World Thalassemia Day : माता-पिता में थैलेसीमिया माइनर तो बच्चे में 25% बढ़ जाती है मेजर थैलेसीमिया होने की संभावना
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है और भारत में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या भी चिंताजनक है।
थैलेसीमिया एक प्रकार का ब्लड डिस्ऑर्डर है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति की रेड ब्लड सेल्स या लाल रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन का लेवल बहुत कम मात्रा में बन पाता है। थैलेसीमिया के मरीजों में हीमोग्लोबिन का स्तर हमेशा कम ही रहता है।
जयपुर। थैलेसीमिया एक प्रकार का ब्लड डिस्ऑर्डर है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति की रेड ब्लड सेल्स या लाल रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन का लेवल बहुत कम मात्रा में बन पाता है। शरीर के रेड ब्लड सेल्स में हीमोग्लोबिन होता है, जिसका काम शरीर के अन्य हिस्सों तक ऑक्सीजन की सप्लाई करना है। लेकिन थैलेसीमिया के मरीजों में हीमोग्लोबिन का स्तर हमेशा कम ही रहता है।
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है और भारत में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या भी चिंताजनक है। चिकित्सकों के अनुसार मेजर थैलेसीमिया को होने से रोका जा सकता है बशर्ते कि मां-बाप बनने से पहले दंपत्ति डॉक्टरों से सलाह लें और अपनी जांच करवाएं। जांच में उन्हें पता चलेगा कि उन्हें किसी भी प्रकार का थैलेसीमिया है या नहीं। इसके आधार पर ही वह अपनी गर्भावस्था की योजना बना पाएंगे। अगर माता-पिता दोनों मे थैलेसीमिया माइनर है तो बच्चे के मेजर थैलेसीमिया बीमारी के साथ पैदा होने की 25 प्रतिशत संभावना होती है।
हर साल 7 से 10 हजार बच्चों का इस बीमारी के साथ हो रहा जन्म
हर वर्ष हजारों बच्चे इस बीमारी के साथ हो रहे पैदा, तीन महीने बाद होती है पहचान भगवान महावीर हॉस्पिटल के सीनियर हिमेटोलॉजिस्ट डॉ. उपेंद्र शर्मा ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 7 से 10 हजार ऐसे बच्चों का जन्म होता है जिन्हें अनुवांशिक थैलीसीमिया की बीमारी होती है। थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है। इस रोग की पहचान बच्चे में जन्म के तीन महीने बाद ही हो पाती है। इस रोग में चिकित्सकों की राय और सही समय पर स्क्रीनिंग जरूरी है।
क्या है थैलेसीमिया
थैलेसीमिया जीन की कमी या जीन में त्रुटियों के कारण होता है। ये जीन हीमोग्लोबिन यानी लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसे जीन के अल्फा या बीटा ग्लोबिन अवस्था के आधार पर माइनर, मेजर और इंटरमीडिएट प्रकार के थैलेसीमिया में विभाजित किया गया है। इस बीमारी में इलाज किस प्रकार किया जाएगा, यह इस बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता हैं। मेजर थैलेसीमिया मरीजों को कम उम्र में डायग्नोसिस किया जाता है। उन्हें आजीवन ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता होती है। इस वजह से उनकी उम्र कम हो जाती है। जबकि माइनर थैलेसीमिया मरीजों मे केवल एनीमिक स्थिति नजर आती है।
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