बाबा रामदेव के खिलाफ अदालती कार्यवाही पर आईएमए अध्यक्ष के मीडिया में दिए बयान से सुप्रीम कोर्ट नाराज

बाबा रामदेव के खिलाफ अदालती कार्यवाही पर आईएमए अध्यक्ष के मीडिया में दिए बयान से सुप्रीम कोर्ट नाराज

उच्चतम न्यायालय ने योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों से उत्पन्न अदालती कार्यवाही के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ आर वी अशोकन की टिप्पणियों को गंभीरता से लिया है

नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों से उत्पन्न अदालती कार्यवाही के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ आर वी अशोकन की टिप्पणियों को गंभीरता से लिया और मंगलवार को उसके अधिवक्ता से कहा कि आप यह कैसे तय करेंगे कि हमें अपनी कार्यवाही किस तरह से करनी चाहिए।

 न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने मौखिक रूप से यह टिप्पणी करते हुए बाबा रामदेव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को इस मामले में वर्तमान आईएमए अध्यक्ष डॉ अशोकन द्वारा मीडिया के समक्ष दिए गए बयानों को अदालत के रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति दी। पीठ ने आईएमए के वकील से मौखिक रूप से कहा, आप यह कैसे तय करेंगे कि हमें अपनी कार्यवाही किस तरह से करनी चाहिए। न्यायमूर्ति कोहली की पीठ ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए सात मई की तारीख मुकर्रर करते हुए श्री रोहतगी को दो दिनों के भीतर इस संबंध में (बयान) एक आवेदन दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा,''हम इस मुद्दे से अलग से निपटेंगे। इससे पहले पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रोहतगी ने आईएमए अध्यक्ष के हवाले वाली खबरों को सामने लाने लाने की मांग करते हुए कहा कि ये अदालती कार्यवाही पर दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाली टिप्पणियां हैं। पीठ ने रोहतगी की दलील पर जवाब देते हुए आईएमए के अधिवक्ता से कहा, यह सबसे गंभीर बात होगी परिणामों के लिए तैयार रहें।

 समाचार रिपोर्ट में डाक्टर अशोकन के हवाले से कहा गया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उच्चतम न्यायालय ने आईएमए और निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की प्रथाओं की भी आलोचना की।  उन्होंने दावा किया अस्पष्ट और सामान्यीकृत बयानों ने निजी डॉक्टरों को हतोत्साहित कर दिया है। खबरों में आईंएम अध्यक्ष के ये बयान, हम ईमानदारी से मानते हैं कि उन्हें (शीर्ष अदालत को) यह देखने की जरूरत है कि उनके सामने क्या सामग्री थी। उन्होंने शायद इस बात पर विचार नहीं किया कि यह वह मुद्दा नहीं था जो (अदालत में) उनके सामने था.) उच्चतम न्यायालय को इस पर विचार करना शोभा नहीं देता है, जिसने आखिरकार कोविड युद्ध के लिए इतने सारे लोगों की जान कुर्बान कर दी।  शीर्ष अदालत ने अवमानना कार्यवाही का सामना कर रहे बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को अपने आचरण के संबंध में की गई सार्वजनिक माफी को उजागर करने वाले समाचार पत्र दाखिल करने की अनुमति दी।

उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार के संयुक्त निदेशक (उत्तराखंड लाइसेंस प्राधिकरण) मिथिलेश कुमार की ओर से दायर एक हलफनामे पर भी आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने अदालत के 10 अप्रैल के आदेश के बाद बाबा रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कार्रवाई की थी। पीठ ने स्पष्ट तौर पर कहा, आपने (उत्तराखंड लाइसेंस प्राधिकरण के संयुक्त निदेशक) ऐसा क्यों कहा है कि आप इस अदालत के निर्देश पर कार्रवाई कर रहे हैं। हमने आपसे कहा था कि यह आप स्वयं कार्रवाई करें। आप चतुराई से खेल रहे हैं। इसे हमारे कंधों पर न डालें।शीर्ष अदालत ने कहा हम विशेष रूप से इस बयान पर अपना असंतोष व्यक्त करते हैं कि अधिकारी 10 अप्रैल के आदेश के बाद कार्रवाई के लिए सक्रिय हो गये। वर्तमान अधिकारियों और उनके पांच पूर्ववर्तियों के अनुरोध पर पीठ ने उन्हें नए हलफनामे दाखिल करने की अनुमति दी।

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पीठ ने कहा, हमें शब्दों के इस्तेमाल से दुख होता है जब आप जानते हैं कि आपके पास लडऩे के लिए कुछ नहीं और आप पहले से ही एक तरफ हैं। सावधान रहें! हर शब्द मायने रखता है। हमारे पास आपके दिल को मापने के लिए कोई मशीन नहीं है हम पक्षपाती नहीं होंगे न्यायालय पर भरोसा रखें।शीर्ष अदालत अवमानना मामले में अगली सुनवाई 14 मई को करेगी।

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