फादर्स डे विशेष: मेरा अभिमान, स्वाभिमान, पहचान ही नहीं पूरा आसमान है पिता

क्या कहूं उस पिता के बारे में जिसने सोचा नहीं कभी खुद के बारे में

फादर्स डे विशेष: मेरा अभिमान, स्वाभिमान, पहचान ही नहीं पूरा आसमान है पिता

शहर में कुछ ऐसे भी पिता हैं जो अकेले ही माता-पिता दोनों की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। उन्होंने बच्चों की खुशी और उनकी परवरिश की खातिर विपरीत परिस्थियों में भी हिम्मत नहीं हारी। उनकी जिंदगी का एक ही मकसद रहा कि बच्चों की अच्छी परवरिश करनी है। उन्हें अच्छे संस्कार देकर काबिल बनाना है। आज फादर्स डे के अवसर पर ऐसे ही सिंगल फादर्स के बारे में बताएंगें जिन्होनें पिता होने के साथ-साथ मां के फर्ज को भी बखूबी निभा रहे हैं।

कोटा। सख्त-सी आवाज में कहीं प्यार छिपा सा रहता है। उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है। कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हो उस पर, हंस कर झेल जाता है ह्लपिताह्व किसी से कुछ न कहता है। पिता शब्द की व्याख्या करना बहुत कठिन है। पिता परिवार के लिए वटवृक्ष की तरह होता है। बच्चों के जीवन का आधार होते है। एक उम्मीद, एक आस और एक विश्वास होते है। बच्चों के हर सपने को पूरा करने की सोच रखते हैं। बच्चों के संघर्ष में हौसलों की दीवार होते हैं। माता-पिता दुनिया का सबसे अनमोल रत्न होते हैं। उनके प्यार और आशीर्वाद के बिना संसार में कुछ संभव नहीं है। पूरी दुनिया में एक पिता ही वो इंसान हैं जो ये चाहता है कि उनके बच्चे उससे भी ज्यादा कामयाब बनें। बच्चों की जरा-सी तकलीफ या समस्या के सामने पिता एक चट्टान की तरह खड़े हो जाते हैं। लेकिन अपने बच्चों पर कोई आंच नहीं आने देते । बच्चों के सुख-दुख में हमेशा साथ होते हैं।

 पिता नीम के पेड़ जैसा होता है। उसके पत्ते भले ही कड़वे हों पर छाया ठंडी देता है। एक पिता अपने बच्चों का गुरूर होता है। जिसे कोई तोड़ नहीं सकता। पिता सदैव संघर्ष कर अपने बच्चों के जीवन को आकार देने के लिए अपनी खुशियों का त्याग करता हैं। कहते हैं कि एक मां अकेले बच्चों की परवरिश कर सकती है लेकिन पिता नहीं। लेकिन शहर में कुछ ऐसे भी पिता हैं जो अकेले ही माता-पिता दोनों की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। उन्होंने बच्चों की खुशी और उनकी परवरिश की खातिर विपरीत परिस्थियों में भी हिम्मत नहीं हारी। उनकी जिंदगी का एक ही मकसद रहा कि बच्चों की अच्छी परवरिश करनी है। उन्हें अच्छे संस्कार देकर काबिल बनाना है। आज फादर्स डे के अवसर पर ऐसे ही सिंगल फादर्स के बारे में बताएंगें जिन्होनें पिता होने के साथ-साथ मां के फर्ज को भी बखूबी निभा रहे हैं। दैनिक नवज्योति ने इस अवसर पर ऐसे बच्चों से बात कर उनके पिता के संघर्ष के बारे में जाना। जिन्होंने विपरीत हालातों में भी अपना हौसला नहीं खोया और अकेले दम पर बच्चों को बेहतर परवरिश दी। हालांकि इस सफर में उन्हें काफी संघर्ष का सामना भी करना पड़ा लेकिन जिंदगी के फाइनेंशियल, सोशल, इमोशनल हर स्तर पर चट्टान की तरह मजबूत खड़े रहें। किसी शायर की ये पंक्तियां - क्या कहूं उस पिता के बारे में जिसने सोचा नहीं कभी खुद के बारे में , पापा आपने मुझे जिंदगी भर दिया है, आपका तहेदिल से बेहद शुक्रिया है।

 पापा हमारे सुपर हीरो हैं
हम काफी छोटे थे जब हमारी मम्मी का अचानक निधन हो गया। सारी जिम्मेदारी पापा (मनोज गुप्ता) पर आ गई। उस समय मैं 14 साल की थी और मेरे दोनों छोटे भाई एक ग्यारह व एक नौ साल का था। हम लोग समझ भी नहीं सकते कि पापा  भी उस दौरान किस स्टेज से गुजरे होंगे। पापा ने अकेले पूरे घर का काम देखा। बच्चों के प्रति अपनी पूरी जिम्मेदारियां निभाई। पढ़ाना-लिखाना, खाना बनाना स्वयं  भी जॉब पर जाना। सब कुछ उन्होंने बहुत ही बखूबी संभाला। कभी भी हमें मम्मी की कमी महसूस नहीं होने दी। पापा शिक्षक है पोस्टिंग अंता के पास है वह रोज अप डाऊन करते हैं। जब हम छोटे थे तब भी वह डेली अप डाऊन करते थे । हमारा सब काम करके खाना बनाकर जाते शाम को आने के बाद फिर सारा काम करते थे। वह अकेला महसूस करते थे ये हमने महसूस किया। पर दुबारा शादी करने के बारे में उन्होंने नहीं सोचा। उन्होंने हमारी खुशी देखी। मैं उस समय छोटी थी मुझे कुछ काम आता भी नहीं था। पापा ने ही सब चीजों को संभाला । फिर धीरे धीरे मैनें पापा के कामों में हाथ बंटाना शुरू किया । कुछ बातें लड़कियां अपनी मम्मी से ही शेयर  कर सकती थी वह उनसे शेयर की। पापा ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। मुझे समझा और समझाया भी और हर चीज की सही गाइडेंस दी। उन्होंने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह सिर्फ पापा है। मां का रोल भी निभाया । मैंने और मेरे दोनों छोेटे भाई हिमांक और देवांक ने इंजीनियरिंग की है छोटा भाई अभी बैंगलोर में इंजीनियरिंग कर रहा है। मैं कोटा में ही जॉब कर रही हूं। हम तीनों बहन भाई अपने पापा से बहुत प्यार करते हैं।  वह हमारे सुपर हीरो है। वहीं हमारे मम्मी भी है और पापा भी है। वो नहीं होते तो हम भी अभी नहीं होते।
- अपर्णा गुप्ता, इंजीनियर

लाइफ में पापा का बहुत ज्यादा सपोर्ट
हम बहुत छोटे थे जब मम्मी का कैंसर से निधन हुआ। उस समय मैं चौथी कक्षा में था मेरी बहन मुझे कुछ चार साल बड़ी है।  हमें बहुत बाद में मालूम हुआ कि उन्हें कैंसर है। उसके पहले ट्रीटमेंट काफी टाइम से चल रहा था। उस समय से पापा - मम्मी बाहर दिल्ली  ट्रीटमेंट  के कारण रहते थे। हम घर पर अपने रिश्तेदारों के साथ रहते थे। पापा(सुरेश वर्मा ) एक इंश्योरेस कंपनी में प्रशासनिक अधिकारी है । पापा ने सबसे ज्यादा स्ट्रगल किया है। हॉस्पिटल में मम्मी के साथ रहना वहां सब संभालना उसके अलावा हमारी देखभाल की भी जिम्मेदारी थी। मेड्स समय से आ रही है या नहीं ,हम लोग समय से स्कूल जा रहे है या नहीं ,उन पर हॉस्पिटल और यहां घर की भी जिम्मेदारी रहती थी। मैं उस समय आठवी में थी पापा ने कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। सभी सुविधाएं हमें दे रखी थी । रिश्तेदारों  पर भी हमारी जिम्मेदारी पापा ने नहीं डाली। वह हमारे लिए सब कुछ मैनेज करके जाते थे। जिससे किसी के ऊपर भी हमारा बर्डन नहीं पड़े। हम थोडे छोटे थे तो अकेले नहीं रह सकते थे इस वजह से रिश्तेदारों के साथ रहते थे। हमारे मम्मी-पापा ने हमें कभी बताया ही नहीं क्या बीमारी है। हमें मम्मी के निधन के बाद पता चला कि उन्हें कैंसर था।  वर्ष 2007 में निधन हुआ था उससे पहले 2-3 साल तक ट्रीटमेंट चला था। मम्मी के नहीं रहने का मुझे शुरू में पता ही नहीं चला मैं बहुत छोटा था मैं समझ ही नहीं पाया कि यह क्या हो रहा है । जब थोड़ा समझदार हुआ तब मम्मी के प्रति लगाव की फीलिंग महसूस हुई। बहन बड़ी है तो उन्होंने वह दर्द महसूस किया होगा। शुरू में सभी रिश्तेदारों ने पापा से कहा बच्चे हमारे पास रह जाएंगे आप जॉब वगेरह करो, लेकिन पापा ने कहा, मैं अकेला ही सब मैनेज कर लूंगा। तब से आज तक पापा हमारे साथ है। पापा के सपोर्ट से ही आज लाइफ आसानी से चल रही है।  मैं अपने पापा से बहुत प्यार करता हूं।  मैं उन्हें सब खुशियां लौटाना चाहता हूं जो हमारे कारण उनकी छूट गई हैं। मेरे पापा ने इतना स्ट्रगल किया है मैं उन्हें दु:खी नहीं देख सकती। जिम्मेदारी तो बच्चों के प्रति हर पेरेंट्स की होती है लेकिन हमारे पापा ने हमारी हर जिम्मेदारी को प्यार से निभाया है।  हम तीनों मिलकर लाइफ को एन्जॉय करते है। उन्होंने हमकों कभी बांध कर नहीं रखा पूरी आजादी दी। यह नहीं सोचा कि बेटी है तो यह नहीं करें हर चीज की आजादी दी इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि बच्चे बिगड़े नहीं। अच्छे संस्कार दिए। गलत रास्ते पर नहीं चले। हमने भी कभी उनकी दी हुई फ्रीडम का गलत इस्तेमाल नहीं किया। पापा की यही सीख है कि जो भी करो समझदारी करों। मेरा अभी बी.फार्मा पूरा हुआ है मैं जॉब के लिए प्रयासरत हॅू। बहन ने बी.टेक किया है।            
-  प्रफुल्ल वर्मा  एवं आयुषी वर्मा

मेरे बच्चे ही मेरी जिंदगी
जिंदगी बहुत अच्छे से चल रही थी। किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। जुलाई 2011 में मेरे दूसरे बेटे का जन्म हुआ। इसके जन्म के 10 माह बाद पता चला कि पत्नी को ब्लड कैंसर है। मेरा बड़ा बेटा तब चार साल का था। सब जगह ट्रीटमेंट करवाया।  इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान थी। इलाज में सब धन खर्च हो गया। काम धंधा बंद हो गया। अक्टूबर 2014 में पत्नी का निधन हो गया। यह मेरे परिवार के लिए दु:खद समय था। इसके साथ ही दोनों बेटों की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। उस समय बड़ा बेटा हर्षित सात साल का था और छोटा बेटा रिद्म तीन साल का था। परिवार और रिश्तेदारों ने भी ऐसे समय में साथ छोड़ दिया। मेरे सामने दोनों बेटों का भविष्य था। मुझे उनकी परवरिश अपने दम पर करनी थी। इधर काम धंधा बंद हो चुका था। हर तरफ से चुनौतियां मेरे सामने थी। स्वयं ही उनके लिए खाना बनाता, उन्हें खिलाता, स्कूल और ट्यूशन पर भेजता हूं। उस समय मेरे तीन एक्सीडेंट भी हुए। एक हाथ से ही खाना बनाता और सभी काम खुद करता था। काफी संघर्ष भरे दिन थे। दोनों बच्चे 6 साल से  ताइक्वाडों सीख रहे हैं।  मेरे दोनों बच्चे ताइक्वांडो में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। मेरे लिए मेरे बच्चों की खुशी पहले है। मेरे जीवन में बच्चों के अलावा कोई नहीं है। हम तीनों पिता-पुत्र की तरह नहीं बल्कि भाइयों की तरह रहते हैं। बेटे मुझे पापा नहीं भाई बोलते है। मैंने बच्चों को बोल रखा है मैं ही तुन्हारा पिता भी हंू और मां भी हूं। जो भी बात है मुझे बताओ।  इन हालातों में भी कोशिश पूरी है कि बच्चों को अच्छी परवरिश देकर लायक बनाऊं। बड़े बेटे ने 10वींं का एग्जाम दिया है छोटा 7वीं क्लास में आया है ।     - दीपक कुमार शर्मा

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