ब्रेनडेथ के बाद अंधविश्वास के चलते परिजन नहीं कराते है अंगदान

सरकारी अस्पतालों में ब्रेनडेथ के केस आते हैं

ब्रेनडेथ के बाद अंधविश्वास के चलते परिजन नहीं कराते है अंगदान

अभी प्रदेश में 484 लोग ऐसे है, जिनके लीवर और हॉर्ट खराब हैं। स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड टिशू आर्गेनाइजेशन (सोटो ) के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. अमरजीत मेहता, कंसल्टेंट डॉ. मनीष शर्मा ने बताया कि ब्रेनडेथ के बाद अंधविश्वास के चलते परिजन अंगदान नहीं कराते है।

जयपुर। अभी प्रदेश में 484 लोग ऐसे है, जिनके लीवर और हॉर्ट खराब हैं। स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड टिशू आर्गेनाइजेशन (सोटो ) के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. अमरजीत मेहता, कंसल्टेंट डॉ. मनीष शर्मा ने बताया कि ब्रेनडेथ के बाद अंधविश्वास के चलते परिजन अंगदान नहीं कराते है। परिवहन विभाग भी लाइसेंस देते समय अंगदान का संकल्प पत्र भरवाता है, लेकिन जिनकी ब्रेनडेथ होती है, उनके परिजन तैयार नहीं होते।

जागरूकता जरूरी, लेकिन सिस्टम भी मजबूत हो
प्रदेश में सभी सरकारी अस्पतालों में ब्रेनडेथ के केस आते हैं, लेकिन परिजनों की रजामंदी के लिए ट्रांसप्लांट कोर्डिनेटर नहीं हैं। जयपुर के 11 और जोधपुर, और गंगानगर के 1-1 अस्पताल के अलावा बीकानेर, जोधपुर, अजमेर, कोटा मेडिकल कॉलेज में ही कोर्डिनेटर हैं। सभी को इसकी अनुमति भी नहीं है। सबसे ज्यादा हॉर्ट, लीवर और किडनी के केस आते हैं। हॉर्ट 3 घंटे, लीवर 6 घंटे, किडनी 24 घंटे, अग्नाश्य 6 घंटे, कोर्निया 7-14 दिन, स्किन की 4-5 साल की समयावधि में ट्रांसप्लांट होना जरूरी है। अन्य जिलों से अंगों के निकालने, जिस अस्पताल में मरीज को इसकी जरूरत है। उस तक पहुंचाने के मजबूत ग्रीन कोरिडोर बनाने की प्रणाली जरूरी है।

जयपुर के एसएमएस और महात्मा गांधी अस्पताल में सभी अंगों के ट्रांसप्लांट की सुविधा है। हर जिले में एक ऐसे अस्पताल को विशेषज्ञों के साथ तैयार करने की जरूरत है, जो ऑगन ट्रांसप्लांट की सुविधा दे। हॉर्ट, लीवर टांसप्लांट कराना है, तो जयपुर के अस्पताल ही विकल्प हैं। सरकारी अस्पतालों में ब्रेनडेथ के केस सबसे ज्यादा आते हैं। प्रदेश में 30 जिलों में खुल रहे मेडिकल कॉलेजों में अंगदान और ट्रांसप्लांट की सुविधा की कवायद हो।

अभी तक 44 लोगों के यह अंग मिले
 81 किडनी, 39 लीवर, 24 हॉर्ट, 4 लंग्स, 1 अग्नाश्य, 12 कोर्निया, 2 हॉर्ट वॉल्व, 1 ब्रेनडेथ की स्कीन का दान हो सका है। इनमें किडनी के अलावा अधिकांश अंग दूसरे राज्यों में भेजे गए। यहां सभी ट्रांसप्लांट हो सकते थे। लेकिन चुनिंदा अस्पताल में ट्रांसप्लांट, मरीज का यहां पहुंचने में समय लगना, प्राइवेट में महंगा ट्रांसप्लांट की वजह से लोगों बचाने के लिए दूसरे राज्यों को ये अंग भेजे गए। एक भी लंग्स का ट्रांसप्लांट आज तक प्रदेश में नहीं हो सका है।

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पहला लीवर-हॉर्ट-अग्नाशय ट्रांसप्लांट महात्मा गांधी अस्पताल में हुआ
राजस्थान का पहला लीवर, हॉर्ट 2015 में और अग्नाश्य 2017 में महात्मा गांधी में हुआ। एसएमएस में फरवरी 2015 में पहला किडनी केडेवर ट्रांसप्लांट हुआ।

किस अंग के इंतजार में कितने लोग
राजस्थान में 354 लोगों को किडनी, 97 को लीवर और 33 को हॉर्ट की जरूरत है। इन्होंने स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड टिशू आर्गेनाइजेशन यानी सोटो में रजिस्ट्रेशन करा रखा है।

अब तक इनमें ही अंगदान
सबसे ज्यादा अंगदान एसएमएस अस्पताल में हुए हैं। इसके अलावा सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल, नारायण, अपेक्स, र्फोटिज और ईएचसीसी में हुए।   

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