आग उगलते सूरज के नीचे तपती धरा पर संत कर रहे हैं तप
तपन पर आस्था भारी
अग्नि तप गर्मी एवं जल तप सर्दी के मौसम किया जाता है।
वैर। आसमान से आग उगलता सूरज और तपती धरती पर तन पर लंगोटी बांधे, सिर पर आग का जलता खफ्पर धारण कर अंगारों के मध्य संत अग्नि तपस्या कर रहे हैं। ऐसे संतोें की हठधर्मी कहें या धर्म के प्रति आस्था। यह संत आस्था का ही मनोबल है कि उनका आग की तपिश और लू के थपेडे कुछ नही बिगाड़ पा रहे हैं। आस्था की यह तपस्या भीषण गर्मी पर भारी पड़ रही है। भुसावर व वैर उपखण्ड क्षेत्र से गुजरने वाली बाणगंगा नदी एवं उसके किनारे बसे गांवों के आसपास कई संत अग्नि तप कर रहे हैं। गांव जहानपुर के चारागाह भूमि पर अग्नि तप कर रहे संत मानदास महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में अग्नि व जल तप कठोर तप हैं। अग्नि तप गर्मी एवं जल तप सर्दी के मौसम किया जाता है। विश्वशान्ति व मानव कल्याण के उद्देश्य से पिछले कई वर्षो से अग्नि तप किया जा रहा है। इसी प्रकार झारोठी, धरसौनी, खेरली गुर्जर स्थान पर कई संत अग्नि तप कर रहे हैं।
तप करने से मिलती है आत्मशान्ति
लैना के बनखण्डी आश्रम के महंत रविनाथदास महाराज ने बताया कि तप करने से इंसान को आत्मशान्ति प्राप्त होती है और सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार होता है। साथ ही लोगों में देशभक्ति, समाज व मानव सेवा के भाव जागरूक होते है।
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