाल और हरी लाइन की ही जांच की जाती है। किसी एक्टिव ट्रैकर में भू्रण लिंग परीक्षण किया तो लाल लाइट ऑन हो जाती है । वह जब तक चालू रहती है जब तक एक्टिव ट्रैकर को खोला नहीं जाए। भ्रूण लिंग परीक्षण से जुड़े संदेह व्यक्ति एवं संस्थानों के चिह्नीकरण में स्वयंसेवी संस्थाओं संगठनों का सहयोग लेकर पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों की सख्ती से पालना गाइड लाइन बना रखी है लेकिन उसकी पालना कम होती है। उल्लेखनीय है कि पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत राज्य शासन ने लिंग परीक्षण रोकने व नियमों में कड़ाई बरतने के उद्देश्य से सभी सोनोग्राफी सेंटर में लगे एक्टिव ट्रैकर सिस्टम के जांच करने के निर्देश दे रखे हंै। ताकि लिंग परिक्षण करने वाले सेंटरों को पकड़ा जा सके। इससे भ्रूण हत्या के मामलों में लगाम कसी जा सके। लेकिन सीपीएनडीटी समन्वयक एक्टिव ट्रैकर की लाल व हरी लाइट की जांच कर इतिश्री कर लेते हैं। प्रदेश में एक्टिव ट्रैकर को खोलने वाले प्रशिक्षित तकनीकी कर्मचारी नहीं होने से लाल लाइन आॅन होने पर सोनोग्राफी के ट्रैकर खोलने का प्रावधान है। इसके लिए भी पहले कमेटी गठित कर उसकी निगरानी में खोला जाता है। ऐसे में लिंग परीक्षण हो रहा या नहीं इसका ठीक से पता नहीं चलता है। कारण जिले में मुखबीर योजना में आज तक एक भी व्यक्ति ने लिंग परीक्षण की सूचना नहीं दी है।
एक्टिव ट्रैकर डाटा विश्लेषण नहीं होता
सोनोग्राफी मशीनों पर भ्रूण लिंग परीक्षण पर नजर रखने के लिए एक्टिव ट्रैकर (साइलेंट आब्जर्वर) लगाए गए थे। एक्टिव ट्रैकर से अभी तक एक भी भ्रूण लिंग जांच का केस पकड़ा नहीं गया जबकि दावा था कि इस तकनीक से लिंग जांच करते ही डॉक्टर पकड़ में आ जाएंगे। चौंकाने वाली बात यह है कि अभी तक एक्टिव ट्रैकर का डाटा विश्लेषण नहीं हो पाया है। अधिकारियों के पास यह रिकॉर्ड तक नहीं है कि सील की जा चुकी मशीनों में से कितनों का डाटा विश्लेषण किया गया। प्रदेश में अब तक लिंग जांच के सभी मामलों में डिकॉय आॅपरेशन के तहत ही कार्रवाई हुई है। इससे एक्टिव ट्रैकर ज्यादा उपयोगिता साबित नहीं हो रही है।
इस तरह काम करता है ट्रैकर
पीसीपीएनडीटी समन्वय प्रमोद तंवर ने बताया कि यह बाहरी डिवाइस है जो मेमोरी चिप की तरह काम करती है। सोनोग्राफी मशीन में पोर्ट बनाकर इसे फिट कर दिया जाता है। मशीन जैसे ही चालू होती है ट्रैकर में रिकार्डिंग शुरू हो जाती है। सोनोग्राफी मशीन की स्क्रीन में जो भी दिखाई देता है वह सब ट्रैकर में स्टोर होता जाता है। ट्रैकर को इस तरह सील किया जाता है कि सोनोग्राफी संचालक इससे छेड़छाड़ ही नहीं कर सकते। ट्रैकर लगाने वाली कंपनी सेंटर संचालक को यूजर आईडी और पासवर्ड देती है, जिससे वह ट्रैकर की आॅनलाइन स्टेट्स देख सकता है। एक ट्रैकर की कीमत करीब 30 हजार है।
समय पर एक्टिव ट्रैकर की जांच होती रहे तो बच सकती है कई बेटियां
राज्य व जिला स्तर पर बनी पीसीपीएनडीटी (प्री कॉसेप्शनल एंड प्री नैटल डायग्नोस्टिक टेक्निक) कमेटी के सदस्यों को सोनोग्राफी केंद्रों के ट्रैकर का डाटा परीक्षण कराने का अधिकार है। बड़ी बात है कि कितने ट्रैकरों का डाटा लेकर परीक्षण किया गया, इसका संबंधित अधिकारियों के पास कोई डाटा नहीं है। अगर जिला स्तर पर पीसीपीएनडीटी कमेटी के सदस्य एक्टिव होकर ट्रैकर का डाटा जांचते तो कई बेटियों को कोख में बचाया जा सकता है। गौरतलब है कि 15 जुलाई 2015 को सोनोग्राफी मशीनों पर ट्रैकर लगवाना अनिवार्य कर दिया गया था। लेकिन इनका डाटा आज तक प्रदेश भर में कहीं विश्लेषण नहीं किया।
इनका कहना है
जिले में वर्तमान में 116 सोनोग्राफी सेंटर संचालित किया जा रहा है। जिसकी अनरवत जांच की जा रही है। शहर के सभी निजी व सरकारी सोनोग्राफी की सेंटरों की नियमित जांच और आॅनलाइन दस्तावेज की जांच की जा रही है। सोनो ग्राफी सेंटरों पर लगे एक्टिव ट्रैकर की लाल व हरी बती की जांच की जाती है। जिले में अभी तक किसी भी एक्टिव ट्रैकर में लाल लाइट नहीं जली है। सभी नियमों पालन कर रहे है। जिले में किसी सोनोग्राफी मशीनों सील किया जाता है तो उसके एक्टिव ट्रैकर का डाटा विश्लेषण जयपुर से कराया जा सकता है।
-प्रमोद कंवर, पीसीपीएनडीटी समन्वयक कोटा
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