भारतीय रुपया लुढ़का, डॉलर चमका

2 मई 2021 को डॉलर का मूल्य 73.43 रुपए था, जो कि 1 वर्ष पश्चात 77.42 रुपये प्रति डॉलर हो गया है।

भारतीय रुपया लुढ़का, डॉलर चमका

रुपए की तुलना में डॉलर के मूल्य में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है या दूसरे शब्दों में डॉलर महंगा तथा रूपया सस्ता हो गया है

यूक्रेन- रूस युद्ध के पश्चात भारतीय रुपया लुढ़का है तथा विश्व में यूएस डॉलर मजबूती को प्राप्त कर रहा है, 12 मई 2021 को  डॉलर का मूल्य 73.43 रुपए था, जो कि 1 वर्ष पश्चात 77.42 रुपये प्रति डॉलर हो गया है। आशय यह है की रुपए की तुलना में डॉलर के मूल्य में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है या दूसरे शब्दों में डॉलर महंगा तथा रूपया सस्ता हो गया है तथा भविष्य में भी डॉलर ओर महंगा होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है। डॉलर की तुलना में यह स्थिति केवल भारतीय रुपए की ही नहीं है, बल्कि विश्व की अनेक देशों की मुद्रा के संदर्भ में भी यूएस डॉलर मजबूती बनाए हुए हैं। केवल रूस की मुद्रा रूबल के अलावा जबकि 1 वर्ष के अंतराल में 13.2 प्रतिशत बढ़ी है, चीन, दक्षिण कोरिया, यूरो व जापानी येन के मूल्यों में कमी आई है। समूचा विश्व मुद्रास्फीति दौर से गुजर रहा है। अप्रैल माह में अमेरिका में खुदरा मुद्रास्फीति 8.3 प्रतिशत रही है जबकि भारत में भी 7.79 प्रतिशत रही है। मुद्रा प्रसार को रोकने के लिए यूएस फेडरल बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी का निर्णय लिया है तथा भविष्य में ब्याज दरों में वृद्धि की अधिक संभावनाएं हैं तथा भारत में भी भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि की है, जो कि ब्याज दरों को बढ़ाएगी तथा आगामी दो माह बाद घोषित होने वाली मौद्रिक एवं ऋण नीति में ब्याज दर ओर बढ़ने की संभावना है ताकि मुद्रा प्रसार की दर को नियंत्रित किया जा सकें तथा अर्थव्यवस्था में व्याप्त अतिरिक्त तरलता को नियंत्रित किया जा सकें। विदेशी विनिमय दर का अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से अत्यधिक महत्व होता है। भारत का सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिका से डॉलर के माध्यम से होता है। यदि रुपया सस्ता होता है तथा डॉलर महंगा होता है तो आयात महंगा हो जाएगा, लेकिन निर्यात सस्ता एवं प्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आयातकों को हानि होगी, लेकिन निर्यातकों को लाभ होगा। रुपया सस्ता होने से आयात के लिए अधिक डॉलर की आवश्यकता होगी, लेकिन इसकी क्षतिपूर्ति अतिरिक्त निर्यात के माध्यम से ही हो सकती है। लेकिन समस्या यह है कि आयात में वृद्धि दर निर्यात की तुलना में अधिक है। विश्व में कच्चे तेल एवं खाद्य व खाद्यान्न वस्तुओं के मूल्य बढ़ रहे हैं तथा आपूर्ति में अत्यधिक बाधाएं आ रही हैं। यातायात, बीमा एवं जोखिम, लॉजिस्टिक लागत बढ़ रही है एवं आपूर्ति में समय अंतराल बढ़ रहा है, जो कि देश में खुदरा मूल्य वृद्धि का एक कारण बन जाता है बेशक निर्यात सस्ता होगा तथा उतने ही निर्यात पर निर्यातकों को अतिरिक्त डॉलर प्राप्त होगा, जो कि निर्यात आए को बढ़ाएगा लेकिन समग्र रूप से वर्ष 2021 में अप्रैल-जनवरी के मध्य भारत के व्यापारिक आयात 495 बिलियन यूएस डॉलर था, जबकि निर्यात लक्ष्य 335 बिलियन डॉलर रहा है। इस प्रकार व्यापारिक घाटा इस अवधि में 0़160 था, जबकि इससे पूर्व वर्ष में यह मात्र 75 बिलियन डॉलर था।


अधिक व्यापारिक घाटा विदेशी मुद्रा कोषों पर अत्यधिक दबाव डालता है। भारत में विदेशी मुद्रा कोष ़635 बिलियन से घटकर ़600बिलियन रह गया है। इसका तात्पर्य है कि विदेशी मुद्रा कोष दबाव में है। यह दबाव दो कारणों से बढ़ गया है। एक तो अतिरिक्त आयात से उत्पन्न व्यापारिक घाटे की पूर्ति के लिए अधिक विदेशी मुद्रा डॉलर के रूप में चाहिए। दूसरी तरफ  यूएस फेडरल ब्याज दर में बढ़ोतरी से डालर सूचकांक बढ़ गया है, जो कि गत दो दशकों में सर्वाधिक 104.51 हो गया है। निवेशक भारतीय पूंजी बाजार से निवेश ले जा रहे हैं। भारतीय अंश बाजार सूचकांक लगातार घट रहा है, जो कि लगभग 53000 के स्तर तक आ गया है तथा आईपीओ निवेश को प्रभावित कर रहा है।


 भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा लाया गया आईपीओ उतना सफल नहीं रहा है जितनी की उम्मीद की जा रही थी। पूंजी निवेश की संवेदनशीलता तथा गतिशीलता बढ़ गई है, जो कि भारत के पूंजी बाजार में विदेशी निवेश को प्रभावित कर रही है। एक तरफ  भारत में विदेशी निवेश पर डॉलर मजबूती का प्रभाव पड़ा है, जो कि विदेशी निवेशकों को खरीदने के स्थान पर बेचने को मजबूर कर रहा है तथा वे अपना निवेश अधिक लाभकारी एवं सुरक्षित गंतव्य तक ले जा रहे हैं तथा भारतीय रिजर्व बैंक को भी रुपए का मूल्य ओर नहीं गिरे इसके लिए डॉलर की अंतरराष्टÑीय मौद्रिक बाजार से खरीद करनी पढ़ रही है। ऐसे समय में, जबकि विश्व में डॉलर की मांग बढ़ रही है तथा रूस यूक्रेन युद्ध का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। समूचा यूरोप अस्त-व्यस्त हो रहा है तथा चीन की अर्थव्यवस्था भी मजबूती प्रदान नहीं कर रही है। भारत की विकास दर के अनुमान गड़बड़ा गए हैं। विश्व की अंतरराष्टÑीय वित्तीय एवं मौद्रिक संस्थाओं तथा क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने विकास दर को घटाकर अनुमान लगाया है जो कि कोरोना रिकवरी दर प्रभावित करेगी तथा दूसरी तरफ  भारत में खुदरा मूल्य दर लगातार 4 माह से 6 प्रतिशत से अधिक 7. 5 प्रतिशत तक हो गई है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक के मापदण्ड के अनुसार 4 प्रतिशत खुदरा महंगाई दर सुरक्षित मानी जाती है।       

आज देश को आयात प्रतिस्थापन तथा निर्यात संवर्धन नीति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है तथा सरकारी स्तर पर घरेलू निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है। आयात निर्भरता को कम करने के लिए अधिक खाद्यान्न एवं खाद्य तेल उत्पादन तथा ऊर्जा के लिए वैकल्पिक स्रोतों को मजबूती प्रदान करनी होगी।

रुपया सस्ता होने से आयात के लिए अधिक डॉलर की आवश्यकता होगी, लेकिन इसकी क्षतिपूर्ति अतिरिक्त निर्यात के माध्यम से ही हो सकती है। लेकिन समस्या यह है कि आयात में वृद्धि दर निर्यात की तुलना में अधिक है। विश्व में कच्चे तेल एवं खाद्य व खाद्यान्न वस्तुओं के मूल्य बढ़ रहे हैं तथा आपूर्ति में अत्यधिक बाधाएं आ रही हैं। यातायात, बीमा एवं जोखिम, लॉजिस्टिक लागत बढ़ रही है एवं आपूर्ति में समय अंतराल बढ़ रहा है, जो कि देश में खुदरा मूल्य वृद्धि का एक कारण बन जाता है बेशक निर्यात सस्ता होगा तथा उतने ही निर्यात पर निर्यातकों को अतिरिक्त डॉलर प्राप्त होगा, जो कि निर्यात आए को बढ़ाएगा लेकिन समग्र रूप से वर्ष 2021 में अप्रैल-जनवरी के मध्य भारत के व्यापारिक आयात 495 बिलियन यूएस डॉलर था, जबकि निर्यात लक्ष्य 335 बिलियन डॉलर रहा है। इस प्रकार व्यापारिक घाटा इस अवधि में 0़160 था, जबकि इससे पूर्व वर्ष में यह मात्र 75 बिलियन डॉलर था।

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      -डॉ. सुभाष गंगवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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अर्थजगत
विदेशी विनिमय दर का अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से अत्यधिक महत्व होता है। भारत का सर्वाधिक अंतरराष्टÑीय व्यापार अमेरिका से डॉलर के माध्यम से होता है। यदि रुपया सस्ता होता है तथा डॉलर महंगा होता है तो आयात महंगा हो जाएगा, लेकिन निर्यात सस्ता एवं प्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आयातकों को हानि होगी, लेकिन निर्यातकों को लाभ होगा।

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