संभाग के सबसे बड़े एमबीएस अस्पताल में मरीजों का की स्वच्छता और सफाई से रहने का पाठ पढ़ाने वाले रेजीडेंट डॉक्टर स्वयं गंदगी और जर्जर हॉस्टल में निवास करने को मजबूर है। 25 साल पुराने हो चुके तीन हॉस्टल रख रखाव के अभाव में बदहाल हो रहे है। हॉस्टल के आसपास सफाई नहीं होने से चहुंओर गंदगी फैली है। जहां ये हॉस्टल बने हुए है वहां चहुंओर गंदगी और बॉयोवेस्ट जमा होता है।
संभाग के सबसे बड़े एमबीएस व जे.के. लोन अस्पतालों की सड़क इन दिनों गांव की सड़कों से भी बदतर हो रही है। उन पर पैदल चलना तक दूृभर हो रहा है। रोगियों को लेकर आने वाली एम्बुलेंस भी हिचकोले खाते हुए निकल रही हैं। जिससे उनके पलटने का खतरा बना हुआ है। वहीं बरसात में रोगियों व उनके परिजनों को कीचड़ से दोचार होना पड़ेगा।
दैनिक नवज्योति के 26 मई के अंक में एमबीएस अस्पताल के मेडिकल वार्ड को सर्जरी की जरुरत शीर्षक से खबर प्रकाशित करने के बाद अस्पताल प्रशासन हरकत में आया और उन्होंने गुरुवार को वार्ड का निरीक्षण कर सारी व्यवस्थाए जांच कर उसमें बेड लगाने के आदेश जारी किए। उसके बाद वार्ड की सफाई कर उसमें 15 बेड लगाए गए।
महाराव भीमसिंह अस्पताल में 16 मई को एक महिला की आंख की पलक कुतरने के मामले में जांच कर रही कमेटी ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट अधीक्षक को सौंप दी है। लेकिन अधीक्षक और जांच कमेटी में शामिल एक डॉक्टर के अस्वस्थ्य होने से सौंपी गई रिपोर्ट पर समीक्षा नहीं हो सकी।
अस्पताल में लावारिस जानवर, कुत्ते वार्डों में बेरोक टोक घूमते है। अस्पताल प्रशासन दावा कर रहा है उनके यहां पेस्टीसाइट कंट्रोल प्रोग्राम चल रहा है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि अस्पताल में कॉक्रोच, मच्छर और चूहों ने अपना स्थाई बसेरा बना लिया है।
महाराव भीमसिंह अस्पताल के आईसीयू में भर्ती पेरेलाइज्ड महिला मरीज की पलकों को ही चूहा कुतर गया है। महिला की पलकों को चूहे के कुतरने से मरीज दहशत में है। कोटा के एमबीएस अस्पताल के हालात सुधरने के नाम ही नहीं ले रहे हैं।
संभाग के सबसे बड़े एमबीएस अस्पताल को बिजली की बीमारी हो गई है। अस्पताल में मरीजों को कभी बिजली, तो कभी पानी और कभी सर्वर डाउन होने से हर बार परेशानी ही झेलनी पड़ रही है।
राज्य सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों का उपचार तो नि:शुल्क कर दिया। लेकिन उपचार करवाने के लिए सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं के पार पाना मुश्किल होता जा रहा है। इसका एक उदाहरण है बिना आधार कार्ड के अस्पताल में पर्ची काउंटर पर पर्ची ही नहीं बनेगी इलाज तो बाद में होगा।
सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवाओं की सुविधा तो कर दी लेकिन मरीजों को वह दवा काउंटरों पर उपलब्ध ही नहीं हो रही है। एमबीएस में एक ही काउंटर पर दवा दी जा रही है वहां भी आधी दवाओं के लिए एनओसी जारी की जा रही है।
स्वैच्छिक रक्तदान में प्रदेश में अव्वल रहने वाले कोटा के सबसे बड़े एमबीएस अस्पताल के ब्लड बैंक में इन दिनों ब्लड की कमी हो रही है। ब्लड बैंक में अपनी क्षमता का 10 फीसदी भी ब्लड नहीं है। एमबीएस ब्लड बैंक में रोजाना 70 से 80 यूनिट रक्त दिया जा रहा है। इस तरह औसत 2 से ढाई हजार यूनिट की खपत हर महीने हो रही है।