सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

सीडब्ल्यूसी का संदेश!

सीडब्ल्यूसी की बैठक के मायने निकाले जा रहे। सोनिया गांधी ने पार्टी में अनुशासन को लेकर ताकिद किया। तो साफ संदेश भी दिया। वही फुलटाइल बॉस। कोई मुगालते में न रहे। पंजाब प्रकरण से लगा था राहुल-प्रियंका धीमा पड़ेंगे। लेकिन शनिवार को सीएम गहलोत से मुलाकात के बाद साफ हो या। भविष्य में भी भाई बहन की महत्वपूर्ण फैसलों में छाप होगी। मतलब जो राहुल गांधी की सदारत को लेकर सवाल उठा रहे। उनको भी इशारा। स्वीकारें, नहीं तो वरना बाहर जाएं। हां, कांग्रेस नेतृत्व को समझ आ गया। कार्यकर्ता सड़क पर तो उतरें। लेकिन उसके पहले उनकी ट्रेनिंग भी जरुरी। ताकि वह पार्टी की नीतियों, कार्यक्रमों एवं विचार को ठीक तरीके से आत्मसात कर सकें। सो, अब भाजपा की तर्ज पर यह उपर से लेकर नीचे तक निरंतर प्रशिक्षण चलेगा। राहुल-प्रियंका का वजनदार होना मतलब युवा एवं नए चेहरों को काम करने का मौका मिलेगा। वहीं, संगठन चुनाव का एलान हो गया। सो, सदस्यता अभियान के बहाने संगठन का काम करना होगा!


सीएम का दिल्ली दौरा...

‘जादूगरजी’ का करीब 30 घंटे का दिल्ली दौरा कई की सांसें ऊंची-नीची कर गया। यह दौरा लंबे समय से बहुप्रतिक्षित था। लेकिन किसी न किसी बहाने टल रहा था। पर जब हुआ। तो सीडब्ल्यूसी के बहाने। शाम को सीएम गहलोत, राहुल गांधी से मिले। इसमें शामिल रहे प्रभारी अजय माकन जब बाहर निकले। तो बोले, आॅल इज वेल। क्योंकि सोनिया गांधी सीडब्ल्यूसी की बैठक में कह चुकी थीं। जिसे परेशानी हो। उनसे सीधे बात करे। मीडिया के जरिए नहीं। सो, कुछ घंटों बाद इसका पालन भी हुआ। मतलब अंदरखाने चीजें पक रहीं। लेकिन क्या और कैसी? संगठन चुनाव का एलान हो चुका। जो अब तक संगठन में पद की भागदौड़ करते रहे। उनके अरमानों पानी फिर गया। अब एक साल और इंतजार करना पड़ेगा। फिर चुनाव जीतकर या सर्वानुमति से आना होगा। अब सदस्यता अभियान में पसीना बहाना पड़ेगा। मतलब सालभर की जा रही कवायद बेकार। ऐसे में, सीएम गहलोत के दिल्ली दौरे के मायने निकाले जा रहे। क्या जुड़ेगा, क्या घटेगा-कटेगा?


सिमटता कुनबा!
पहले पीडीपी और अब एनसी। अनुच्छेद- 370 के खात्मे के बाद कश्मीर की फिजां बदल रही। जम्मू क्षेत्र से दोनों ही प्रमुख दलों के नेता खिसक रहे। भाजपा उनकी स्वाभाविक पसंद। इनको अपना राजनीतिक भविष्य इसी कैडर बेस पार्टी में नजर आ रहा। अभी डिलिमिटेशन की प्रक्रिया चल रही। जब चुनाव होंगे। क्षेत्रीय एवं सियासी समीकरण पूरी तरह से बदले हुए होंगे। पाक से आए रिफ्युजी एवं दस साल से अधिक समय से राज्य में निवास कर रहे वोटर जुड़ रहे। इससे पहले, ग्राम पंचायत, बीडीसी और डीडीसी चुनाव हो चुके। यह राज्य की जनता के लिए अपने आप में नया सवेरा। इनमें पीडीपी एवं एनसी का प्रदर्शन सबने देखा। जनता समझ चुकी। सो, इनकी राजनीतिक जमीन खिसक रही। इस बीच, घाटी लक्षित हिंसा की घटनाएं बढ़ रहीं। सो, सुगबुगाहट तो होनी ही है। ऐसे में केन्द्र क्या करेगा? फिलहाल तो पीडीपी चीफ महबूबा का जुबानी संतुलन खराब हो रहा। वहीं, एनसी ज्यादा कुछ बोल नहीं रही। जबकि भाजपा अपने रोडमैप पर काम कर रही।


लड़ाई से पहले बिखराव!
साल- 2024 की बड़ी लड़ाई से पहले ही विपक्ष बंटा हुआ। जबकि मुख्य मुकाबला मजबूत भाजपा से। जहां इस पर चुनावी रणनीतिकार पीके तंज कस चुके। तो ममता दीदी की टीएमसी कांग्रेस को पीछे छोड़ अपना दावा पेश कर रही। लेकिन इसकी हवा निकाली शिवसेना ने। कहा, ममता नहीं कांग्रेस ही असल में भाजपा के सामने। वही देशभर में भाजपा का एकमात्र विकल्प। संभव है भविष्य में बीजद भी कांग्रेस के करीब आए और आंध्रप्रदेश में वायएसआर कांग्रेस, भाजपा के। एआईएडीएमके चूंकि इस समय तमिलनाडु में सत्ता से बाहर। इसीलिए मजबूत नेतृत्व के अभाव में उसके पास विकल्प सिमित। क्योंकि प्रबल प्रतिद्वंदी डीएमके इस समय राज्य की सत्ता में। हां, तेलंगाना में टीआरएस जरुर पसोपेश में। भाजपा वहां लगातार आगे बढ़ रही। लेकिन खुद केसीआर तो कभी कांग्रेस में रहे। राजद में इस समय वर्चस्व को लेकर अंदरुनी लड़ाई चल रही। ऐसे में कांग्रेस मान रही। सबसे पहले अपना घर ठीक करना जरुरी। क्योंकि विपक्ष की केन्द्रीय धुरी यही ‘ओल्ड ग्रेड पार्टी’!

Read More सतरंगी सियासत


शिवसेना का कांग्रेस राग!
महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस से सट रही। एनसीपी को मानो आंख दिखा रही। भाजपा एवं कांग्रेस राष्टÑीय दल। जबकि शिवसेना और एनसीपी क्षेत्रीय दल। पूर्व में शिवसेना का भाजपा से दशकों रिश्ता रहा। जो 2014 के चुनाव में टूट गया। शिवसेना का कांग्रेस से करीबी दिखाने की असली वजह मुंबई और वहां अगले साल होने वाला मनपा चुनाव। जिससे शिवसेना को ताकत मिलती। बीते 20 साल से सेना का यहां एकछत्र राज। भाजपा इस बार शिवसेना को पटकनी देने की ठान चुकी। जबकि एनसीपी अभी भी भाजपा एवं कांग्रेस में झूल रही। बचा खुचा काम मोदी सरकार ने सहकारिता मंत्रालय के गठन से कर दिया। जिसके चलते पवार को कई बार अमित शाह से मिलना पड़ा। वह पीएम से भी मिल चुके। इससे महाविकास अघाड़ी सरकार से लेकर सहयोगी कांग्रेस एवं शिवसेना पसोपेश में। लेकिन असली वजह सहकारिता क्षेत्र ही। जहां पवार का सब कुछ दांव पर लगा हुआ। हां, उनके रिश्तेदारों पर ईडी, आईटी की रेड भी हो चुकी। पवार हैरान, परेशान।


भूपेन्द्र यादव हरियाणा से...

भाजपा की नई राष्ट्रीय टीम में कुछ चौंकाने वाले संकेत। भाजपा संगठन में तेजी से डग भरते और अब केन्द्रीय मंत्री हो चुके भूपेन्द्र यादव को हरियाणा से प्रतिनिधित्व दिया गया। जबकि वह राज्यसभा में राजस्थान से प्रतिनिधि। ऐसे में यह अपने आप में बड़ा संकेत। कहीं उन्हें केन्द्र से राज्य की राजनीति में तो शिफ्ट नहीं किया जाएगा? राज्य में साल 2013 में उन्होंने पूरे चुनावी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह बिहार एवं गुजरात समेत कई राज्यों में संगठनात्मक काम कर चुके। क्या राजस्थान के लिए भी संकेत? अब उनके हरियाणा में लगातार कार्यक्रम बन रहे। जबकि हाल में उनकी मरुधरा में भी यात्रा हो चुकी। हां, यादव खासियत। वह चुपचाप बिना शोर शराबे के काम करने के लिए जाने जाते। अमित शाह के खास सिपहसालारों में उनकी गिनती। भूपेन्द्र यादव के बारे में कहावत। जब वह एक हाथ से काम करते हैं। तो दूसरे को पता भी नहीं लगता। मतलब पार्टी के किसी भी मिशन में पूरी गोपनीयता रखते हैं।    -दिल्ली डेस्क

Post Comment

Comment List

Latest News