राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा
यात्रा में नफरत नारे लग रहे है
ऐसी यात्राओं का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक ही होता है। अतीत में कई राजनीतिक दल ऐसी यात्राएं निकालते रहे है और आगे भी यात्राओं का सिलसिला जारी रहेगा। अब देखना है कि कांग्रेस की इस यात्रा का उसे कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो गई है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यह लंबी यात्रा डेढ़ सौ दिन में पूरी होगी। कांग्रेस की इस यात्रा में नफरत छोड़ो-भारत जोड़ो के नारे लग रहे है। ऐसी यात्राओं का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक ही होता है। अतीत में कई राजनीतिक दल ऐसी यात्राएं निकालते रहे है और आगे भी यात्राओं का सिलसिला जारी रहेगा। अब देखना है कि कांग्रेस की इस यात्रा का उसे कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा। कई बार देखा गया है कि यात्राओं का अपेक्षित लाभ कभी-कभी नहीं मिलता। चन्द्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले पद यात्रा निकाली थी, लेकिन वह राजनीतिक रूप से सफल नहीं रही। उनकी यात्रा ने जब दिल्ली में प्रवेश किया, तो कुछ लोग ही उसमें शामिल थे। हालांकि कांग्रेस की रैली में लोग एकत्रित हो रहे है। कांग्रेस की यात्रा देश के एक दर्जन प्रदेशों से निकलेगी, लेकिन उनमें गुजरात और हिमाचल प्रदेश प्रदेश शामिल नहीं है, जहां विधानसभा चुनाव पास है और दोनों प्रदेशों में चुनावी माहौल शुरू भी हो गया है। अनेक दलों के नेता रैलियां कर रहे है।
विचार की बात है कि आखिर कांग्रेस ने इन महत्वपूर्ण प्रदेशों को यात्रा से अलग क्यों रखा। संभव है यह कांग्रेस की राजनीति की कोई रणनीति हो। कांग्रेस की यात्रा की अपेक्षित सफलता तब देखने को मिलेगी, जब कांग्रेस के नेता लोगों को अपेक्षित संदेश देने में सफल दिखाई देंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि केन्द्र की सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी ने ही मोर्चा संभाल रखा है। वह ही देश की आंतरिक व बाहरी नीतियों पर बड़े साहस के साथ सरकार से सवाल करते दिखाई देते है। विपक्ष का कोई अन्य नेता इतना सक्रिय दिखाई नहीं देता। अब देखन है कि राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता इस यात्रा के दौरान लोगों को कितना आकर्षित कर पाते है।
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