कागज और स्याही पर जीएसटी से शिक्षा हुई महंगी
बिगड़ रहा बजट : किताब, कॉपी समेत सभी स्टेशनरी सामानों पर पड़ रही महंगाई की मार, कॉपी रजिस्टर बनाने वाली ब्रांडेड कंपनियों ने दाम बढ़ाने के बजाए पेज किए कम , 40 से 50 फीसदी की हुई वृद्धि
स्कूलों में नये सत्र शुरू होने के साथ ही कॉपी किताबें खरीदना शुरू हो गया है। नये सत्र शुरू होने के साथ अभिभावकों की जेब पर जीएसटी का बोझ बढ़ने लगा है। जीएसटी लगने की वजह से कॉपी- किताब व स्टेशनरी के मूल्यों में हुई वृद्धि ने बच्चों की पढ़ाई को मुश्किल बना दिया है।
कोटा। कोरोना महामारी के चलते दो साल के लंबे अंतराल के बाद अभी सभी स्कूल पूरी क्षमता के साथ संचालित हो रहे है। स्कूलों में नये सत्र शुरू होने के साथ ही कॉपी किताबें खरीदना शुरू हो गया है। नये सत्र शुरू होने के साथ अभिभावकों की जेब पर जीएसटी का बोझ बढ़ने लगा है। शिक्षा पर जीएसटी का बोझ पैरेंट्स को अब पूरी तरह समझ में आने लगा है। जीएसटी लगने की वजह से कॉपी- किताब व स्टेशनरी के मूल्यों में हुई वृद्धि ने बच्चों की पढ़ाई को मुश्किल बना दिया है। पैरेंट्स अपने बच्चों की कॉपी व किताब खरीदने के लिए 6 हजार से 12 हजार रुपए तक खर्च कर रहे हैं। जो किताब पहले 100 रुपए में आती थी वह अब बढ़कर 180 रुपए पहुंच गई है। अभिभावकों का कहना है कि पहले कोरोना के चलते आर्थिक तंगी से गुजर रहे उस पर इस बार कागज पर बड़ी जीएसटी का बोझ किताब कॉपियों और स्टेशनरी पर दिखाई दे रहा है।
वैसे तो किताबें जीएसटी से मुक्त हैं, लेकिन प्रिंटिंग में प्रयोग होने वाली इंक व कागज पर भारी-भरकम जीएसटी लगने से किताबों पर भी महंगाई की मार पड़ रही है. इस वर्ष कागज पर 12 प्रतिशत व इंक पर 18 प्रतिशत जीएसटी है। जिसके कारण इस बार किताबें महंगी होने से अभिभावकों की कमर टूट रही है। बीते लगभग दो वर्षों के बाद स्कूल वापस शुरू हो रहा है। नया सत्र शुरू होते ही अभिभावक बच्चों के लिए कॉपी, किताब व स्टेशनरी खरीदने में जुट गए हैं, लेकिन बीते सत्रों की अपेक्षा इस बार स्टेशनरी सामानों की कीमतें लगभग 40 से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर मिल रही है, जिससे अभिभावक मायूस नजर आ रहे हैं।
कागज और रद्दी के बढ़े दाम
स्टेशनरी विक्रेता जितेंद्र शर्मा ने बताया कि कागज के दामों में हुई वृद्धि से शिक्षा से जुड़ी हर चीज के भाव आसमान छू रहे हैं। कॉपी-किताबों के दामों में काफी वृद्धि हुई है। ब्रांडेड कंपनियों ने कॉपियों के दाम बढ़ाने की बजाए कॉपियों के पेज कम कर दिए हैं, जबकि कुछ कंपनियों ने लंबाई व चौड़ाई कम कर दी।
128 पेज की कॉपी हुई 120 पेज की
अभिभावक हेमराज ने बताया कि पहले 128 पेज की कॉपी आती थी उसे120 पेज की कर दी गई है। वहीं कुछ कंपनियों ने पेज कम करने के साथ ही मूल्य भी बढ़ा दिए हैं। पहले 64 पेज की जो कॉपी दस रुपए में आती थी, वह अब 48 पेज की होने के साथ ही 15 रुपए की हो गई है। कॉपी- किताब और स्टेशनरी विक्रेता सौरभ ने बताया कि इसकी मुख्य वजह जीएसटी और कागज की कीमतों में हुई वृद्धि है। जुलाई माह तक नया स्टॉक आने पर कीमतें और भी बढ़ने की संभावना है।
कॉपी किताब की कीमतें
कक्षा कीमत (रुपए में)
प्री प्राइमरी 2500 से 4000
पहली से पांचवी 4500 से 5000
छठवीं से आठवीं 6000 से 8000
नौवीं से दसवीं 7500 से 9000
11 से 12वीं 8500 से 12000
हर साल सिलेबस बदलना बंद करें
प्राइवेट स्कूल हर साल अपनी किताबों के सिलेबस में कुछ न कुछ बदलाव कर देते हैं। जिससे पुरानी किताबें अच्छी हालत में होने के बाद भी नए विद्यार्थियों के उपयोग में नहीं आ पाती है जिससे हर वर्ष छात्र छात्राओं को नई किताबें खरीदने के लिए विवश होना पड़ता है इसके लिए शिक्षा विभाग को निजी स्कूलों के हर साल सिलेबस बदलना बंद कराना चाहिए।
-रवि सिंह, अभिभावक शिक्षा विभाग को लेना चाहिए संज्ञान
शिक्षा विभाग को लेना चाहिए संज्ञान
कई स्कूलों द्वारा किताबें व कॉपियां स्कूलों से ही लेने के लिए दबाव डाला जाता है। उनके द्वारा निर्धारित की गई दुकान पर ही बुक मिलती है। उनका मूल्य भी निर्धारित लागत से काफी अधिक होता है। ऐसी मॉनोपोली बंद होनी चाहिए । शिक्षा विभाग व प्रशासन को स्कूलों की इस मनमानी पर रोक लगानी चाहिए जिससे पैरेट्स का शोषण ना हो।
-सीमा शर्मा, अभिभावक
प्री- प्राइमरी बच्चों पर ढेर सारी किताबों का लाद रहे बोझ
प्री-प्राइमरी और छोटे बच्चों की कक्षाओं में स्कूलों द्वारा कई ऐसे सिलेबस निर्धारित कर दिया गया है, जिनका बच्चों को कोई खास लाभ नहीं होता है। यह किताबें काफी महंगी भी होती है। ऐसी किताबों को सिलेबस से हटाना चाहिए।
-सोनू कंवर, अभिभावक
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