आतंक की चुनौती
सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयास करते है
सेना व सुरक्षा बलों को अच्छी तरह पता है कि आतंकी संगठन विशेष अवसरों के आसपास अक्सर सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयास करते हैं।
राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस के चंद दिन पहले सेना ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमले की बड़ी साजिश को नाकाम तो कर दिया, लेकिन इस कार्रवाई में 4 जवान शहीद हो गए। सेना व सुरक्षा बलों को अच्छी तरह पता है कि आतंकी संगठन विशेष अवसरों के आसपास अक्सर सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयास करते है। इसके मद्देनजर काफी निगरानी व सतर्कता रखी जाती है। इसके बावजूद अगर आत्मघाती आतंकी सैन्य शिविर में घुसने में सफल होते हैं, तो सुरक्षा संबंधी सतर्कता पर सवाल हो जाते हैं। यह काफी चिंता का विषय है। जम्मू इलाके के दारहल सैन्य शिविर में दो आतंकी उरी की तरह में घुस गए थे। हालांकि समय रहते सुरक्षा बलों ने उन्हें मार गिराया, लेकिन उन्होंने भी सामना किया, जिसमें हमारे 4 जवान शहीद हो गए। इस हादसे के एक दिन पहले बडगाम में सुरक्षा बलों के साथ आतंकियों की मुठभेड़ हुई थी, जिसमें 3 आतंकी मारे गए थे। उसी दिन पुलवामा में पुलिस ने करीब 30 किलो विस्फोटक बरामद किया, जिसका इस्तेमाल किसी बड़े हादसे को करेने के लिए किया जाना था।
इन तीनों हादसों से साफ है कि चौकसी के बावजूद आतंकियों की मौजूदगी बनी हुई है और सुरक्षा बलों के सामने चुनौती बने हुए है। आतंकवादियों व अलगाववादियों के खिलाफ रोक और सीमा पर नजर रखने के चलते सरकार दावा करती रही कि आतंकवाद समाप्त हो रहा है, लेकिन हकीकत में आतंकी कहीं भी ज्यादा कमजोर नजर नहीं आ रहे हैं और सुरक्षा बलों की हर रणनीति के समक्ष वे चुनौती पेश करते दिखाई देते हैं। आतंकी हमले के तरीकों में बदलाव करते रहते है। आतंकियों की भर्ती जारी है। उन्हें हथियारों की आपूर्ति भी हो रही है। उन्हें सैन्य शिविरों व गतिविधियों की भी जानकारियां मिलती रहती हैं। केन्द्र सरकार को यह सारी जानकारी है। दूरदराज के इलाकों में आतंकियों को स्थानीय लोगों का समर्थन प्राप्त है।
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