ज्यादा एंटीबॉडीज होना हमेशा बेहतर नहीं, हो सकती है मल्टीपल मायलोमा की समस्या
मल्टीपल मायलोमा एक तरह का ब्लड कैंसर है, जो बोन मैरो से शुरू होकर रक्त से शरीर में फैल जाता है। इस लाइलाज बीमारी में रक्त में प्लाज्मा सेल्स द्वारा बनाई जाने वाली एंटीबॉडीज बढ़ जाती है। अधिक मात्रा में इन एब्नार्मल एंटीबॉडीज के बढ़ने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
जयपुर। मल्टीपल मायलोमा एक तरह का ब्लड कैंसर है जो बोन मैरो से पनपना शुरू हो रक्त के जरिए पूरे शरीर में फैल जाता है। इस लाइलाज बीमारी में रक्त में प्लाज़्मा सेल्स द्वारा बनाई जाने वाली एंटीबॉडीज असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं। काफी ज्यादा मात्रा में इन एब्नार्मल एंटीबॉडीज के बढ़ने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने की बजाय घट जाती है। ऐसे में संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है और मरीज की हालत खराब होने लगती है। सही समय पर इलाज लेने से मरीज इस बीमारी से बच सकते हैं और अपने जीवन में गुणवत्तापूर्ण वर्षों की वृद्धि कर सकते हैं।
नारायणा अस्पताल के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. रोहित स्वामी बताते हैं कि श्वेत रक्त कोशिकाएं हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जिम्मेदार होती हैं। इन कोशिकाओं में मौजूद एंटीबॉडीज हमें कई तरह के इन्फेक्शन्स और बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। मल्टीपल मायलोमा की स्थिति में बोन मैरो में मौजूद प्लाज्मा सेल द्वारा गलत एंटीबॉडीज बनना शुरू हो जाती है, जिस कारण मरीज को कई तरह की बीमारियां जैसे रीनल फेलियर, हड्डियों में दर्द व कमजोरी होना और बार-बार बीमार पड़ना सहनी पड़ती है। लाइलाज बीमारी होने के बावजूद सही समय पर उचित इलाज ले मरीज अपने जीवन में 10 से 12 वर्षों की वृद्धि कर सकते हैं। बाकी कैंसरों के इलाज की तुलना में इसके साइड इफेक्ट्स न के बराबर होते हैं।
पहचानें ये लक्षण
मल्टीप्ल मायलोमा के मरीजों में अक्सर खून की कमी और रोज़मर्रा के काम करने में थकावट महसूस होने की शिकायत रहती है। इसके अलावा रक्त में प्लेटलेट कम होना, वजन का घटना, छाती और रीढ़ की हड्डी में दर्द और बार-बार इन्फेक्शन होना भी इसके लक्षणों में शामिल हैं। मल्टीपल मायलोमा में मरीज को नियमित रूप से इलाज करवाते रहना होता है। इलाज के लिए कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और हार्मोन थेरेपी जैसी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल होता है, जो काफी कारगर होती हैं। अन्य कैंसरों की तुलना में मल्टीपल मायलोमा के इलाज में दी गई कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स न के बराबर होते हैं। आमतौर पर यह बीमारी बुज़ुर्गों में देखी जाती है लेकिन यदि युवा इस बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट कर इसका इलाज संभव है।
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