संविधान हमारा, कानून आज भी अंग्रेजों के

संविधान हमारा, कानून आज भी अंग्रेजों के

संविधान दिवस पर विशेष : 1897 में जिस कानून में सर्वप्रथम बाल गंगाधर तिलक को सजा हुई थी, वह आज भी लागू

जयपुर। यह ऐसा ही अचंभा है, जैसे पहले संतान पैदा हो और मां बाद में। देश में संविधान तो तैयार होकर पारित हुआ 26 नवंबर 1949 को और लागू हुआ 26 जनवरी 1950 को। लेकिन संविधान की भावनाओं के अनुरूप बनने वाले कानून इससे भी 100 साल पुराने मौजूद हैं। ये आज भी न केवल लागू हैं, अदालतें इन्हीं के आधार पर फैसले करती हैं। विधिवेत्ताओं के अनुसार देश में अपराध भी उसे ही माना गया है, जिसका उल्लेख अंग्रेजों ने 1860 में बनी आईपीसी किया है। इंडियन एविडेंस एक्ट भी 1872 का है। विधिवेत्ताओं के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 13 में प्रावधान किया गया कि जो तत्कालीन कानून संविधान के मूल अधिकारों से नहीं टकराते हैं, उन्हें लागू रखा जाएगा। हालांकि इतना लंबा समय बीतने के बाद भी अब तक अंग्रजों के बनाए कानून यथावत हैं।

इनका कहना है
मैंने 1255 कानूनों को हटाने की सिफारिश की थी। संविधान के मूल ढ़ांचे में बदलाव नहीं हो सकता। हालांकि समय के साथ कानूनों में बदलाव किया जाना चाहिए। नेशनल लॉ कमीशन के चेयरमैन पद पर रहते हुए मैंने प्रदेश के 1255 कानूनों में से कई कानूनों को स्क्रैप करनी की सिफारिश की थी पर कार्रवाई नहीं हुई।
जस्टिस वीएस दवे


महात्मा गांधी पर दायर किया था राजद्रोह का मुकदमा
ब्रिटिश काल में स्वतंत्रता सेनानियों को आईपीसी की धारा 124ए का लागू होती थी। तिलक पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें इस कानून के तहत 1897 में सजा हुई। महात्मा गांधी, भगत सिंह और जवाहर लाल नेहरू सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों ने इस धारा का बखूबी प्रयोग किया। इस कानून के तहत वर्ष 1922 में महात्मा गांधी पर भी यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था। वहीं आजादी के बाद पहली बार यह मामला वर्ष 1951 में आया। पंजाब हाईकोर्ट ने तारासिंह गोपीचंद बनाम राज्य सरकार के मामले में निर्णय दिया कि धारा 124ए बोलने की आजादी असीमित नहीं है। हाल ही में सीजे एनवी रमन्ना की खंडपीठ ने इसकी वैधानिकता पर बोलते हुए कहा था कि महात्मा गांधी और तिलक को चुप कराने के लिए अंग्रेजों का ये औपनिवेशिक कानून है।

मोटर वाहन अंग्रेजों के थे, इसलिए एक्सीडेंट में सजा मामूली
उस समय अधिकांश मोटर वाहन अंग्रेजों के पास ही होते थे। ऐसे में दुर्घटनाओं में मौत होने पर जिम्मेदारी से बचने की मानसिकता के साथ ही आईपीसी की धारा 304ए को लागू किया गया था।

ये हैं कुछ उदाहरण
    आईपीसी - 6 अक्टूबर 1860 में लागू की गई।
    इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में लागू किया गया था।
    सीआरपीसी - दीवानी या सिविल प्रकृति के मामलों के लिए 1908 में लागू।
    संविदा अधिनियम- 1872 में लागू किया गया था।
    माल एवं बिक्री अधिनियम- 1930 में लागू किया गया था।
    शासकीय गुप्त बात अधिनियम- देश की सुरक्षा या हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए गुप्त रखी गई बातों या दस्तावेजों को प्रकट करने से रोकने के लिए वर्ष 1923 में इस कानून को लागू किया गया था।
    घातक दुर्घटना अधिनियम- वर्ष 1855 में लागू इस अधिनियम के तहत हादसे में हुई क्षति को लेकर पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलाया जाता है। पेड़ गिरने से दबकर मौत, करंट लगने, आवारा पशु सहित अनेक अन्य कारणों को लेकर हुई क्षति को लेकर मुआवजा देने का प्रावधान है।
सराय अधिनियम- ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1867 में इस कानून को बनाया था। बड़ी से बड़ी होटल हो या गेस्ट हाउस सभी इस अधिनियम के तहत नियंत्रित होते हैं।
टेलीग्राफ अधिनियम- अंग्रेजों ने वर्ष 1885 में इस अधिनियम को लागू किया था। इसके पीछे मंशा दूरसंचार के साधनों को प्रतिबंधित करने की थी। वर्तमान में सारा दूरसंचार इस अधिनियम के नियंत्रण में आता है। इस कानून के तहत सरकार को आपातकाल या लोक सुरक्षा के हित में फोन संदेश को प्रतिबंधित करने एवं उसे टेप करने व निगरानी करने का अधिकार है।
कारागार अधिनियम- जेल व्यवस्था कैसी रहेगी और कैदियों को लेकर क्या नियम रहेंगे, इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1894 में इस अधिनियम को लागू किया था।

हम आज भी अंग्रेजों के बनाए कानून पर न्याय दिला रहे हैं। जल्द और सुलभ न्याय के लिए अब नए कानूनों की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुराने कानूनों को हटाने की शुरुआत कर दी है।  -ओम बिरला, लोस अध्यक्ष

अंग्रेजों ने अधिकांश कानून भारतीयों को दबाए रखने के लिए बनाए थे। आजादी मिलने के बाद देशवासियों को आशा थी कि अब देशी कानून होंगे, लेकिन सात दशक बाद भी कानून नहीं बदले हैं। -अजय कुमार जैन, अधिवक्ता

हमें कानून को समय के साथ नहीं देखना चाहिए। यदि कोई कानून पुराना होते हुए भी अभी तक प्रासंगिक है तो उसे बनाए रखना चाहिए। इतना जरूरी है कि समय के साथ अप्रासंगिक कानूनों को रद्द कर देना चाहिए।-डॉ. गुंजन शर्मा, अधिवक्ता

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